इस दिन राजभवन में महत्वपूर्ण अनुष्ठान का आयोजन किया जाता था। समय के साथ-साथ घरों को लालटेन से सजाने के समय में भी परिवर्तन होता रहा है। हान राजवंश में सिर्फ त्योहार के दिन ही घरों को लालटेन से सजाया जाता था, जबकि थांग राजवंश में यह दिवस तीन दिन तक चलता था। सुंग राजवंश में यह अवधि बढ़कर पांच दिन की हो गयी वहीं मिंग राजवंश में यह दिवस दस दिनों तक चलता था। इन सभी राजवंशों में थांग राजवंश में घरों को लालटेन से सजाने की कला बहुत भव्य मानी जाती है। थांग राजवंश के समय चीन एक समृद्ध राष्ट्र के रूप में जाना जाता था। उस समय आम लोगों की जीवन स्थिति बहुत सुदृढ़ थी। उस समय के लोग अपने घरों को रंगबिरंगे लालटेनों से सजाने के अलावा आसपास के जगहों को भी लालटेनों से सजाते थे। लोग लंबे-लंबे बांस का प्रयोग कर ऊंचे ऊंचे लालटेन टांगते थे। उस की रोशनी में न केवल राजभवन का प्रांगण बल्कि सारा शहर रंगबिरंगी रोशनी से जगमगाता रहता था। आमतौर पर लालटेन कागज के बने होते थे, लेकिन राजभवन में प्रयुक्त कुछ लालटेन रेशम के कपड़ों के भी बने होते थे। लालटेनों की आकृति भी बहुत रोचक हुआ करता था। कई लालटेन मानव की आकृति लिए होते थे तो कई लालटेन विभिन्न तरह के जानवरों का आकार भी लिए होते थे। यह प्रथा आज भी प्रचलित है। आज भी लोग अपने घरों को तरह-तरह की आकृति वाली लालटेनों से सजाते हैं।
घरों को लालटेन से सजाने के अलावा, घर के बाहर लालटेन देखने की भी परंपरा बहुत पुरानी है। थांग और सुंग राजवंश के समय में लोग दूर-दूर से शहर में लालटेन देखने आते थे। इस दिन लालटेन की रोशनी में शहर की रौनकता में चार चांद लग जाता था। कहा जाता है कि, इस दिन अविवाहित लोग जीवन साथी की भी तलाश करते थे। शहर में लालटेन देखने के दौरान लोग अपना मनपसंद जीवनसाथी की भी तलाश करते थे। इसलिए लोग इस त्योहार का बेसब्री से इंतजार करते थे। लालटेन की बात करें तो और एक लालटेन से जुड़ी बड़ा रोचक तथ्य है। प्राचीन काल में लालटेन पर तरह-तरह की पहेलियां भी लिखी जाती थी। लोग इन पहेलियों को सुलझा कर अपनी बुद्धिमता का भी परिचय देते थे। कहा जाता है कि कुछ पहेलियां तो लोग अपने मनपसंद जीवनसाथी की तलाश में भी लिखते थे। पहेलियां न केवल लोगों के बुद्धिमता का परिचायक होता था, बल्कि लोगों की कलात्मक शक्ति का भी परिचायक होता था। उस समय लोगों में एक दूसरे को लालटेन उपहार स्वरूप भेंट करने का भी रिवाज था। लोग एक-दूसरे को खुद लालटेन बनाकर उपहार के रूप में देते थे।
युन श्याओ त्योहार पर चीनी लोगों में युन श्याओ नामक खाद्य खाने का भी रिवाज है। यह खाद्य पदार्थ आकार में बिल्कुल भारतीय रसगुल्ले की तरह होता है। इस पदार्थ का नाम युन श्याओ इसलिए पड़ा क्योंकि इसे युन श्याओ के दिन खाया जाता है। चीन के कुछ प्रांतों में इसे थांग युन भी कहा जाता है। इसके पीछे भी एक रोचक कहानी है। कहा जाता है कि हान राजवंश के सम्राट वूती के दरबार में एक जादुकार था जिसका नाम तुंग फांग स्वो था। एक बार वह जब महल में प्रवेश कर रहा था तो उसने देखा कि एक महिला कुंए में कूदकर जान देने जा रही थी। महिला का नाम युन श्याओ था। उसने तुरंत उस महिला को बचाया और उसे आत्महत्या करने का कारण पूछा। महिला ने कहा कि जब से वह महल में आयी, तब से अपने परिवारजनों से नहीं मिल पायी है। इससे अच्छा तो मर जाना ही अच्छा है। तुंग फांग स्वो ने उसे उसके परिवारजनों से मिलवाने का वादा किया। उसने सम्राट से नये साल की पहली पूर्णिमा को पूरे शहर में लालटेन टांगने और थांग युन खाने के लिए कहा और अगर ऐसा नहीं किया गया तो पूरे शहर में आपदा आ जाएगी। सम्राट ने उसकी बात मानकर पूरे शहर को लालटेन से सजवा दिया और शहरवासियों को लालटेन देखने के लिए आमंत्रित भी किया। युन श्याओ के परिवारजन भी शहर में लालटेन देखने पहुंचे। उन्होंने एक लालटेन पर युन श्याओ नाम लिखा देखा, फिर जोर-जोर से वह नाम लेकर पुकारने लगे। युन श्याओ ने जब अपना नाम पुकारते हुए सुना तो दौड़कर उस व्यक्ति के पास पहुंची और इस तरह वह अपने परिवारजनों से मिल पायी। तभी से युन श्याओ त्योहार के दिन सभी परिवारजन एक साथ मिलकर इस त्योहार को मनाते हैं और इस दिन युन श्याओ या थांग युन नामक खाद्य खाते हैं।
युन श्याओ चावल के आटे का बना एक मीठा पदार्थ है। पहले चिकनी चावल के आटे में पानी मिलाकर गूंथा जाता है, उसके बाद छोटी-छोटी टिकियों में तरह-तरह के फल, सब्जी, मांस आदि डालकर उसे गोल आकार दिया जाता है। फिर उसे पानी में उबालकर पकाया जाता है, कुछ जगहों पर तेल में भी पकाया जाता है। चीनी लोगों के सभी परिवारजन एक साथ मिलकर युन श्याओ खाते हैं।
चीन में कुछ जगहों पर इस दिन ड्रैगन नृत्य या सिंह नृत्य का आयोजन भी किया जाता है। लोग कपड़ों का इस्तेमाल कर उसे ड्रैगन या सिंह का रूप देते हैं, फिर उसे पहनकर नृत्य करते हैं। यह नृत्य बहुत रोमांचकारी होता है। कभी-कभी तो ड्रैगन की लंबाई 200 मीटर तक होती है। इतने लंबे ड्रैगन को संभालने के लिए भी लगभग पचास-साठ लोग होते हैं और वे ढ़ोल की धुन पर एक साथ थिरकते हैं। आज भी चीन के हांगकांग और मकाओ में यह नृत्य काफी प्रसिद्ध है।
श्रोता दोस्तो, अभी आप सुन रहे थे चीनी पारंपरिक त्योहार युन श्याओ त्योहार के बारे में एक रिपोर्ट। अब विकास को आज्ञा दीजिए। नमस्कार।