पहाडियों में घंटियों की आवाज के साथ साथ कारवां का आगमन प्राचीन चाय घोड़ा मार्ग की विशेष पहचान है। इस पुराने मार्ग के कुछ ऊबड़ खाबड़ भागों पर परिवहन कुलियों पर निर्भर था, पर अधिकतर परिवहन कारवां पर आश्रित है। आज तक इसी प्रकार का कारवां फिर भी मौजूद ही हैं, अब वे माल ढुलाई का काम संभालने के बजाये पर्यटन कारवां के रुप में आधुनिक व्यक्तियों को प्राचीन मार्ग के निशानों की खोज करने ले जाते हैं।
उत्तर पश्चिम सछ्वान स्थिर पठारीय प्राचीन शरह सुंगफान चाय घोड़ा मार्ग पर सौदे का केंद्र रहा था, पुराने जमाने के कारवां के निशान धीरे धीरे लोगों की याद में लुप्त हो जाते हैं। पर वर्तमान सुंगफान शहर में एक के बाद एक कारवां फिर भी नजर आते हैं, वे पर्यटक के रुप में घोड़े की पीठ पर बैठकर प्राचीन चाय घोड़ा मार्ग का सर्वेक्षण दौरा करने में मस्त हैं।
क्वो छांग सुंग फान कांऊटी के शुन च्यांग गांव का एक साधारण किसान है, गत सदी के 80 वाले दशक में उस ने अपने घर पर स्वीटजरलैंड से आये एक पर्यटक का सत्कार किया, इस के बाद उस ने दूसरे गांववासियों के साथ विदेशी पर्यटकों को पर्वतीय दौरे के लिये घोड़ा पकडने की सेवा उपलब्ध कराने शुरु कर दिया । अब वह सौ से ज्यादा गाइडों वाले कारवां का संचालन करता है । उसके शुन च्यांग घोड़ा कारवां ने बहुत ज्यादा देशी विदेशी दोस्तों का घोड़े पर सवार होकर बर्फीले पर्वतीय दौरा करने का सपना साकार कर दिया है। क्वो छांग ने कहा:
"हमारी अपनी वेबसाइट नहीं है, चाहे चीनी पर्यटक हो या विदेशी क्यों न हो, जब वे हमारे यहां के दौरे पर आते हैं, तो वे सब के सब हमारे प्रशंसक बन जाते हैं । एक विदेशी पर्यटक ने अपने किताब में हमारे शुन च्यांग कारवां का विवरण भी दिया है।"
अब शुन च्यांग कारवां विश्वविख्यात हो गया है, इस के मद्देनजर क्वो छांग फिर पांच लाख से ज्यादा य्वान जुटाकर घोड़ा कारवां के मेनेजर के साथ एक लघु सुंदर युवा होस्टल का प्रबंधन भी करते हैं। क्वो छांग का कहना है:
"हम जानते हैं कि विदेशी पर्यटक खुद कपड़े धोने जैसी स्वयं सेवा ज्यादा पसंद करते हैं , पहले हम ने एक शुन च्यांग स्वयं सेवा होस्टल खोला था , इस होस्टल के बारे में उक्त किताब में वर्णित हुआ था , इस से और ज्यादा पर्यटक हमारे होस्टल से परिचित होकर खुद बैग लिये सीधे हमारे यहां आते हैं । ईरान व इराक जैसे अरब देशों को छोड़कर ग्रीस , ब्राजिल और आयरलैंड आदि देशों के पर्यटक यहां आ चुके हैं।"
बीसेक साल बीत गये हैं, पर क्वो छांग और अपने शुनच्यांग कारवां के गाइड दुनिया के कोने कोने से आने वाले पर्यटकों के साथ अपनी जन्मभूमि के रमणीय प्राकृतिक दृश्य दिखाने पर बड़े गर्व महसूस करते आये हैं। उनमें से कुछ समद्रपारीय पर्यटकों ने घोडे की पीठ पर अपना शादी व्याह भी कर दिया।
आज सछ्वान तिब्बत राज मार्ग पर चाय की ढुलाई करने वाले ट्रक नजर आते ही नहीं, निष्ठावान तीर्थ यात्री भी देखे जा सकते हैं। उन के लिये यह एक धर्मपरायण व आशीर्वादी मार्ग के साथ साथ अपने आप को मजबूत बनाने का रास्ता भी है।
आज बड़ी महनत से डगमगाते हुए चलने वाले कुलियों का नामोनिशान हो गया है, ऊंट घंटियों की मधुर ध्वनियां सुनायी नहीं पड़ती हैं और प्राचीन काल से चली आयी चाय की मेहक भी लुप्त हो गयी है, पर इसी प्राचीन मार्ग पर छोड़े गये पूर्वजों और घोड़ों के पदचिन्हें फिर भी ज्यों का त्यों बने हुए हैं और वे लोगों को प्राचीन रेश्मी मार्ग जितने विश्वविख्यात एशियाई महा द्वीप के सब से प्राचीन वाणिज्य मार्ग की मर्मस्पर्शी कहानी सुना रहे हैं।