पेकिंग ओपेरा या पेइचिंग ओपेरा जो कि चीनी भाषा में चिंग-चु कहा जाता हैं, पारंपरिक चीनी थियेटर का एक रूप है जो संगीत, वाणीयुक्त प्रदर्शन, मूकाभिनय, नृत्य और कलाबाजी का शानदार मिश्रण है। यह 18 वीं सदी के अंत में उत्पन्न हुआ और 19वीं सदी के मध्य तक पूरी तरह से विकसित हो गया। यह छिंग राजवंश के दरबार में बेहद लोकप्रिय था। पेकिंग ओपेरा चीन के सांस्कृतिक खजानों में से एक माना जाता है। उसकी ज्यादातर प्रदर्शन मंडलियां उत्तर मे बीजिंग और थियनजिन एवं दक्षिण मे शांघाई में आधारित हैं। यह कलात्मक क्रियाकलाप ताइवान में भी संरक्षित हैं, जहाँ यह कुओ-चु के नाम से जाना जाता हैं। यह अमेरिका और जापान जैसे अन्य देशों में भी फैला हुआ हैं।
पेकिंग ओपेरा में चार मुख्य प्रकार के कलाकार होते हैं। प्रदर्शन मंडलियों में अक्सर प्रत्येक किस्म के कई माध्यमिक और तृतीयक कलाकार होते हैं। वे भारी-भरकम और रंगीन वेशभूषा के साथ पेकिंग ओपेरा की विशेष विरल मंच पर अभिनय करते हैं। वे बोलने, गीत, नृत्य, और विरोध दर्शाने में निपुण होते जोकि प्रतीकात्मक और सांकेतिक होता हैं, बजाय यथार्थ के। इसके अलावा, कलाकार का कौशल उसकी अंग-भंगिमा की ख़ूबसूरती से मूल्यांकन किया जाता हैं। कलाकार विभिन्न प्रकार के शैलीगत व्यवहारों से दर्शकों को कहानी की कथावस्तु का मार्गनिर्देशन भी करते हैं। प्रत्येक भंगिमा के अर्थ को संगीत के साथ साथ समय में व्यक्त किया जाता हैं। पेकिंग ओपेरा का संगीत शीपी और अरहुआंग शैलियों में विभाजित किया जा सकता है। इसकी मधुर धुन में लय, ताल, स्थिर-लय धुन, और तालवाद्य स्वरुप आदि शामिल होता हैं। पेकिंग ओपेरा के रंगपटल पर 1400 से ज्यादा कार्य शामिल होते हैं जोकि चीनी इतिहास, पौराणिक बातें, और समकालीन जीवन से संबन्धित हैं।
सांस्कृतिक क्रान्ति के दौरान पेकिंग ओपेरा को "सामंतवादी" व "दकियानूसी" करार कर उसकी निंदा की गई, और उसकी जगह प्रचार व प्रसार के लिए आठ क्रान्तिकारी माडल ओपेरा ने ली। सांस्कृतिक क्रान्ति के बाद, यह परिवर्तन सम्भव नहीं हो पाया। हाल के वर्षो में, दर्शकों की संख्या मे गिरावट देखते हुए पेकिंग ओपेरा मे कई सुधार किए गये जैसे कि अभिनय की गुणवत्ता को बेहतर बनाना, नये अभिनय तत्वों को अपनाना, नये और मौलिक अंग-भंगिमा का अभिनय करना आदि।