आज दुनिया एक नए चौराहे पर खड़ी है, जहाँ एशिया की भूमिका बढ़ रही है। चीन और भारत— एशिया के ये दो दिग्गज — दुनिया के भविष्य को आकार देने की क्षमता रखते हैं। दोनों देशों के विकास के रास्ते अलग हैं: चीन लंबी योजनाओं और स्थिरता पर जोर देता है, जबकि भारत अपनी लोकतांत्रिक विविधता और खुले संवाद की ताकत से आगे बढ़ता है। व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के बीच मतभेदों के बावजूद, दोनों के बीच सहयोग की गुंजाइश बनी हुई है। एक बदलती दुनिया में भारत-चीन संबंध न केवल एशिया बल्कि वैश्विक संतुलन के लिए महत्वपूर्ण हैं। संवाद और समझदारी से ही दोनों देश मिलकर एक बेहतर भविष्य की नींव रख सकते हैं।
समुद्र में हर मिनट एक ट्रक जितना प्लास्टिक गिर रहा है। लेकिन अच्छी बात ये है कि इसे ठीक करने की शुरुआत हो चुकी है। चीन में एक मॉडल ने दिखा दिया कि जब लोग मिलकर काम करें, तो समुद्र भी राहत की साँस ले सकता है। सबसे दिलचस्प बात ये है कि जमीन पर जो प्लास्टिक बोतल कुछ रुपये में बिकती है, समुद्र से निकली वही बोतल कई गुना ज्यादा कीमत पर खरीदी जाती है। नतीजा ये कि मछुआरों की कमाई भी बढ़ रही है और समुद्र का बोझ भी हल्का हो रहा है। यह पूरी कहानी याद दिलाती है कि बदलाव हमेशा उन्हीं के हाथों से आता है जो जमीन से जुड़े रहते हैं। वीडियो ज़रूर देखें...
दुनिया आज ऐसे उतार–चढ़ाव से गुजर रही है, जो पिछले कई दशकों में देखने को नहीं मिले। पुरानी एकध्रुवीय व्यवस्था ढह रही है और पश्चिमी देशों की वह ताकत, जो अपने आपको हकदार मानकर दुहरी नीति चलाती थी, अब कमजोर पड़ती दिख रही है। सालों तक इस व्यवस्था को बचाए रखने के लिए युद्ध होते रहे, संस्थाएँ टूटती रहीं और संसाधन बर्बाद होते गए। अब वक्त है कि हम एक नए वैश्विक ढाँचे के निर्माण में अपनी भूमिका निभाएँ, जहाँ हर देश का हित मायने रखे और अंतरराष्ट्रीय कानून ही असली आधार बने।
समुद्र में प्लास्टिक का कचरा दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि हर मिनट एक ट्रक जितना कचरा पानी में जा गिरता है। देखें तो लगता है जैसे समस्या इतनी बड़ी है कि इसे ठीक करना मुश्किल है। लेकिन चीन में एक ऐसी पहल हुई है जिसने साबित कर दिया कि अगर सोच बदल जाए, तो रास्ते खुद-ब-खुद निकल आते हैं।
हर साल जैसे ही नवंबर की ठंडी हवाएं दिल्ली की गलियों में दस्तक देती हैं, हवा में कुछ और भी घुल जाता है- धुआं और धूल। वह धुंध जो कभी रोमांटिक लगती थी, अब बेचैनी का कारण बन गई है। सुबह उठते ही खिड़की के बाहर जो दिखता है, वह कुहासा नहीं, बल्कि जहरीली हवा की एक मोटी परत होती है, जो पराली, गाड़ियों के धुएं, और निर्माण की धूल का एक जानलेवा कॉकटेल है। सड़कों पर धुएं की चादर, मास्क में लिपटे चेहरे और घरों में बंद खिड़कियां, यह नज़ारा अब इतना आम हो गया है कि एक लाचारी का एहसास होने लगता है।
आपने टीवी पर या सोशल मीडिया पर COP 30 का नाम ज़रूर सुना होगा। इन दिनों ब्राजील के अमेज़न के बीच बसे बेलेम शहर में दुनिया के बड़े नेता, वैज्ञानिक, कार्यकर्ता और युवा एक छत के नीचे बैठे हैं। सबके मन में एक ही बेचैन करने वाला सवाल है कि आखिर हम इस धरती को कब तक ऐसे ही जलते हुए देखते रहेंगे। लेकिन सच पूछिए तो ज़्यादातर लोग आज भी नहीं जानते कि यह COP है क्या, इसकी ज़रूरत क्यों है और इसका असर हम सबकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर कैसे पड़ता है। आइए, आज की न्यूज़ स्टोरी में इस पूरी कहानी को साफ और सरल भाषा में समझते हैं।
