सू शोः
सुंग राजवंश में सू शो ( सू चो का कसीदा) उद्योग का बड़ा पैमाना बन चुका था। सू चो शहर में शो फ़ांग, शोह्वा नोंग, ग्वुनशो फ़ांग एवं शोश्यान श्यांग आदि वर्कशाप तथा गलियां विकसित हुए थे, जहां कसीदा उत्पादन केन्द्रित था। मिंग राजवंश में सू शो ने कदम ब कदम अपनी विशेष स्टाइल स्थापित की थी, जिस का व्यापक प्रभाव हुआ था। छिंग राजवंश में सू शो कसीदाकारी का जोरदार विकास हुआ। उस समय शाही परिवार में इस्तेमाल किए जाने वाले अधिकांश कढ़ाई-उत्पाद सू शो के शिल्पकारों ने बनाए थे। छिंग राजवंश के अंतिम काल में शन शाओ ने सब से पहले विश्वविख्यात"फ़ांग जन शो"( सजीव कसीदा वस्तु काढ़ना) का आविष्कार किया था।
सू चो के कसीदा"सूक्ष्म, परिष्कृत, उत्कृष्ट, साफ़" होने से विश्वविख्यात है। सू शो ( सू चो का कसीदा) की तस्वीरें खूबसूरत, रंग सुहावना, सुई की विधि लचीली, कढ़ाई के काम सूक्ष्म और चित्र सजीव है।"समतल, चमकीला, सुनियोजित, सानुपातिक, सामंजस्यात्मक, महीन् , सूक्ष्म व सघन" इस शिल्प कला की विशेषताएं हैं। कढ़ाई के काम दो किस्मों में बंटते हैं। एक, रजाई कवर, तकिया कवर और गद्दी जैसे व्यवहारिक उपयोग की चीजें हैं। दो, टेबल स्क्रीन, हैंगिंग स्क्रॉल और स्क्रीन आदि कला की चीज़ें हैं। इस की विषयवस्तु में फूल पौधा, जीवजंतु, मानव, प्राकृतिक दृश्य और सुलेखन आदि शामिल हैं। डबल कशीदारी में "सुनहरी मछली" व "छोटी बिल्ली"सू शो का प्रतिनिधित्व करने वाली कृति हैं।