इस त्योहार के दिन लोग अपने घरों को तरह-तरह के लालटेन से सजाते हैं। सड़कों की गलियों में भी रंगबिरंगे लालटेन टांगे जाते हैं। लोग बाहर जाकर लालटेन देखने का आनंद भी उठाते हैं। लोगों ने लालटेन टांगना और इसे देखने का आनंद उठाना कैसे शुरू किया, इसके बारे में भी एक रोचक कहानी है। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर, कहा जाता है कि, हान राजवंश के समय का एक सम्राट मिंग ती बौद्ध धर्म में विश्वास करता था। जब उसे पता चला कि बौद्ध भिक्षु नये साल की पहली पूर्णिमा की रात को भगवान बुद्ध के शरीर की पूजा करते हैं और देखने जाते हैं तो उसने सैनिकों को पूरे राजभवन और मंदिर को कागज के बने रंगबिरंगे लालटेनों से सजाने की आज्ञा दी। साथ ही उसने आम लोगों को भी अपने घरों को लालटेनों से सजाने का हुक्म जारी किया। इस तरह बाद में यह प्रथा काफी प्रचलित हो गई और लोग इसे त्योहार के रूप में मनाने लगे। तब से ही घरों को लालटेन से सजाना एक रिवाज बन गया। हान राजवंश में हान राजवंश के सम्राट वू ती के समय यह एक महत्वपूर्ण त्योहार का रूप ले चुका था।