अखिल- S B शर्मा जी.. माफ कीजिएगा... आपने गलत समझ लिया है। चीन में रुदाली का इतिहास या संस्कृति कभी नहीं रहा। यह चीन की संस्कृति नहीं है। हमने बस यह बताया था कि आज के आधुनिक युग में लोग इतने व्यस्त रहने लगे है कि अब किसी के मर जाने पर आंसू बहाने का भी समय नहीं है। लोग किराये पर लोगो को आंसू बहाने के लिए बुलाने लगे। पर आप हमारे नियमित श्रोता है और हमें आपकी प्रतिक्रिया का बेसब्री से इंतजार रहता है। पत्र लिखने के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया।
अखिल- अगला पत्र मिला है केसिंग, ओडिसा से भाई सुरेश अग्रवाल जी का। उन्होंने लिखा है.... 20 अप्रैल को साप्ताहिक "सण्डे की मस्ती" में आज कुछ ऐसे नये अज़ब-गज़ब किस्से सुनने को मिले, जिन्हें अब तक किसी अन्य स्रोत द्वारा प्रसारित नहीं किया गया था। चीन में परिवार में किसी अपने की मृत्यु होने पर रोने हेतु मोटी रक़म अदा कर पेशेवर रुदन करने वालों को बुलाया जाना, कुछ ऐसा ही किस्सा था। हैरत की बात तो यह यह है कि रोने का यह कारोबार वहां खूब फल-फूल रहा है और एक बड़े व्यवसाय का रूप लेता जा रहा है। इसे विडम्बना नहीं तो और क्या कहेंगे कि मनुष्य के पास अपने परिजनों के लिये दो आँसू बहाने का भी वक़्त नहीं है। कार्यक्रम में गूगल द्वारा महज़ एक दिन के लिये अपना ऐसा ग्लास बाज़ार में उतारे जाने की जानकारी कि जिसके ज़रिये अपनी मेल पढ़ी जा सकेगी तथा मनचाही तस्वीरें भी खींची जा सकेंगी और जिसकी क़ीमत होगी कोई नब्बे हज़ार रुपये, जादुई कहानी जैसी लगी। इसके अलावा नीदरलैण्ड में एमर्स्टडम के समीप एक ऐसा हाइवे कि जो बिना लाइटिंग के जगमगाता है,जानकारी भी कम हैरानी से भरी नहीं थी। तक़लीफ़ में तो अस्पताल सभी जाते हैं, परन्तु अधिक ख़ुशी के मारे भी जाना पड़ सकता है, ऐसा अज़ब किस्सा आज पहली बार सुना। और हाँ, अपने मालिक के संदिग्ध हत्यारे की शिनाख़्त हेतु फ़्रांस की एक अदालत द्वारा कुत्ते को बुलाया जाना भी रोचक लगा। लिली- आगे सुरेश जी लिखते है.... कार्यक्रम की शुरुआत श्रोताओं के पत्रों से किया जाना सुखद लगा। विशेषकर, मैं साउदी अरब से भाई सादिक़ आज़मी द्वारा प्रेषित नियमित टिप्पणियों की सराहना करना चाहूँगा, जिन्हें सुन कर पता चलता है कि वह कितने मनोयोग से प्रसारण सुनते और उस पर अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराते हैं। वैसे अखिलजी के चुटकुले और शायरी का ज़िक्र न किया जाये, तो नाइंसाफी होगी।
अखिल- आपका बहुत-बहुत धन्यवाद सुरेश अग्रवाल जी। आपकी विस्तृत और सटीक प्रतिक्रिया हमें बहुत ही शानदार लगी। वाकई.. आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण होती है। अगला पत्र आया है सउदी अरब से हमारे चहेते भाई सादिक आजमी जी का....। सादिक जी लिखते है.....नमस्कार। आज एक बार फिर दिनांक 20 अप्रैल को अपना सबसे पसंदीदा और cri का नम्बर-1 कार्यक्रम "सण्डे की मस्ती" सुनने का अवसर मिला जिसे पेश किया हमारे सबसे चहेते भाई अखिल जी और मीनू जी ने। कार्यक्रम की शुरूआत मे ही आपके स्नेह और प्यार की वर्षा हुई और बड़े सुंदर अंदाज़ मे हमारे पत्रों के उत्तर दिये गए जो निसंदेह यह हमारा उत्साह वर्धन का सबसे ठोस प्रमाण है जिस लगन से हम आपको पत्र लिखते हैं ठीक उसी ज़िम्मेदारी से आप उसको कार्यक्रम मे शामिल करते हैं। अब आप ही बताएं जहां इतना प्यार बरसता हो तो कौन श्रोता उससे दूर रहना चाहेगा।
लिली- सादिक भाई... यह आपका और हमारे अन्य श्रोता दोस्तो का प्यार है। आपके प्यार की वजह से ही हम अपना कार्यक्रम आपकी उम्मीदों के मुताबिक बनाते है।
अखिल- बिल्कुल सही कहा लिली जी...। आगे सादिक जी लिखते है...आज के कार्यक्रम मे एक बहुत ही रोचक और अनूठे विषय पर चर्चा हूई जो सचमुच समाज मे नासूर बनता जा रहा है और आपसी प्यार मुहब्बत और चाहत को निगलता जा रहा है। सबसे पहले मैं अखिल जी का आभार व्यक्त करता हूं कि उन्होंने इस विषय को चुना और उस पर हमारा ज्ञानवर्धन कराते हुए चीन मे पेशेवर रूदालियों के बढ़ते प्रचलन से रूबरू करवाया। मेरा मानना है कि जिस प्रकार हमारा समाज हाई-फ़ाई जीवन की चाह मे अपने परिवार से कटता जा रहा है, वह दिन दूर नही जब अर्थी को अपनो के चार कंधे भी किराए पर लेने होंगे। यह बात न सिर्फ चीन न सिर्फ राजिस्थान बल्कि पूरे संसार की है। विशेषकर विकसित और विकासशील देशों को वास्तव मे इस पर गहन विचार करना होगा कि आधुनिक जीवन की चाह मे कहीं हम अपना सबकुछ तो नही लुटा रहे हैं।