2025 चीन के लिए सिर्फ़ आँकड़ों का साल नहीं रहा, यह सोच बदलने का साल रहा। तेज़ growth से आगे बढ़कर अब फोकस है sustainable और quality development पर। Economy, science, space या green development…. हर जगह एक साफ़ संदेश मिला: आज से ज़्यादा ज़रूरी है कल की मजबूती।
पिछले 5 सालों से भारत और चीन के बीच जो तल्खी और तनाव सरहद पर जमा था, साल 2025 ने उस जमी हुई बर्फ़ को पिघलाकर 'पुनरुत्थान' की एक नई कहानी लिखी है। इस वर्ष का सबसे बड़ा क्षण अगस्त में आया, जब SCO शिखर सम्मेलन के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग की ऐतिहासिक मुलाकात हुई। इस महत्वपूर्ण बैठक में दोनों नेताओं ने साफ किया कि वे अब प्रतिद्वंद्वी नहीं, बल्कि विकास के साथी हैं, और मतभेदों को विवाद नहीं बनने दिया जाएगा, बल्कि रिश्ते की नींव विश्वास, सम्मान और संवेदनशीलता पर टिकी रहेगी। कूटनीति से इतर, आम जनता के लिए भी रास्ते खुले हैं: जुलाई में चीनी पर्यटकों के लिए टूरिस्ट वीज़ा फिर से शुरू हुआ, और अक्टूबर में 5 साल बाद कोलकाता से क्वांगचो के लिए पहली सीधी फ्लाइट उड़ी, जिससे व्यापार और लोगों से लोगों का संपर्क मजबूत हुआ।
बीजिंग की गलियों में भारतीय खुशबू कैसी गूंजती है? यही कहानी सुना रहे हैं रबियुल बख्श, जो चीन की राजधानी में ‘दास्तान इंडियन रेस्तरां’ की नींव रखने वाले संस्थापक और मास्टर शेफ दोनों हैं।
आज दुनिया एक नए चौराहे पर खड़ी है, जहाँ एशिया की भूमिका बढ़ रही है। चीन और भारत— एशिया के ये दो दिग्गज — दुनिया के भविष्य को आकार देने की क्षमता रखते हैं। दोनों देशों के विकास के रास्ते अलग हैं: चीन लंबी योजनाओं और स्थिरता पर जोर देता है, जबकि भारत अपनी लोकतांत्रिक विविधता और खुले संवाद की ताकत से आगे बढ़ता है। व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के बीच मतभेदों के बावजूद, दोनों के बीच सहयोग की गुंजाइश बनी हुई है। एक बदलती दुनिया में भारत-चीन संबंध न केवल एशिया बल्कि वैश्विक संतुलन के लिए महत्वपूर्ण हैं। संवाद और समझदारी से ही दोनों देश मिलकर एक बेहतर भविष्य की नींव रख सकते हैं।
समुद्र में हर मिनट एक ट्रक जितना प्लास्टिक गिर रहा है। लेकिन अच्छी बात ये है कि इसे ठीक करने की शुरुआत हो चुकी है। चीन में एक मॉडल ने दिखा दिया कि जब लोग मिलकर काम करें, तो समुद्र भी राहत की साँस ले सकता है। सबसे दिलचस्प बात ये है कि जमीन पर जो प्लास्टिक बोतल कुछ रुपये में बिकती है, समुद्र से निकली वही बोतल कई गुना ज्यादा कीमत पर खरीदी जाती है। नतीजा ये कि मछुआरों की कमाई भी बढ़ रही है और समुद्र का बोझ भी हल्का हो रहा है। यह पूरी कहानी याद दिलाती है कि बदलाव हमेशा उन्हीं के हाथों से आता है जो जमीन से जुड़े रहते हैं। वीडियो ज़रूर देखें...
