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थोंगरन काउंटी से तिब्बती संस्कृति की झलक
2013-11-12 16:59:51

उत्सव के दौरान थोंगरन वासी नाचते हुए

`मुंह को बन्द करना` नामक गतिविधि

वूथू नामक नृत्य करने वाले लोग

थोंगरन काउंटी में चीनी पंचांग के अनुसार प्रतिवर्ष 16 से 25 जुलाई तक एक उत्सव मनाया जाता है, जो रकोंग कला और संस्कृति का एक भाग माना जाता है। उसका इतिहास कई हजार वर्ष पुराना है। किंबदंती के अनुसार यह उत्सव ड्रैगन वाले देवता के लिए बलिदान स्वरूप मनाया जाता है।

उत्सव के दौरान गांववासी देवता को खुश करने और देवता से अर्चना करने के लिए तरह-तरह की गतिविधियां चलाते हैं, जैसे देवदार और चीड़ के पेड़ की टहनियों को जलाना, पूजा करना, नृत्य करना और पहाड़ी लोकगीन गाना आदि। छिंगहाई प्रांत की एक पर्यटन कंपनी की जिम्मेदार व्यक्ति सुश्री चाई श्याओ छ्वान ने जानकारी दी कि इस उत्सव में `मुंह को बन्द करना` नामक गतिविधि सब से विशिष्ट है। इसमें धर्मगुरू देवता के नाम पर दो लम्बी चांदी सुइयों को किसी चाहने वाले व्यक्ति के मुंह में चुभाते हैं। कहा जाता है कि ऐसा करने से बीमारियों की रोकथाम की जा सकती है। चाई श्याओ छ्वान ने कहाः "लोककथा में कहा जाता है कि दो सुइयों को मुंह में डालने का मतलब सभी विपत्तियों को भगाना और अशुभ को मिटाना है। मेडिकल दृष्टि से यह तरीका बिलकुल सुरक्षित है। क्योंकि दो सुइयों को अलग-अलग तौर पर मुंह के दोनों कालों की मांसपेशियों में जन्मी दरारों के जरिए अंदर चुभाया जाता है। इस तरह कोई चोट नहीं आती और कोई घाव नहीं पड़ता।"

उत्सव के दौरान पहाड-काटना नामक कार्यक्रम गहरे आदिमकालीन रंग लिए सब से ध्यानाकर्षक है। कार्यक्रम में धर्मगुरू धार्मिक नृत्य करने वाले किसी व्यक्ति के या खुद अपने माथे पर चाकू कर बाहर बहने वाले खून को आसमान और जमीन के देवता की बलि देते हैं, ताकि देवता के प्रति मानव की निष्ठा और सम्मान प्रकट किया जाए।

थोंगरन काउंट में तिब्बती, हान और मंगोलियाई जैसी अनेक जातियों के लोग रहते हैं। बेशक उन में तिब्बती आबादी ज्यादा है। समृद्ध तिब्बती संस्कृति अन्य जातियों की संस्कृतियों के साथ कुलमिलकर आगे विकसित होती गई है। दूसरी तरफ अन्य जातियों की संस्कृतियां संरक्षण एवं विकास दोनों की दृष्टि से जरा भी कमतर नहीं है। यहां भी चीन की एक अल्कपसंख्यक जाति—थू जाति के लोग रहते हैं। इस जाति का ऊ थु नामक नृत्य स्थानीय धार्मिक नृत्यों में से एक है, जो बहुत प्रचलित है।

थोंगरन काउंटी में थू जाति का न्यैन बु हू नामक गांव इस नृत्य का जनक है। यहां प्राचीन काल में गांववासी बीमारी लाने वाले कथित भूत को भगाने में यह नृत्य करते थे। इस नृत्य में बाघ और अन्य खूंखार जानवरों की क्रियाओं जैसी अंग-भंगिमाएं होती हैं। यह नृत्य चीनी पंचांग के अनुसार प्रतिवर्ष 11 वें महीने की 5वीं से 20वीं तारीख तक प्रस्तुत किया जाता है। आम तौर पर एक धर्म गुरू और 7 युवा श्रद्धालु साथ मिलकर यह नृत्य प्रस्तुत करते हैं। उन के चेहरों और शरीर के नंगे उपरे भागों पर मेक-अप के रूप में काजर से बाघ के मुंह और शरीर पर की धारियां चित्रित की जाती है। वे नृत्य करने के साथ बाघ की तरह दौड़ते हुए गांववासियों के घर पहुंचते हैं और उनके लिए भूत भगाते हैं। उधर उनके स्वागत में गांववासी पहले ही घरों में ताजा मांस और अन्य खाद्य पदार्थ तैयार करते हैं। सुश्री चाई श्याओ छ्वान ने कहाः "प्राचीन काल में लोग नहीं जानते थे कि उन्हें बीमारी क्यों और कैसे होती थी और अपना गांव क्यों आपदाओं से पीड़ित था। वे समझते थे कि बाघ का अस्तित्व इन आपदाओं को भगाने के लिए ही है। इसलिए धार्मिक आयोजनों में धर्मगुरू हाथों में मजबूत डंडियां लेकर किसी विशेष मंदिर से प्रस्थान कर बाघ की तरह दौड़ते हुए गांव पहुंचते थे। गांववासी तो अपने-अपने घरों के द्वार खोलकर उनका स्वागत करते थे। धर्मगुरू उनके घरों की हर जगह और प्रांगणों की जांच करने के वक्त चारों तरफ़ डंडियां नचाते थे और जब खाद्य पदार्थ देखते थे, तो उसे उठाकर चटपट खाते थे। वे इस तरह बाघ की क्रियाओं की नकल करते हुए भूत को भगाना चाहते थे।"

थोंगरन काउंटी में आप न केवल थांका चित्रों और प्रस्तर-नक्काशी एवं मूर्तियों के सौंदर्य का आनन्द उठा सकते हैं, बल्कि मनोरम प्राकृतिक दृश्यों और अल्पसंख्यक जातियों की विरल रीति-रिवाजों और परंपराओं को भी देख सकते हैं। काउंटी के उपप्रमुख मा चिन श्यैन के अनुसार विशिष्ट स्थानीय रकोंग कला को बेहतर ढंग से पीढ़ी-दर-पीढी आगे बढाने के लिए काउंटी में रकोंग संस्कृति-ग्रुप की स्थापना की गई है, जिसके नेतृत्व में थांका चित्र बनाने के काम और उसके प्रबंधन को मानकीकृत बनाया गया है। इसके अलावा काउंटी में रकोंग संस्कृति उद्यान भी कायम हुआ है। मा चिनश्यैन ने कहाः "हमारी काउंटी में पर्यटन संसाधनों की भी भरमार है। इसलिए पर्यटन उद्योग का विकास करना भी हमारे कार्यसूची में प्रमुख स्थान पर है। हमने अंतर्राष्ट्रीय थांका चित्रकला उत्सव, स्थानीय लोकगीत-संगीत समारोह और हलाल मेले जैसे आयोजन करके देशी-विदेशी पर्यटकों को स्थानीय परंपराओं एवं संस्कृतियों के संरक्षण के बारे में जानकारी उपलब्ध कराई हैं।"


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