बताया जाता है कि बौद्ध धर्म के अनुयायियों के सूत्र मुद्रित करने के आरक्षण के पूर्व उन्हें सूत्र मुद्रण गृह को दान के रूप में 25 किलो. घी-तेल देना होता है। जिसका प्रयोग सूत्र संस्करण को भिगाने में किया जाता है। इस तरह श्रद्धालुओं का आरक्षण पूरा हुआ। तमाम लोग देगे बौद्ध सूत्र मुद्रण गृह में सूत्र मुद्रित करने आते हैं। श्रद्धालुओं के समर्थन और विश्वास के चलते इस मुद्रण गृह का लगातार विकास हो रहा है।
देगे सूत्र मुद्रण गृह में प्रचलित परम्परागत नक्काशी, प्रिटिंग तकनीक और प्रक्रमण का इतिहास बहुत पुराना है, जिन्हें वर्ष 2009 में संयुक्त राष्ट्र"मानव जाति के गैर-भौतिक सांस्कृतिक विरासत की सूची "में शामिल किया गया।
हाल के वर्षों में देगे बौद्ध सूत्र मुद्रण गृह लगातार प्रसिद्ध हो रहा है। देगे तिब्बती संस्कृति को विश्व के विभिन्न स्थलों तक पहुंचाया जाता है और विभिन्न तबकों के लोग देगे सांस्कृतिक विरासतों पर ख्याल रखते हैं। अधिक से अधिक पर्यटक इस का दौरा करने आते हैं। इससे मुद्रण गृह के संरक्षण में कठिनाई सामने आई। देगे कांउटी के संस्कृति और पर्यटन ब्यूरो के अधीन पर्यटन विभाग के प्रधान चांग योंग के अनुसार वर्तमान में कांउटी ने देगे बौद्ध सूत्र मुद्रण गृह के संरक्षण को मज़बूत करने के लिए कदम उठाया। उन्होंने कहा:
"हमने बौद्ध सूत्र मुद्रण गृह के आस पड़ोस क्षेत्र में सुधार के लिए पूंजी लगाई। गृह के संरक्षण के लिए कदम उठाए, ताकि व्यक्तियों द्वारा और दूसरी वस्तुओं द्वारा बौद्ध सूत्र मुद्रण गृह तक पहुंचे नुकसान को कम किया जा सके। अब पर्यटक गृह में फोटो नहीं खींच सकते। बाद में हम आने वाले पर्यटकों के प्रबंधन के लिए कदम भी उठाएंगे।"