भारत के हिमाचल प्रदेश का पहाड़ी रेल मार्ग
पूरे भारत में रेल लाइनें हैं, जिनमें तीन पहाड़ी रेल मार्ग संयुक्त राष्ट्र संघ के विश्व सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल किये गए हैं। पश्चिम बंगाल प्रदेश का दार्जिंलिंग-हिमाचल रेलवे, तमिलनाडु का नीलगिरी पहाड़ी रेलवे और हिमाचल प्रदेश का कालका-शिमला रेलवे है। पहले दो रेल मार्ग बहुत प्रसिद्ध हैं, जबकि कालका से शिमला तक जाने वाली रेल लाइन 2005 में विश्व सांस्कृतिक विरासत में शामिल की गयी, इसलिए इससे सवारी करने वाले यात्री बहुत ज्यादा नहीं हैं। दार्जिंलिंग-हिमाचल रेलवे की तरह इस रेल मार्ग में टॉय ट्रेन का इस्तेमाल होता है। वास्तव में इस टॉय ट्रेन का 100 से ज्यादा सालों का इतिहास है, जो भारत में अब तक इस्तेमाल की गयी सबसे पुरानी रेल है। अधिकांश रेलगाड़ियां स्टीम इंजन से चलती हैं। इस तरह की छोटी रेल गाड़ी कई नहरों, वनों या ऊंचे पुलों पर गुजरती हैं। जिन्हें देखते ही लोग रोमांचित होते हैं। इन रेल गाड़ियों की गति 15 किलोमीटर प्रति घंटा है और कुछ भागों में और भी धीमी गति से गुजरती हैं। कहा जाता है कि कभी कभार कस्बों से गुजरते समय वे ट्रैफिक जाम में भी फंस जाती हैं। लेकिन इस तरह की पुरानी रेल गाड़ी पर सवार होने से अनोखा अनुभव होता है।
रेलगाड़ी के पुरानी ज़रूर है, लेकिन साफ़ सुथरा है। रोज सुबह 7 बजकर 40 मिनट पर कालका शताब्दी राजधानी दिल्ली से रवाना होती है, और करीब तीन घंटे बाद कालका पहुंचती है, फिर यहां से टॉय ट्रेन के जरिए छह घंटे में भारत की ग्रीष्म राजधानी शिमला पहुंचती है।
इस रेल लाईन के अलावा उत्तर भारत के हिमालय पर्वत तक जाने वाला और एक रेल मार्ग है, यानी पठानकोट से जोगिंदर नगर तक का मार्ग। जब रेल गाड़ी धीमी गति से पहाड़ी क्षेत्र, घाटी, मठों और गांव गुजरती है, तब यात्री बाहर के सुन्दर दृश्यों को देखकर आनंद लेते हैं।