मरम्मत की जा रही ट्रादूक मठ
मिमा त्सरिंग की यादों के अनुसार उस समय न केवल मठ की स्थिति बेहद कठिन थी, बल्कि उसके आसपास का वातावरण भी अच्छा नहीं था। परंतु वर्ष 2001 में सरकार ने "मठ पर निर्भर होकर आत्म विकास" वाली नीति लाकू की, इसके बाद मठ की संपत्ति, उत्पादन और संचालन गतिविधियों के जरिए भिक्षुओं के जीवन में काफ़ी सुधार आया। गौरतलब है कि वर्ष 2001 में मठ की मरम्मत के लिए सरकार ने 2.8 करोड़ युआन की पूंजी लगाई। इस तरह मठ के सांस्कृतिक अवशेषों को अधिक संरक्षण प्राप्त हुआ। साथ ही भिक्षुओं के लिए पानी तथा बिजली आदि की स्थिति में काफ़ी सुधार आया। इस तरह कुल मिलाकर तीन बार मठ का बड़े पैमाने तौर पर मरम्मत किया गया। लोका प्रिफेक्चर में सांस्कृतिक अवशेष ब्यूरो के महा निदेशक च्यांगबा त्सरिंग ने कहा: "ट्रादूक मठ का कुल मिलाकर तीन बार बड़े पैमाने पर मरम्मत किया जा चुका है। अंतिम बार पिछले साल हुआ था। अब सांस्कृतिक अवशेषों को सुरक्षित रखने के लिए सुरक्षा उपकरण लगाए जा रहे हैं। हाल ही में टेंडर का काम समाप्त हो गया है,जिसपर 30 लाख युआन से अधिक का निवेश किया गया है।"
मठ की सुरक्षा को मज़बूत किए जाने का साथ-साथ उसके आसपास का वातावरण भी बदल रहा है। वर्ष 2001 में कस्बे में मिनी बस के चलने से मठ के दर्शन करने आने वाले श्रृद्धालुओं को अधिक सुविधाएं मिलने लगी हैं। मिनी बस चलाने वाले ड्राइवर, तिब्बती बंधु दावा ने उस समय की स्थिति का परिचय देते हुए बताया: "उस समय 19 मिनी बसें चलती थीं, जो हर दिन कुल 7 बार चक्कर लगाती थीं। त्योहारों के दौरान पूरी बस लोगों से खचाखच भर जाती थी। यहां तक कि तिब्बती पंचांग के नये साल के दौरान बसें 7 से अधिक बार चक्कर लगाती थी।"
गत शताब्दी के अस्सी के दशक में ट्रादूक क्षेत्र मूल रूप से ट्रादूक मठ को केंद्र बनाकर एक छोटा-सा गांव था। इतने सालों में विकास होने के बाद अब ट्रादूक मठ तथा उसके आसपास का क्षेत्र ट्रादूक कस्बा बन गया है। जहां आबादी भी बढ़ गई है। आज ट्रादूक कस्बे में रास्ते साफ़-सुथरे और चौड़े हैं। पूरे कस्बे की परियोजना ट्रादूक मठ से घिरा है।