26 मई शाम को भारतीय दूतावास में स्वामी विवेकानंद के कृतित्व पर पूर्व राजदूत पी.ए. नाजरथ का व्याखान था। वे 14 अलग-अलग देशों में राजदूत और काउंसल जनरल के पद पर रह चुके हैं। उनके करीब सवा घण्टे के व्याखान में स्वामी विवेकानंद के जीवनवृत, उपलब्धियां, योगदान, और आदर्शों पर प्रकाश रहा। उन्होंने बताया कि स्वामी विवेकानंद एक भारतीय धर्म गुरू थे। वो एक ऐसे इंसान थे जिसने पश्चिमी दूनिया को वेदों और योगा के भारतीय तत्व-ज्ञान से परिचित कराया। पूर्व राजदूत पी.ए. नाजरथ ने स्वामी विवेकानन्द के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि स्वामी विवेकानन्द ने अपना जीवन अपने गुरुदेव रामकृष्ण परमहंस को समर्पित कर चुके थे। उनके गुरुदेव का शरीर अत्यन्त रुग्ण हो गया था। गुरुदेव के शरीर-त्याग के दिनों में अपने घर और कुटुम्ब की नाजुक हालत व स्वयं के भोजन की चिन्ता किये बिना वे गुरु की सेवा में सतत संलग्न रहे।
उन्होंने आगे बताते हुए कहा कि उन्तालीस वर्ष के संक्षिप्त जीवनकाल में स्वामी विवेकानन्द जो काम कर गये वे आने वाली अनेक शताब्दियों तक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे। तीस वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो, अमेरिका के विश्व धर्म सम्मेलन में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया और उसे सार्वभौमिक पहचान दिलवायी। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने एक बार कहा था-"यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानन्द को पढ़िये। उनमें आप सब कुछ सकारात्मक ही पायेंगे, नकारात्मक कुछ भी नहीं।"
पी.ए. नाजरथ ने अपने व्याखान मे बताया कि विवेकानन्द पुरोहितवाद, धार्मिक आडम्बरों, कठमुल्लापन और रूढ़ियों के सख्त खिलाफ थे। उन्होंने धर्म को मनुष्य की सेवा के केन्द्र में रखकर ही आध्यात्मिक चिंतन किया था।
उन्होंने बताया कि स्वामीजी ने संकेत दिया था कि विदेशों में भौतिक समृद्धि तो है और उसकी भारत को जरूरत भी है लेकिन हमें याचक नहीं बनना चाहिये। हमारे पास उससे ज्यादा बहुत कुछ है जो हम पश्चिम को दे सकते हैं और पश्चिम को उसकी ज्यादा जरूरत है।