दस दिन की यात्रा में भारतीय युवाओं को चीन की तेज प्रगति देखकर बहुत आश्चर्य हुआ। खासकर चीन के शहरों और गांवों में समान रूप से तेज विकास हो रहा है। उन्हों ने माना है कि चीन ने विकासशील देशों के सामने एक अच्छा उदाहरण पेश किया है। जितेंद्र जो पहले एक आईटी इंजीनियर थे, अब अधिक से अधिक दुभर जीवन में फंसे लोगों की मदद करने के लिये सामाजिक सेवा में शामिल हुए है। उस ने संवाददाता को बतायाः
"चीन आने के बाद मुझे काफ़ी चीजों को सीखने का मौका मिला। विशेष कर कि टेक्नालॉजी का उपयोग करके किस प्रकार से हम अपने विकास की दर को, बहुत ज़्यादा ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ाते हैं। मैं गांव से हूं। तो गांव में जो विकास की स्थिति देख पायी है, उसको हम अपने युवा साथियों के साथ शेयर करेंगे। और यहां के उपनगरों का विकास ढांचा देखा है, हम अपने गांव के पंचायत को इस बारे में अपना अनुभव बताएंगे। शायद इस दिशा में हम आगे बढ़ने के लिये बहुत अच्छे तरीके से बहुत प्रयास कर सकेंगे।"
अर्थव्यवस्था, क्षेत्रीय विकास जैसे सकल आर्थिक मामलों के अलावा, जितेन्द्र भारत और चीन के आम लोगों के खान पान व पोषण की स्थिति के बारे में भी बहुत ध्यान देते हैं। भारत में अब भी बहुत से बच्चे कुपोषण से पीड़ित हैं। जब चीन में बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य को देखकर जितेंद्र के हृदय में संवेदना हुई। वे मानते हैः
"दूसरी तरफ़ हम भारत में देखें, तो वहां के स्वास्थ्य और पोषण की स्थिति चीन की तुलना में कम कह सकते हैं। हैजीन के बारे में हमको चीन से सीखने की ज़रूरत है।"
दस दिन बहुत कम हैं. इतने समय में भारतीय युवा चीन को विस्तृत रूप से नहीं समझ सके, लेकिन भारतीय लोगों के साथ चीन के मैत्रीपूर्ण व्यवहार और चीन के तेज़ विकास को महसूस करने के लिये यह दस दिन की यात्रा काफी महत्वपूर्ण है।
भारतीय प्रतिनिधिमंडल की सदस्य प्रकृति ने भारत वापस जाने से पहले एक कविता लिखकर चीन के प्रति अपना स्नेह व्यक्त किया। जिसमें ये दो पद है कि आज के चीन को अपनी कहानी स्वयं कहने की जरूरत नहीं। प्रवाहमय प्रति सेकंड में चीन की छवि खुद बोलती है।