उन्होंने भारत जाकर योगा और भरतनाट्यम नृत्य भी सीखा। उन्हें भारत की संस्कृति से लगाव है और इन्हें समझने मे अपनी तत्परता दिखाती रहती है। उन्होंने भारत के सभी वाद्दयंत्रो के संग यांगछीन बजाया है।
कश्मीर में अपना कार्यक्रम देने के बाद प्रो. लियु ने बताया कि कश्मीरी म्यूज़िक काफी हद तक चीन के पारंपरिक म्यूज़िक से मिलता-जुलता है। कश्मीर की घाटी के संगीतकारों के साथ बातचीत कर उन्होंने कहा था कि दोनों देशों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध और भाईचारे का माहौल बनाने के लिए, बौद्धिक समुदाय एक निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।
वह बताती है कि भारत और उसकी संगीत परम्परा अक्सर उन्हें अपनी तरफ खींचती है। जब वह दिल्ली में 8 महीने तक रही थी, तो उन्होंने हर तरह का भारतीय संगीत सुना, बाँलीवुड गाने भी। उन्होंने पंडित शिवकुमार शर्मा से संतूर सीखा। वह बताती है कि कोलकाता में सितार वादक पंडित प्रतीक चौधरी के साथ यानछींग बजा चुकी है।
प्रो. लियु की माँ डाक्टर है, और उनके पिता एक बिजनेसमैन है। उनको यांगछीन सीखने का अवसर तब मिला, जब उनके पिता के मित्र, एक यांगछीन वादक थे, उनके घर आये। जब उन्होंने वो वाद्दयंत्र बजाया, तो प्रो. लियु उसके तरंगो की आवाज से प्यार हो गया था। वह 12 साल की थी, जब उन्होंने यांगछीन सीखने के लिए पेइचिंग स्थित सेंट्रल कंजरवेट्री आफ म्यूज़िक (सीसीओएम) में प्रवेश लिया, और उनको वहां 34 साल हो गये है। आज वह उस कंजरवेट्री में प्रोफेसर है।
जब हमने पदमश्री सम्मान से सम्मानित संतूर वादक पंडित तरूण भट्टाचार्य से प्रो. लियु येनिंग के बारे मे बात की, तो उन्होंने बताया:अभी हाल में आयोजित कंसर्ट की परिचारिका रीता बिमानी ने प्रो. लियु के बारे मे बताया कि:अंत में, प्रो. लियु ने बताया कि उनकी प्रतिभा भगवान की ओर से दिया हुआ एक उपहार है और वह एक उद्देश्य के लिए इसका उपयोग करती रहेगी। उन्होंने यह भी कहा कि वह किसी धर्म को फोलो नही करती है, लेकिन हर छोटी-छोटी चीजों में वह खुशी तलाशती है। उनका मानना है कि उनका संगीत उनका विस्तार है।