अखिल- दोस्तो, आपने यह कहावत तो सुनी होगी कि देर आए मगर दुरुस्त आए। जी हां...यह कहावत कनाडा के डाक विभाग पर पूरी तरह से ठीक बैठती है। क्योंकि यहां के डाक विभाग ने एक अधूरे पते वाले पत्र को सही हाथों तक पहुंचाने में 45 साल लगा दिए। हुआ यूं कि एक महिला ने 1969 (उनहतर) में अपनी बहन को एक पत्र भेजा। लेकिन पत्र पर लिखे पते में नाम और शहर के अलावा अन्य जानकारियां गलत थी। इस कारण यह पत्र उस समय पते पर नहीं पहुंचा। लंबे समय बाद जब पत्र पाने वाले ने किसी अन्य वजह से अपना ठिकाना बदलकर डाक विभाग को सूचित किया कि अब इस पते पर आने वाली डाक को उसके नए पते पर भेजें तो डाक विभाग द्वारा सालों से पड़ी उस चिट्ठी के मालिक की अनायास पहचान कर ली गई। विभाग ने पत्र पाने वाले को पत्र के साथ एक नोट लिखकर भी भेजा। हालांकि इसमें चार दशकों से अधिक की हुई देरी के लिए खेद नहीं व्यक्त किया गया था बल्कि पत्र के खस्ताहाल हो जाने की स्थिति पर जरूर खेद प्रकट किया गया था।
लिली- अरे वाह.. 45 सालों के बाद जाकर लेटर मिला। यह काफी अचम्बे की बात है।
अखिल- हम्ममम...वाकई अचम्बे वाली है। चलो, मैं श्रोता दोस्तों को एक कहानी सुनाता हूं।
दोस्तों, एक 8 साल के बच्चे की मां मर जाती है। एक दिन उसके पापा ने पूछा,'बेटा..। तुझे अपनी अपनी नयी मां और मरी मां में क्या फ़र्क लगा...?'
तो वो लड़का बोला,'मेरी नई मां सच्ची है और मरी हुई मां झूठी थी।'
यह सुनके उस आदमी को झटका सा लगा और बोला, "क्यूं बेटा....। ऐसा क्यूं लगता है...?? जिसने तुझे जन्म दिया वो झूठी और कल आई हुई मां सच्ची लगती है... ??"
लड़का बोला, "जब मैं मस्ती करता था, तब मां कहती थी अगर तु इसी तरह मस्ती करेगा तो तुझे खाना नहीं दूंगी। मैं फिर भी बहुत मस्ती करता रहता और मुझे पूरे गांव से ढूंढ़ कर लाती और अपने पास बैठाकर अपने हाथों से खाना खिलाती थी। और यह नई मां कहती है कि अगर तु इसी तरह मस्ती करेगा तो तुझे खाना नहीं दूंगी और सच में उसने आज मुझे तीन दिन से खाना नही दिया"
अखिल- दोस्तो, आपको एक और बात बताना चाहता हूं....
मां तब भी रोती थी, जब बेटा पेट में लात मारता था...।
मां तब भी रोती थी, जब बेटा गिर जाता था....।
मां तब भी रोती थी, जब बेटा बुखार या सर्दी में तड़पता था....।
मां तब भी रोती थी, जब बेटा खाना नहीं खाता था....।
और
मां आज भी रोती है, जब बेटा खाना नहीं देता....।
दोस्तों, माँ की महिमा अनंत है कितना ही कह लो हमेशा अधूरी ही रहेगी ...........क्या माँ के प्यार को शब्दों में बांधा जा सकता है ? क्या उसके समर्पण का मोल चुकाया जा सकता है ? जैसे ईश्वर को पाना आसान नहीं उसी तरह माँ के प्यार की गहराई का मापना आसान नहीं क्यूँकि माँ इश्वर का ही तो प्रतिरूप है।
दोस्तों, आपको एक कविता सुनाता हूं....।
वो भी क्या दिन थे, मम्मी की गोद में और पापा के कंधे पर रहते थे...
ना पैसे की सोच, ना लाइफ के फंडे
ना कल की चिंता, ना फ्यूचर के सपने
अब कल की हैं फिक्र और अधुरे हैं सपने...
मुड़ कर देखा तो बहुत दूर हैं अपने...
मंजिलों को ढूंढते हुए, कहां खो गए हम...
आखिर, इतने बड़े क्यों हो गए हम....।।।
दिन भर काम के बाद...
पापा पूछते है कि.. कितना कमाया...
पत्नि पूछेगी.... कितना बचाया...
बेटा पूछेगा... क्या लाया...
लेकिन
मां पूछेगी... बेटा कुछ खाया.... ?????
अखिल- चलिए.. दोस्तो... सुनते है एक बढिया गाना....। उसके बाद शुरू हो जाएगी हंसगुल्लों की बरसात
अखिल- वैल्कम बैक दोस्तो, आप सुन रहे है संडे की मस्ती मेरे और लिली के साथ only on China Radio International….।।। अब हो जाओ तैयार शुरू होने जा रही है हंसगुल्लों की बरसात...।