अभी हाल में पेईचिंग विश्वविधालय में चीनी-भारतीय विश्वविद्यालय छात्र मंच का उद्घाटन हुआ। इस मंच में चीन और भारत के विश्वविद्यालयों से करीब 100 छात्रों ने भाग लिया। हमने ऐसे भारतीय छात्रों से भी मुलाकात की, जिन्हें चीन में रहते हुए 2 वर्ष से अधिक का समय हो चुका था और उनकी पढाई अब तक जारी है।
वैश्रिविक पटल पर भारत और चीन समेत एशियाई देश विकास की राह पर चल रहें हैं। लैटिन अमेरिका सहित पश्चिमी देशों का एशियाई देशों से काफी पहले विकास हो चुका है। अगर हम शहरीकरण की बात करें, तो वर्ष 1901 में भारत में कुल 10.8 फीसद आबादी ही शहरों में रहती थी। वर्ष 1991 तक यह आंकड़ा 26 प्रतिशत तक पहुंच गया था और वर्ष 2011 में 31 प्रतिशत तक। इसके विपरीत चीन का शहरीकरण पहले ही हो चुका था। वर्ष 1991 में एक-तिहाई चीनी लोग शहरों में रहते थे। वर्ष 2011 तक यहाँ आधी आबादी शहरों में बस चुकी थी। तमाम विकासशील देशों में शहरीकरण तेजी से हो रहा है। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिये चीन ने पहल की और अपने देश में विदेशी गाड़ियों, भारी उद्योग, मध्यम और लघु उद्योगों के कारखाने लगवाए और अपने देश में कम खर्च में अंतर्राष्ट्रीय स्तर के उत्पादों का निर्माण का काम शुरु किया। इसके अलावा चीन ने अपने देश की भी ब्रांडिंग की और विदेशी वस्तुओं के अलावा अपने देश की कंपनियों को भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर के मुताबिक विकसित किया जिससे आज चीन गर्व से अपना सिर ऊंचा कर खड़ा है और विश्व की सबसे बड़ी उभरती हुई आर्थिक महाशक्ति बन गया है। भारत को चीन से सबक लेते हुए अपने आर्थिक विकास की दशा और दिशा तय करना चाहिये जिससे भारत में भी नवयुवकों को रोज़गार मिल सके और भारत एक महाआर्थिक शक्ति बन सकें।
जब हमने कुछ छात्रों से चीन के बारें में उनकी राय जानना चाह तो सभी का कहना था कि चीन ने भारत से कई गुणा तरक्की की है। जब यह पूछा गया कि एक देश की तरक्की के लिये क्या-क्या मूलभूत आवश्यकताएं होती है, तो सभी का मानना था कि किसी देश की तरक्की में सबसे महत्वपूर्ण होता है आधारभूत ढांचा, जैसे सड़कें, बिजली, रोज़गार के साधन, चिकित्सा, खान पान और रहन सहन का स्तर और चीन इन सब पर काफी हद तक खरा उतरता है।