दुनिया आज ऐसे उतार–चढ़ाव से गुजर रही है, जो पिछले कई दशकों में देखने को नहीं मिले। पुरानी एकध्रुवीय व्यवस्था ढह रही है और पश्चिमी देशों की वह ताकत, जो अपने आपको हकदार मानकर दुहरी नीति चलाती थी, अब कमजोर पड़ती दिख रही है। सालों तक इस व्यवस्था को बचाए रखने के लिए युद्ध होते रहे, संस्थाएँ टूटती रहीं और संसाधन बर्बाद होते गए। अब वक्त है कि हम एक नए वैश्विक ढाँचे के निर्माण में अपनी भूमिका निभाएँ, जहाँ हर देश का हित मायने रखे और अंतरराष्ट्रीय कानून ही असली आधार बने।
समुद्र में प्लास्टिक का कचरा दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि हर मिनट एक ट्रक जितना कचरा पानी में जा गिरता है। देखें तो लगता है जैसे समस्या इतनी बड़ी है कि इसे ठीक करना मुश्किल है। लेकिन चीन में एक ऐसी पहल हुई है जिसने साबित कर दिया कि अगर सोच बदल जाए, तो रास्ते खुद-ब-खुद निकल आते हैं।
हर साल जैसे ही नवंबर की ठंडी हवाएं दिल्ली की गलियों में दस्तक देती हैं, हवा में कुछ और भी घुल जाता है- धुआं और धूल। वह धुंध जो कभी रोमांटिक लगती थी, अब बेचैनी का कारण बन गई है। सुबह उठते ही खिड़की के बाहर जो दिखता है, वह कुहासा नहीं, बल्कि जहरीली हवा की एक मोटी परत होती है, जो पराली, गाड़ियों के धुएं, और निर्माण की धूल का एक जानलेवा कॉकटेल है। सड़कों पर धुएं की चादर, मास्क में लिपटे चेहरे और घरों में बंद खिड़कियां, यह नज़ारा अब इतना आम हो गया है कि एक लाचारी का एहसास होने लगता है।
आपने टीवी पर या सोशल मीडिया पर COP 30 का नाम ज़रूर सुना होगा। इन दिनों ब्राजील के अमेज़न के बीच बसे बेलेम शहर में दुनिया के बड़े नेता, वैज्ञानिक, कार्यकर्ता और युवा एक छत के नीचे बैठे हैं। सबके मन में एक ही बेचैन करने वाला सवाल है कि आखिर हम इस धरती को कब तक ऐसे ही जलते हुए देखते रहेंगे। लेकिन सच पूछिए तो ज़्यादातर लोग आज भी नहीं जानते कि यह COP है क्या, इसकी ज़रूरत क्यों है और इसका असर हम सबकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर कैसे पड़ता है। आइए, आज की न्यूज़ स्टोरी में इस पूरी कहानी को साफ और सरल भाषा में समझते हैं।
इन दिनों ब्राज़ील के अमेज़न के दिल में बसे बेलेम शहर में दुनिया की नज़रें टिकी हैं। COP 30 सिर्फ एक सम्मेलन नहीं, बल्कि समय के उस मोड़ पर खड़ी पुकार है जहाँ धरती खुद सवाल कर रही है कि इंसान आखिर कब सुधरेगा। टीवी और सोशल मीडिया पर इसका नाम जितना गूँज रहा है, उतना ही कम लोग जानते हैं कि यह है क्या और क्यों दुनिया इसके इर्दगिर्द घूम रही है।
चीन की राजधानी बीजिंग की एक प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी, बीजिंग फॉरेन स्टडीज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर विकास कुमार सिंह के साथ इस विशेष पॉडकास्ट में खुलकर बात हुई है। हमने चर्चा की चीन में हिन्दी सीखने के कारणों पर, चीन-भारत के बीच बढ़ते संवाद पर और चीन के बदलते समय पर।
दिल्ली की सर्दियाँ कभी स्वेटर और अदरक वाली चाय का मौसम थीं। अब ये आँख जलाने और मास्क कसने का मौसम बन गई हैं। हर नवंबर वही पुराना सवाल लौट आता है: सूरज दिखेगा भी या नहीं? साँस आएगी भी या नहीं? हमने न्यूज़ स्टोरी की इस नई वीडियो में इसी पर बात की है। क्यों दिल्ली की हवा हर साल ज़हर बन जाती है? और कैसे पेइचिंग, जो कभी धुएँ में डूबा शहर था, आज साफ आसमान देखता है? फर्क बस इतना है कि वहाँ बातों से ज़्यादा काम हुआ। पूरा वीडियो देखें और अपना नजरिया बताएं।