इन दिनों ब्राज़ील के अमेज़न के दिल में बसे बेलेम शहर में दुनिया की नज़रें टिकी हैं। COP 30 सिर्फ एक सम्मेलन नहीं, बल्कि समय के उस मोड़ पर खड़ी पुकार है जहाँ धरती खुद सवाल कर रही है कि इंसान आखिर कब सुधरेगा। टीवी और सोशल मीडिया पर इसका नाम जितना गूँज रहा है, उतना ही कम लोग जानते हैं कि यह है क्या और क्यों दुनिया इसके इर्दगिर्द घूम रही है।
चीन की राजधानी बीजिंग की एक प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी, बीजिंग फॉरेन स्टडीज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर विकास कुमार सिंह के साथ इस विशेष पॉडकास्ट में खुलकर बात हुई है। हमने चर्चा की चीन में हिन्दी सीखने के कारणों पर, चीन-भारत के बीच बढ़ते संवाद पर और चीन के बदलते समय पर।
दिल्ली की सर्दियाँ कभी स्वेटर और अदरक वाली चाय का मौसम थीं। अब ये आँख जलाने और मास्क कसने का मौसम बन गई हैं। हर नवंबर वही पुराना सवाल लौट आता है: सूरज दिखेगा भी या नहीं? साँस आएगी भी या नहीं? हमने न्यूज़ स्टोरी की इस नई वीडियो में इसी पर बात की है। क्यों दिल्ली की हवा हर साल ज़हर बन जाती है? और कैसे पेइचिंग, जो कभी धुएँ में डूबा शहर था, आज साफ आसमान देखता है? फर्क बस इतना है कि वहाँ बातों से ज़्यादा काम हुआ। पूरा वीडियो देखें और अपना नजरिया बताएं।
ज़रा कल्पना कीजिए... आप एक युवा वैज्ञानिक हैं, इंजीनियर हैं या किसी नए विचार को हकीकत में बदलने की कोशिश में जुटे हैं। जोश सिर चढ़कर बोल रहा है, पर किसी कंपनी ने अब तक कोई ऑफर लेटर नहीं भेजा। अब सोचिए, अगर आप बिना किसी स्पॉन्सर या इनवाइट के सीधे चीन जाकर अपनी पढ़ाई, रिसर्च, इनोवेशन या बिजनेस शुरू कर सकें, तो कैसा लगेगा? सुनने में सपना लगता है, लेकिन ये हकीकत बन चुका है। चीन ने 1 अक्टूबर 2025 से नया ‘K’ वीज़ा लागू कर दिया है और इसके साथ ही दुनिया के युवाओं को एक खुला निमंत्रण दे दिया है।
चीन की 14वीं पंचवर्षीय योजना की शुरुआत साल 2021 में हुई थी और यह इस साल, 2025 में खत्म हो रही है। यह योजना देश के अगले पाँच साल के विकास की राह दिखाती है। इसका मकसद सिर्फ तेज़ आर्थिक वृद्धि हासिल करना नहीं है, बल्कि समझदारी और संतुलन के साथ आगे बढ़ना है। इस योजना में विज्ञान और तकनीक पर खास जोर दिया गया है, ताकि चीन आत्मनिर्भरता की दिशा में बढ़ सके। इसका मुख्य लक्ष्य लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाना और साल 2035 तक चीन को एक आधुनिक और मज़बूत देश के रूप में खड़ा करना है। इस विषय पर और गहराई से बात करने के लिए हमारे साथ जुड़े हैं इंडिया-चाइना इकोनॉमिक एंड कल्चरल काउंसिल के सेक्रेटरी जनरल मोहम्मद साकिब।
अगर आप आज किसी चीनी शहर की सड़क पर निकलें, चाहे बीजिंग की तेज़ रफ्तार हाईवे, शनचन की स्मार्ट लेन या शांगहाई के बिज़नेस ज़ोन में, तो एक बात तुरंत नज़र आती है: सड़कों पर दौड़ती इलेक्ट्रिक कारें। पेट्रोल और डीज़ल की गाड़ियाँ अब पीछे छूटती यादों जैसी लगती हैं। एक समय था जब चीन को “साइकिलों का देश” कहा जाता था, और आज वही देश दुनिया का सबसे बड़ा इलेक्ट्रिक वाहन (EV) निर्माता और उपभोक्ता बन चुका है। यह सिर्फ गाड़ियों का बदलाव नहीं, बल्कि सोच और नीतियों के नए दौर की कहानी है।