तुंग फांग संगीत-नृत्य समूह के पूर्व उपाध्यक्ष च्यो ची छांग न केवल नर्तकी च्यांग च्यून का छात्र था, बल्कि उन्होंने च्यांग च्यून के साथ इंडोनेशिया का नृत्य सीखा था। इसलिए च्यांग च्यून च्यो ची छांग की अध्यपिका, सहयोगी और अच्छी मित्र थीं। उन्होंने कहा, पूर्वी देशों के संगीत और नृत्य सीखने में सुश्री च्यांग च्यून ने सृजन किया था और कला के नए क्षेत्र का विस्तार भी किया था। उन्हें पूर्वी देशों की कला क्षेत्र में एक महान नर्तकी और पूर्वी देशों के संगीत-नृत्य कार्य की संस्थापक माना गया है। उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए कार्यक्रम का विषय विविधतापूर्ण है और उनकी जानकारी ज्यादा है। वे इंडोनेशिया, कम्बोडिया, म्यांमार, जापान और थाईलैंड का नृत्य कर सकती थी, जिनमें कुछ उनके प्रतिनिधि और श्रेष्ठ कार्यक्रम हैं। वे एक श्रेष्ठ कलाकार थीं।
भारतीय नृत्य विश्व में बहुत प्रसिद्घ है। नए चीन की स्थापना के बाद पहली पीढ़ी की महशूर नर्तकी के रूप में वर्ष 1954 से च्यांग च्यून ने लगातार 8 बार भारत में लोक नृत्य, भरतनाट्यम, कथक, ओडिशी, कुचीपुडी और मनीपुरी समेत सात शास्त्रीय नृत्य सीखा था। वर्ष 1980 में च्यांग च्यून ने गुजरात प्रदेश की राजधानी के अहमदाबाद के दर्पण कला अकादमी में लगातार 3 महीनों में भरतनाट्यम और कुचीपुडी आदि क्लासिक नृत्य सीखा था। रोज उन्होंने 15 घंटों तक नृत्य का अभ्यास किया था। स्वदेश लौटने से पहले उन्होंने भारत में अपने नृत्य का कार्यक्रम पेश किया था, जिससे स्थानीय लोगों का उत्साहपूर्ण स्वागत मिला था। दर्पण कला अकादमी के अध्यक्ष ने च्यांग च्यून की प्रशंसा की और कहा कि च्यांग च्यून ने एक साल के समय में दस सालों की नृत्य कक्षा सीखी।
दो सालों बाद च्यांग च्यून को दर्पण कला अकादमी की शैक्षिक उपाधि मिली। च्यो ची छांग के विचार में च्यांग च्यून को भारतीय नृत्य बहुत पसंद है।