पेनिसिलिन का आविष्कार
20वीं शताब्दी के 40 के दशक से पहले मनुष्य कारगर रूप से बैक्टीरिया के संक्रमण और कम साइड इफेक्ट वाली दवा इस्तेमाल नहीं कर पाते थे। उस समय जब लोग फेफड़े के क्षयरोग का शिकार बनते, तो इसका मतलब है कि वे निकट भविष्य में मर जाएंगे। इस परिस्थिति को बदलने के लिए वैज्ञानिकों ने कठिन अनुसंधान किया और अंततः पेनिसिलिन का पता लगाया।
1928 में ब्रिटिश वैज्ञानिक एलेक्जेंडर फ्लेमिंग छुट्टी लेते समय भूल गये कि उनकी प्रयोगशाला में बैक्टीरियल उगा रहा था। जब तीन हफ्तों के बाद वे वापस लौटे तो उन्होंने आश्चर्यजनक तरीके से ये पाया कि हवा से संपर्क करने वाले बैक्टीरियल के ऊपर हरे रंग मिल्ड्यू उगा चुका था। साथ ही संर्वेक्षण करने के बाद उन्होंने पता लगाया कि मिल्ड्यू के आसपास बैक्टीरियल नष्ट हो चुके थे। यह इस बात का द्योतक है कि मिल्ड्यू में किसी तत्व बैक्टीरियल के उगने से रोक सकता है। 1945 में ब्रिटिश वैज्ञानिक एलेक्जेंडर फ्लेमिंग, फ्लॉरी और छिएन ने पेनिसिलिन का आविष्कार करने से नोबेल फिजियोलॉजी या चिकित्सा में पुरस्कार जीता। पेनिसिलिन के आविष्कार से संक्रामक रोगों का इलाज न करने वाले युग का समापन हुआ है।
उपरोक्त आविष्कारओं के अलावा नाभिकीय ऊर्जा का आविष्कार और प्रयोग, मानव जीनोम परियोजना, जीनोम क्रोन तकनीक के विकास में नोबेल पुरस्कार जीतने वाली तकनीक हमारे दैनिक जीवन पर असर डालती रहती है। वास्तव में नोबेल पुरस्कार हमारे जीवन से दूर नहीं हैं। वे हमारे पास ही हैं। विज्ञान जीवन को बदल सकता है। इन नोबेल पुरस्कार विजेताओं के आविष्कारों से हमारा जीवन और सुन्दर बना है।