चीन मे कलात्मक क्रियाकलाप को अलग अलग समय और स्थानों में अन्य कई नामों से जाना जाता है। पहले पेकिंग ओपेरा का चीनी नाम शीपी और अरहुआंग धुन के संयोजन पर था, जिसे पीहुआंग के नाम से जाना जाता था। जैसे जैसे इसकी लोकप्रियता बढ़ती गई, इसका नाम चिंग-चु या चिंग-शी हो गया जोकि राजधानी पेइचिंग के चिंग शब्द को दर्शाता है और कला के रूप को शी कहा जाता है। 1927 से 1949 तक पेइचिंग को पेइपींग के नाम से जाना जाता था, और पेकिंग ओपेरा को पींग-शी या पींग-चु कहा जाने लगा। अंत में, चीन लोक गणराज्य की स्थापना होने के साथ राजधानी शहर का नाम वापस पेइचिंग कर दिया गया, और चीन मे पेइचिंग थियेटर का औपचारिक नाम चिंग-चु स्थापित कर दिया गया।
पेकिंग ओपेरा का जन्म तब हुआ जब "चार महान आनहही मंडली" छीअनलोंग राजा के जन्मदिन पर अनहोही ओपेरा को सन् 1970 में पेइचिंग ले कर आये। अनहोही ओपेरा को होए-चु कहा जाता है। उसका पहले सिर्फ दरबार मे ही अभिनय किया जाता था, और बाद मे जनता के लिए उपलब्ध करा दिया गया। सन् 1828 मे कई प्रसिद्ध हुपेई मंडली पेइचिंग आये और अनहोही मंडली के साथ मिलकर अभिनय किया। यह संयोजन धीरे धीरे पेकिंग ओपेरा की धुन बन गया। आमतौर पर माना जाता है कि 1845 तक आते आते पेकिंग ओपेरा पूर्ण रूप से विकसित हो गया। हालांकि इसे पेकिंग ओपेरा कहा जाता है, परन्तु इसकी उत्पत्ति दक्षिण अनहोही और पूर्वी हुपेई मे हुई, जोकि शी-चिआंग चीनी भाषा की समान बोली का प्रयोग किया जाता है।
पेकिंग ओपेरा की दो मुख्य धुने हैं: शीपी और अरहुआंग, जोकि सन 1750 के बाद हान ओपेरा से उत्पन्न हुई। पेकिंग ओपेरा की धुन काफ़ी हद तक हान ओपेरा से मिलती जुलती हैं, इसलिए हान ओपेरा को व्यापक रूप से पेकिंग ओपेरा की जननी कहा जाता हैं। शीपी का हुबहू अर्थ हैं "कठपुतली शो" जोकि शानक्सी प्रांत में उत्पन्न हुआ। चीनी कठपुतली शो सदैव संगीत मे लिप्त रहता हैं। ज्यादातर संवाद मंदारिन चीनी भाषा के पुरातन रूप में बोले जाते हैं। पेकिंग ओपेरा का कोई एकाश्म रूप नहीं हैं, बल्कि कई पुराने रूपों का सम्मिलन हैं। हालाँकि नया रूप इसकी खुद की नवरचना हैं।