शानदार ताशलुनपू मन्दिर
तिब्बती भाषा में ताशलुनपू मन्दिर का मतलब "शुभ पर्वत मन्दिर" है, जो तिब्बत के दूसरे बड़े शहर शिगात्से के उत्तर-पश्चिम में रिक्वाडं(सूर्य की रोशनी) पर्वत पर स्थित है। इस मन्दिर का क्षेत्रफल 1 लाख 50 हजार वर्ग मीटर है। इस मन्दिर की परिधि 3000 मीटर है। इस मन्दिर के भवन पर्वत के किनारे पर करीने से एक के ऊपर एक करके बनाए गए हैं। यह मन्दिर सुनहरी छत व लाल दीवार होने के कारण बहुत शानदार मालूम होता है।
ताशलुनपू मन्दिर का निर्माण त्सुग खापा की प्रथम पीढ़ी के शिष्य दलाई लामा त्गेडुन ग्रुबा की अध्यक्षता में 1447 में किया गया था, जो भीतरी तिब्बत में स्थित पीत सम्प्रदाय का सबसे भव्य मन्दिर था। साथ ही यह पीत सम्प्रदाय के धार्मिक नेता पंचन का निवासस्थान था।
ताशलुनपू मन्दिर के पश्चिमी भवन में स्थित बड़ी बुद्ध मूर्ति का दर्शन करने के लिए हर रोज तीर्थयात्रियों और पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। यह बुद्ध मूर्ति 26.2 मीटर ऊंची है। वह आज दुनिया में भवन के अन्दर रखी हुई सबसे बड़ी बुद्ध मूर्ति है, जो तांबे से बनी हुई है।
हान जाति की शैली का यह बौद्ध मन्दिर तिब्बत के अन्य मन्दिरों से भिन्न है। मन्दिर के मुख्य भवन में छिडं राजवंश(1644-1911) के सम्राट ताओ क्वाडं की मूर्ति रखी हुई है। मूर्ति के सामने दो फलक है, जिन पर यह लिखा हुआ है "सम्राट ताओ क्वाडं अमर रहे" और "वर्तमान सम्राट अमर रहे"। सहायक भवन में सम्राट ताओ क्वाडं और उनसे पहले के कई सम्राटों के आदेश पत्र, प्राचीन दुर्लभ वस्तुएं तथा बुद्ध मूर्तियां सुरक्षित हैं, जिन में थाडं राजवंश(618-907) में कांस्य से बनी नौ बुद्ध मूर्तियां, य्वान राजवंश(1279-1368) की नंगी बुद्ध मूर्ति तथा मिडं राजवंश(1368-1644) के प्राचीन वाद्ययंत्र व रेशमी कपड़े शामिल हैं। ये दुर्लभ वस्तुएं तिब्बत व हान जातियों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों के साक्षी हैं।