सानच्यांग युआन में सबसे बड़े शहर यानी छिंगहाई प्रांत के युशू तिब्बती प्रिफेक्चर के च्येकू कस्बे के कानता गांव में चाशी डोर्चे ने अपनी विचारधारा का प्रसारण किया। गांव से चाछ्यु नाम की नदी गुज़रती है, यह नदी कानता गांव से होकर 100 किलोमीटर की दूरी पर यांत्सी नदी का एक भाग बन गई है। चाशी डोर्चे ने इसी क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण के लिए एक कारगर योजना लागू की। इसका परिचय देते हुए उन्होंने कहा:
"हमने'हज़ार जल-स्रोतों की योजना'नाम की दीर्घकालिक योजना बनाई है। लक्ष्य है कि जल-स्रोत को सांस्कृतिक बनाना और जल-स्रोत को धन्यवाद देना। हम पारिस्थितिकी संरक्षण का काम अपने पास बहती छोटी नदी से शुरू करते हैं। मेरा विचार है कि बड़ी नदियों के संरक्षण से अपने घर के आसपास छोटी नदियों का संरक्षण ज्यादा सार्थक है। हमने गांववासियों को वचन दिया है कि भविष्य में पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी हरेक परियोजना के कार्यान्वयन में स्थानीय गांववासियों की भागीदारी होगी। इसकी है पूर्व शर्त जल-स्रोत को नष्ट न किया जाना है। हम जल-स्रोत की पूजा करते हैं। चाछ्यु नदी के स्रोत पर पवित्र कुंभ रखा गया और पूजा करने का मंच स्थापित किया गया है। हमने कुछ गतिविधियां आयोजित की हैं, जिनमें स्थानीय गांववासियों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और उन्होंने इसे त्योहार के रूप में मनाना शुरु किया है। मुझे लगता है कि इस प्रकार की कार्रवाई जल-स्रोत से संबंधित शिक्षा भी मानी जा सकती है। चाछ्यु नदी के 190 जल-स्रोतों के चरवाहे स्वयं के जल-स्रोत का संरक्षण करते हैं। इसके प्रति उन्हें बहुत गर्व है। नदियों के जल-स्रोत पर कचरे के सवाल का निपटारा हो गया। हम हर साल एक बार कानता गांव में जल-स्रोत पारिस्थितिक सांस्कृतिक उत्सव आयोजित करते हैं। इसी दौरान जल-स्रोत के संरक्षण संबंधी संस्कृति बाहरी लोगों को दिखाई जाती है, अब यह स्थानीय पर्यटन सेवा में एक सांस्कृतिक ब्रांड भी बन गया है।"
कानता गांव में पहला जल-स्रोत सांस्कृतिक उत्सव सफलतापूर्वक आयोजित किया गया। स्थानीय जल-स्रोत में पारिस्थितिकी स्थिति में सुधार हुआ है। इससे गांववासी बहुत प्रसन्न हैं। वर्ष 2010 के अप्रैल में युशू प्रिफेक्चर में जबरदस्त भूकंप आया था। भूकंप में सबसे गंभीर रूप से पीड़ित गांवों में से एक कानता गांव के सभी 290 मकान ढह गए थे, 50 गांववासियों की मृत्यु हो गई थी और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। चाशी डोर्चे और सानच्यांग युआन पारिस्थितिकी संरक्षण संघ के सभी सदस्यों ने आपदा विरोधी राहत कार्य में भाग लिया। लेकिन अकल्पनीय बात यह है कि आपदा के शीघ्र बाद स्थानीय गांववासी स्वेच्छा से जल-स्रोत संरक्षण गतिविधियों में वापस लौटे और पारिस्थितिकी संरक्षण करने लगे। इसकी चर्चा में चाशी डोर्चे ने कहा:
"मुझे लगता है कि संस्कृति में शक्ति बड़ी है। वर्ष 2010 के अप्रैल महीने में युशू प्रिफेक्चर में भूकंप आया था। आपदा के बाद राहत सामग्रियां यानी इंस्टेंट नूडल्स के बक्सों और मिनरल वॉटर की बोतलों जैसे सफेद कचरे इधर उधर देखे जा सकते थे। इस वर्ष के उत्तरार्द्ध में यानी जुलाई और अगस्त में स्थानीय गांववासियों ने पर्यावरण संरक्षण कार्य को पुनः शुरू किया, जो भूकंप के बाद पुनर्निर्माण का कार्य शुरू होने के कुछ समय बाद ही कर दिया गया था। गांववासियों ने जल-स्रोत पूजा मंच की मरम्मत की। भूकंप के बाद युशू शहर में पठारीय वाणिज्यिक और व्यापारिक पर्यटन शहर के विकास पर जोर दिया गया। कानता गांव हवाई अड्डे से सिर्फ़ 30 किलोमीटर दूर स्थित है और च्येकू कस्बे से मात्र 18 किलोमीटर दूर। इस तरह गांव में पर्यटन का विकास सुविधापूर्ण है। अगर भविष्य में यहां आने वाले पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी, तो जल-स्रोत में सफेद कचरे जैसे मुद्दे और गंभीर होंगे। लेकिन अगर अब हमारे जल-स्रोत का अच्छी तरह संरक्षण किया जाए, तो पर्यटन व्यवसाय का विकास होगा। प्रकृति को नष्ट नहीं किए जाने की पूर्वशर्त पर हम जल-स्रोत संरक्षण में प्राप्त उपलब्धियां और इससे जुड़ी संस्कृति पर्यटकों को दिखा सकते हैं। हम जल की विशेषता वाली ग्रामीण पारिस्थितिक सांस्कृतिक पर्यटन का विकास करने को तैयार हैं। इस तरह हमने दूसरा और तीसरा जल-स्रोत पारिस्थितिकी सांस्कृतिक उत्सव का आयोजन किया है।"