यह युन्नान प्रान्त के उत्तर-पश्चिमी भाग और सिचुआन प्रान्त के दक्षिण-पश्चिमी भाग में रहते हैं। युन्नान का लिजिआंग भाग ख़ासकर इस समुदाय से सम्बंधित है। सन् 2000 में इनकी आबादी लगभग 3 लाख अनुमानित की गई थी। माना जाता है कि नाशियों के पूर्वज तिब्बत से आये थे और ज़मानों से यह चीन के तिब्बत और भारत के व्यापार में अहम भूमिका निभाते आ रहे हैं। नाशी लोग तिब्बती-बर्मी भाषा-परिवार की नाशी भाषा बोलते हैं। यह समुदाय मोसुओ समुदाय से बहुत मिलता-जुलता है, हालांकि मोसुओ लोग अभी भी अपनी तिब्बतियों से मिलती हुई पहचान बनाए हुए हैं जबकि नाशी लोगों ने चीनी सभ्यता के कुछ पहलुओं को अपना लिया है।
नाशी लोगों का अपना 'तोंगपा' नामक धर्म है। नाशी भाषा में इस शब्द का अर्थ है 'बुद्धिमान पुरुष'। इसकी शुरुआत तिब्बत से आए हुए एक तोंगपा शीलो नामक साधू से हुई मानी जाती है जो आज से लगभग 100 साल पहले बाई-शुई-ताई शहर के क़रीब एक गुफ़ा में रहते थे। इस धर्म में तिब्बत के प्राचीन बोन धर्म के बहुत से तत्व मिलते हैं। नाशी लोगों में हिन्दुओं और बौद्धों की तरह मृतों का अग्निदाह करने का रिवाज है। ये लोग मानते है कि सभी मे आत्मा है और आत्मा कभी नहीं मर सकती।
नाशी लोग खेती, और हस्तशिल्प से अपना जीवन यापन करते है। इनका सुबह का नाश्ता बेहद सीधा और हल्का होता है। ये अक्सर नाश्ते मे भाप से पकी हुई ङबल रोटी खाते है, पर दोपहर का भोजन बहुत ही आलीशान होता है। ये लोग सुअर के माँस का आचार खाना पसँद करते है।