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    ट्रादूक मठ का कल और आज
    2016-01-22 19:04:06 cri

    स्थानीय वासी ट्रादूक मठ में पूजा करते हुए 

    64 वर्षीय त्सरिंग रोचे रोजाना अपनी पोती को लेकर मठ में बुद्ध मूर्ति की पूजा करते हैं। स्थानीय निवासी के रूप में त्सरिंगरोच ने ट्रादूक कस्बा में सुधार किए जाने की प्रक्रिया में भाग लिया। अपने अनुभव बताते हुए उन्होंने कहा: "पहले ट्रादूक मठ में इतनी रौनक नहीं होती थी। सड़क भी नहीं थी। हर क्षेत्र में स्थिति अब की तुलना में बहुत ज्यादा अच्छी नहीं थी। अब रास्ता ही नहीं, बल्कि रिहायशी इलाकों के बीच सड़क और सड़क पर प्रकाश व्यवस्था उत्तम हो गई है।"

    कनाडा से आई यात्री डायने लोका प्रिफेक्चर की सैर करने के दौरान दृश्यों को देखकर आश्चर्य हो उठी। उन्होंने कहा कि आने से पूर्व उन्हें यहां तीसरी दुनिया देशों के समान गंदा, अव्यवस्थित तथा खराब समझा था। परंतु आने के बाद उन्होंने यहां आवास व यातायात आदि स्थितियों का बढ़िया अनुभव किया। डायने का कहना है: " यहां के रास्ते बेहद बढ़िया हैं। डेढ़ साल पहले हमें किसी ने बताया कि यहां सड़क की स्थिति बहुत खराब है। पर अब तक जो सड़कें हमने देखी वो सब बढिया हैं।"

    एक चीनी कहावत है "गुणवत्ता ग्राहकों को सुनिश्चित करता है" यानि किसी भी अच्छी चीज़ को उपेक्षा का भय नहीं है। आज लोग समय के खर्च और यात्रा के अनुभव पर ध्यान देते हैं। इसी वजह से सुविधापूर्ण यातायात और सुधार हुए पर्यावरण से अधिक से अधिक पर्यटकों को आकर्षित कर सकेंगे। यातायात और उसके आसपास के पर्यावरण में सुधार के चलते ट्रादूक मठ की बार-बार मरम्मत करने तथा संरक्षण करने के बाद अधिकाधिक पर्यटकों को आकर्षित किया जा रहा है। ट्रादूक मठ के मठाधीश मिमा त्सरिंग मठ में भिक्षुओं के गुण में सुधार बढ़ाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि उनके लिए सबसे खेद की बात है कि मठ आने के समय उनका शिक्षा स्तर जैसे पहलूओं का आधार कमजोर था। अभी भी उनके सामने कई समस्याएं मौजूद हैं। इसलिए भविष्य में नये भर्ती होने वाले भिक्षुओं की शिक्षा पर बल देंगे। उन्होंने कहा: "अब मठ में काफ़ी बदलाव आया है। बाद में हम नए भर्ती होने वाले भिक्षुओं से अनुरोध करेंगे कि वे 18 उम्र से अधिक यानी अनिवार्य शिक्षा लेने के बाद ही इच्छानुसार मठ में भाग ले सकते हैं। इस तरह हम बेहतर रूप से नए भिक्षुओं के विचार तथा संस्कृति के बारे में शिक्षा को मजबूत कर सकेंगे। इसी वजह से समाज में तथा लोगों के मन में भिक्षुओं की प्रतिष्ठा बढ़ सकेगी, साथ ही उनकी सेवा बेहतर होगी।"


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