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चीन यात्रा पर सौ भारतीय युवाओं के अनुभव
2012-09-25 16:35:31

चीन में यह कहावत है कि सुनने से देखना विश्वसनीय होता है। चीन और भारत के बीच युवाओं का नियमित आवाजाही कार्यक्रम इस प्रकार के उद्देश्य पर ही आधारित है। प्रौद्योगिकी विकास के फलस्वरूप पूरी दुनिया एक वैश्विक गांव जैसी बन गयी है। लेकिन अगर किसी दूसरे देश की संस्कृति व रीति रिवाज से रू ब रू होना और अनावश्यक गलतफहमी और मनमुटाव मिटाना चाहे, तो खुद उसकी जमीन पर कदम रखकर अपनी आंखों से देखना चाहिये।

मध्य प्रदेश से आए भूपेंद्र सिंह ने अपनी पहली चीन यात्रा का अनुभव बताते हुए में कहा कि अब उस की नजर में चीनियों की छवि पहले की अपनी कल्पना से बिलकुल भिन्न है।

"हमारे ग्रुप के लोग यहां के लोगों से मुलाकात कर रहे हैं। मैं भाई-चारे की भावना महसूस करता हूं। ये लोग बहुत अच्छे हैं और उनसे मिलकर मुझे अच्छा लग रहा है। पहले सिर्फ़ नाम सुनता था और टीवी पर चीनी लोगों के बारे में खबर देखकर डर लगता था। परंतु यहां पहुंचकर ऐसा लगता है कि वे बहुत प्रेमप्रिय लोग हैं और मिलनसार हैं। "

युवा वर्ग किसी देश को आगे ले जाने की मुख्य शक्ति है। चीन और भारत दोनों बड़ी जनसंख्या वाला देश हैं, बड़ी युवा जनसंख्या विकास के लिए प्रेरक शक्ति भी है। चीन की यात्रा से बहुत से भारतीय युवाओं ने चीन की असलियत जानने के साथ-साथ समउम्र वाले चीनी युवाओं के साथ भी निकट संपर्क बनाया।

उत्तराखंड से आई लड़की तान्या ने संवाददाता को बताया है कि वह दोनों देशों के युवाओं के बीच मौजूद फर्क को समझने के लिये चीन आई है। यहां उसने पाया है कि जो काम के लिये यहां के युवा लोग समर्पित है, उससे सीखना बहुत ज़रूरी है। क्योंकि मैंने देखा कि यहां के ज़्यादा लोग खुद अपना सारा काम करने में विश्वास करते हैं।

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