अखिल- दोस्तों, एक बार की बात है। अमावस्या का दिन था। एक व्यक्ति उसी दिन समुद्र-स्नान करने के लिए गया, किन्तु स्नान करने के बजाय वह किनारे बैठा रहा। किसी ने पूछा, "स्नान करने आये हो तो किनारे पर ही क्यों बैठे हो? स्नान कब करोगे ?
उस व्यक्ति ने उत्तर दिया कि "अभी समुद्र अशान्त है। उसमे ऊँची-ऊँची लहरे उठ रही है; जब लहरे बंद होगी और जब उपयुक्त समय आएगा तब मैं स्नान कर लूंगा। " यह बात सुनते ही पूछने वाले को हँसी आ गयी । वह बोला, "अरे... भले आदमी ! समुद्र की लहरे क्या कभी रुकने वाली हैं ? ये तो आती रहेंगी। समुद्र-स्नान तो लहरो के थपेड़े सहकर ही करना पड़ता है। नहीं तो स्नान कभी नहीं हो सकता।"
दोस्तों, यह किस्सा हम सभी की बात है। हम सोचते है कि 'सभी प्रकार की अनुकूलताये होगी, तभी अपनी संकल्पना के अनुरूप कोई सत्कर्म करेंगे, किन्तु सभी प्रकार की अनुकुलताये जीवन में किसी को कभी मिलती नहीं। संसार तो समुद्र के समान है। जिसमे बाधा रूपी तरंगे तो हमेशा उठती ही रहेगी। एक परेशानी दूर होने पर दूसरी आएगी। जैसे वह व्यक्ति स्नान किए बिना ही रह गया, उसी प्रकार सभी प्रकार की अनुकूलता की राह देखने वाले व्यक्ति से कभी सत्कर्म नहीं हो सकता।
दोस्तों, यह बात वाकई सच है कि सत्कर्म या किसी और शुभ कार्य के लिए उपयुक्त समय की राह नहीं देखनी चाहिए। हरेक दिन और हरेक क्षण सत्कर्म के लिए अनुकूल है।
अखिल- चलिए.. हम आपको एक ओडियो सुनवाते हैं जिसमें कर्म के नियम व सिद्धांत के बारे में बताया गया है।