उत्तर पश्चिमी चीन के कानसू प्रांत की राजधानी लानचो शहर में एक ऐसी वैज्ञानिक अनुसंधान टीम है, जो लम्बे समय से अल्पसंख्यक जातीय क्षेत्र में रहते हुए अल्पसंख्यक जातीय भाषा से संबंधित सूचना और तकनीक के अनुसंधान और विकास में संलग्न है। इस टीम के सदस्य सूचनाकरण प्रक्रिया में अल्पसंख्यक जातीय भाषा और लिपि में मौजूद तकनीकी मुद्दे को हल करने और देश के लिए जातीय भाषा और लिपि में उच्च स्तरीय पेशेवर सुयोग्य व्यक्तियों का प्रशिक्षण देने को अपना कर्तव्य मानते हैं। इस टीम के सदस्य हैं लानचो शहर स्थित उत्तर पश्चिमी जातीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर यू होंगची और उनके साथी।
सूचनाकरण समाज में आने के बाद अगर किसी जाति की संस्कृति आधुनिक सूचना और तकनीक के साथ नहीं जोड़ी जाती, तो इस जातीय संस्कृति के सामने इतिहास द्वारा छोड़े जाने का खतरा मौजूद है। पिछली शताब्दी के 80 के दशक की शुरुआत में चीनी भाषा की लिपि का ऑपरेटिंग सिस्टम शुरु हुआ, इस सिस्टम के साथ-साथ देश में चीनी भाषा प्रयोग करने वाले अधिकांश लोगों ने सूचनाकरण युग में प्रवेश किया। चीन में 56 जातियां हैं, हान जाति के अलावा अन्य 55 अल्पसंख्य जातियां हैं। आधुनिक सूचनाकरण युग में चीनी अल्पसंख्यक जातियों के देशबंधु कैसे प्रवेश कर सकते हैं ?इसकी चर्चा करते हुए प्रोफेसर यू होंगची ने कहा:
"अगर हम हान जाति के लोग नहीं करते, तो अल्पसंख्यक जातीय लोगों के लिए खुद इस प्रकार का ऑपरेटिंग सिस्टम स्थापित करना मुश्किल होता। अगर कंप्यूटर में अल्पसंख्यक जातियों की लिपि का इस्तेमाल नहीं किया जाता, तो सूचनाकरण समाज में प्रवेश करना अल्पसंख्यक जातियों के लिए बोमानी होगा।"
प्रोफेसर यू होंगची कानसू प्रांत की राजधानी लानचो शहर में उत्तर पश्चिमी जातीय विश्वविद्यालय के जातीय सूचना विज्ञान और तकनीक अनुसंधान केंद्र की प्रधान हैं। यह विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक जाति बहुल क्षेत्र में स्थित है, जहां अल्पसंख्यक जातियों के सामूहिक विकास पर समाज द्वारा व्यापक ध्यान दिया जाता है। तो यहां के अल्पसंख्यक जातीय लोग कैसे सूचनाकरण के युग में प्रवेश करेंगे ?
वर्ष 1983 में ही प्रोफेसर यू होंगची ने अपनी टीम का नेतृत्व कर संबंधित खोज शुरु की। सबसे पहले उन्होंने तिब्बती भाषा के बुनियादी ऑपरेटिंग सिस्टम की स्थापना से अपना अनुसंधान शुरु किया। इसकी याद करते हुए प्रोफेसर यू होंगची ने कहा:
"वह वर्ष 1984 की बात है, उस समय दसवें पंचन लामा ने हमारे यहां आकर संबंधित अनुसंधान कार्य देखकर मुझसे कहा था कि अध्यापिका यू, मुझे आशा है कि आप मदद कर सकती हैं कि कंप्यूटर में हमारी तिब्बती भाषा का प्रयोग किया जा सकता है। कंप्यूटर में चीनी भाषा का प्रयोग कैसे किया जाता है, और तिब्बती भाषा का इस्तेमाल भी कैसे किया जाएगा। हमारे देश की सरकार तिब्बती जनता के साथ अच्छा व्यवहार करती है। आशा है कि एक दिन सभी हान जातीय लोग कंप्यूटर का प्रयोग करने के साथ साथ हमारे तिब्बती लोग भी अपनी भाषा में भी इसका इस्तेमाल कर सकेंगे। इस तरह यह काम आप जरूर पूरा कर सकेंगे। दसवें पंचन लामा की बातें सुनकर मुझे भारी प्रेरणा मिली। उस समय मैंने सोचा था कि यह बात ज्यादा मुश्किल नहीं होगी, लेकिन कभी नहीं सोचा कि यह काम करते-करते मुझे 30 साल लग जाएंगे।"
ऐसा कहा जा सकता है कि दसवें पंचन लामा के कथन से प्रोफेसर यू ने अपना रास्ता सही माना। लेकिन तिब्बती बौद्ध धर्म के अन्य दो जीवित बुद्धों के कथन से प्रोफेसर ने जातीय सूचनाकरण के रास्ते पर आगे चलने का दृढ़ संकल्प किया। इसकी चर्चा करते हुए उन्होंने कहा:
"वर्ष 1986 में लाब्रांग मठ के सूत्र भवन में अग्निकांड हुआ। मठ के कोंगथांगछांग और च्यामिआन दो जीवित बुद्धों ने मुझसे कहा था कि देखो, पिछले कई सौ वर्षों में तिब्बती बौद्ध सूत्र बहुत सूख गये हैं, मठ का भवन लकड़ी से बना हुआ है, जिस में घी वाला दीपक जलाया जाता है। अगर इस भवन मे आग लग जाती है तो हमारे पास इन सूत्रों को बचाने का कोई रास्ता भी नहीं है। आप के कंप्यूटर के इस छोटे डिस्क में इतने ज्यादा अक्षर शामिल किये जा सकते हैं, तो आप हमारी तिब्बती भाषा के अक्षर भी इसमें शामिल करें। हम इन सूत्रों को इस डिस्क में बचाकर रखें, अगर किसी एक दिन दुर्घटना हुई, तो हमारी तिब्बती संस्कृति, जो पूर्वजों ने पीढ़ी दर पीढ़ी सुरक्षित रखकर हमें दिया है इसे कंप्यूटर की मदद से बचाया जा सकेगा। इन जीवित बुद्धों की बातें सुनकर मुझे अपना मिशन पता लगा। एक जातीय विश्वविद्यालय की शिक्षक के रूप में यह कार्य हमारा कर्तव्य भी है। इस तरह पिछले तीस वर्षों में मैं इसी क्षेत्र में काम करती रहती हूं।"
लेकिन कंप्यूटर में तिब्बती भाषा के प्रयोग के लिए कोडिंग करना प्रोफेसर यू के सामने एक बड़ी समस्या है। क्योंकि कोडिंग के लिए अलग-अलग देशीय और अंतरराष्ट्रीय मापदंड होता है। वर्ष 1993 में अमेरिका, ब्रिटेन, भारत और आयरलैंड जैसे देशों ने क्रमशः तिब्बती भाषा की कोडिंग को अंतरारष्ट्रीय मानकीकरण संगठन के सामने पेश किया था। इसके बाद चार वर्षों में अंतरराष्ट्रीय मानकीकरण संगठन ने कई बार सम्मेलन आयोजित किया। प्रोफेसर यू और चीन में तिब्बती भाषा के विशेषज्ञों के समान प्रयासों से वर्ष 1997 में अंतरराष्ट्रीय मानकीकरण संगठन ने मतदान से चीन द्वारा प्रस्तुत तिब्बती भाषा की कोडिंग संबंधी अंतरराष्ट्रीय मापदंड पारित किया। इसे तिब्बती भाषा के सूचना तकनीक के विकास में मील पत्थर माना जाता है।
आज, तिब्बती भाषा की ऑपरेटिंग सिस्टम वाला सवाल का समाधान किया गया है। इसके साथ ही मंगोलियाई, वेवुर भाषा और कज़ाक भाषा जैसी अल्पसंख्यक जातीय भाषा की ऑपरेटिंग सिस्टम भी स्थापित की गई है। इससे चीनी अल्पसंख्य जातीय भाषाओं के सूचनाकरण का बड़ा विकास शुरु हुआ। अब प्रोफेसर यू और उनके साथी अल्पसंख्यक जातीय भाषा की पहचान वाली प्रणाली के अनुसंधान और विकास में लगे हुए हैं, जिसमें मशीनी अनुवाद, मिश्रित वाक् और वाक् पहचान जैसे मुद्दे शामिल हैं।
वैज्ञानिक अनुसंधान का मूल सुयोग्य व्यक्ति ही है। लम्बे समय में प्रोफेसर यू होंगची उच्च गुणवत्ता वाले वैज्ञानिक अनुसंधानकर्ताओं के प्रशिक्षण पर डटी रही हैं। कई वर्षों के प्रयास से उनके द्वारा प्रशिक्षण दिए जाने वाले प्रतिभाशाली व्यक्तियों ने देश के अल्पसंख्यक जातीय क्षेत्रों में जातीय सूचना तकनीक के विकास के लिए बड़ा योगदान दिया है। प्रोफेसर यू का कहना है:
"हम सूचना तकनीक का कार्य करते हैं। उत्तर पश्चिमी चीन के एक जातीय विश्वविद्यलय में कार्यरत हैं। लम्बे समय से हमें अकेलापन महसूस होता है। लेकिन विभिन्न प्रकार की मुश्किलों को दूर करने में हमें सफलता मिली है। हम देश में जातीय शिक्षा के लिए काम करते हैं, हमारा लक्ष्य है अल्पसंख्यक जातियों और हान जाति के साथ-साथ सूचनाकरण समाज में प्रवेश करना। साथ ही हम अल्पसंख्य जातीय नागरिकों, उपभोक्ताओं और संपूर्ण विश्व को बताना चाहते हैं कि हमारा देश अल्पसंख्यक जातीय क्षेत्र में प्रगतिशील तकनीक के विकास पर कितना ध्यान देता है।"
पिछले 30 वर्षों में प्रोफेसर यू और उनके साथियों ने अथक प्रयास किया है। उन्होंने चीनी अल्पसंख्यक जातियों के सूचना और तकनीक के वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में बहुत ज्यादा कठिनाईयों का मुकाबला किया है। आज तिब्बती बहुल क्षेत्र में इधर-उधर देखा जा सकता है कि तिब्बती बंधु आसानी से कंप्यूटर और इन्टरनेट का प्रयोग करते हैं। वे सूचना के हाई-वे पर प्रसन्नता के साथ आगे चलते रहे हैं। विश्वास है कि भविष्य में चीन के अन्य अल्पसंख्यक जातियों के लोग अपनी जातीय भाषा का प्रयोग भी कर सकेंगे। वे आधुनिक सूचना और तकनीक की सुविधा का उपभोग कर सकेंगे।