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रअकुंग कला के विकास में संलग्न थांगका शिल्पकार न्यांगपन की कहानी
2013-09-03 09:33:05

न्यांगपन  शिष्य कोंगगा च्यानत्सान को पढ़ाते हुए 

न्यांगपन अपने शिष्य पढ़ाते हुए

रअकुंग चित्र कला अकादमी की कक्षा में न्यांगपन के शिष्य ध्यान से थांगखा चित्र बनाना सीख रहे हैं। कुछ लोग आधारभूत लाइन चित्रित करने में संलग्न है तो कुछ दीवार पर लगे थांगखा को पूर्ण करने में व्यस्त हैं। वे या तो थांगखा चित्र में बुद्ध की मुर्तियां, पेड़, पहाड़, मानव, नदी और बादल जैसे विषयों में रंग भर रहे हैं, या इन की लाइनें चित्रित कर रहे हैं। गुरु न्यांगपन कभी कभार अपने शिष्यों के मार्गदर्शन के लिए उनके पास जाते हैं। दस से अधिक व्यक्तियों की कक्षा में गुरु और शिष्य की आवाज़ के अलावा दूसरी आवाज़ बिलकुल सुनाई नहीं देती।

न्यांगपन के शिष्यों में 12 वर्षीय कोंगगा च्यानत्सान दक्षिण-पश्चिमी चीन के स्छ्वान प्रांत के आबा तिब्बती और छ्यांग जातीय स्वशासन प्रिफेक्चर की आबा कांउटी से आया है। उसके पिता का निधन हो गया है। उसके अत्यंत निर्धन परिवार का होने के कारण उसके संबंधी ने कोंगगा च्यानत्सान को रअकुंग चित्र कला अकादमी में दाखिला कराया। इस तरह कोंगगा च्यानत्सान शिल्पकार न्यांगपन के सबसे छोटे शिष्य बन गए। स्कूल में न जाने के कारण बालक कोंगगा च्यानत्सान बातचीत करने में निपुण नहीं है। वह कक्षा की दीवार के पास भूमि पर बैठते हैं और मुर्ती के आधारभूत मापदंड और स्केल का अभ्यास कर रहे हैं। न्यांगपन ने कहा है कि अकादमी के समीप एक प्रशिक्षण स्कूल के निर्माण के लिए उन्होंने 1 करोड़ 10 लाख युआन की पूंजी लगाई है। अब प्रशिक्षण स्कूल का निर्माण समाप्त होने वाला है। इसमें दाखिला पाने वाले शिष्य आमतौर पर कोंगगा च्यानत्सान जैसे ही निर्धन परिवारों के बच्चे और अनाथ बच्चे हैं। अब तक स्कूल के कुल 25 शिष्यों में दस से अधिक अनाथ बच्चे हैं। न्यांगपन की आशा है कि इस स्कूल के माध्यम से अधिक से अधिक निर्धन बच्चे थांगखा बनाने की तकनीक सीख सकेंगे, इससे भविष्य में उनका जीवन बेहतर होगा। न्यांगपन ने कहा:

"यह स्कूल रअकुंग कला रोज़गार प्रशिक्षण का केंद्र भी है। इन बच्चों को क्यों स्कूल में दाखिला दिया गया?क्योंकि उनकी पारिवारिक स्थिति के कारण उनका चित्र बनान सीखना लगभग असंभव था। मैं थांगखा चित्र बनाने के तकनीक को उन्हें सिखाता हूँ, आशा है कि भविष्य में उनके जीवन में परिवर्तन आएगा। इस तरह मेरे शिष्यों में निर्धन परिवारों के बच्चे और अनाथ बच्चे अधिक हैं।"

बालावस्था में न्यांगपन के परिवार की स्थिति अच्छी नहीं थी। उसका परिवार इतना निर्धन था कि माता पिता के पास छोटे न्यांगपन के लिए जूते खरीदने के पैसे भी नहीं होते थे। न्यांगपन ने कहा कि अब उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी हो गई है और वे बच्चों के पढ़ने और सीखने के लिए अच्छा वातावरण मुहैया कराना चाहते हैं। ताकि ये बच्चे सर्वोत्तम वातावरण में जीवन बिताएंगे और बड़े होंगे। न्यांगपन के अनुसार थांगखा प्रशिक्षण स्कूल के निर्माण का प्रमुख उद्देश्य सुयोग्य व्यक्तियों का प्रशिक्षण करना है, ताकि रअकुंग थांगखा कला अपने और अपने शिष्यों के हाथों से पीढ़ी दर पीढ़ी विकसित हो सके। उन्होंने कहा:

"थांगका एक कला है, वह हमारे पूर्वजों द्वारा हमें दी गई है, एक शिल्पकार होने के नाते इस कला की विरासत को ग्रहण, संरक्षण और प्रदर्शन करने का मेरा दायित्व है।"

शिल्पकार न्यांगपन के अनुसार हर एक थांगखा चित्र की एक अलग कहानी होती है। वर्तमान में थांगखा सुरक्षित करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। जब लोग एक थांगखा चित्र खरीदकर अपने पास रखते हैं, तो वह थांगखा के माध्यम से इसमें वर्णित की गई कहानी, चित्रित बुद्ध मुर्ति का नाम, बौद्ध धर्म में उसका स्थान और भूमिका जैसे ज्ञान प्राप्त करना चाहता है। इस प्रकार लोग तिब्बती बौद्ध धर्म की संस्कृति और थांगखा के कलात्मक मूल्य संबंधी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। आज न्यांगपन दक्षिण कोरिया, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में आयोजित प्रदर्शन में भाग लेने के लिए अपने शिष्यों को ले जाते हैं। उनकी आशा है कि विश्व के अधिक से अधिक लोग थांगखा चित्र की जानकारी हासिल कर इसे समझेंगे, थांगखा को पसंद करने के बाद रअकुंग कला को भी पसंद करेंगे। उन्होंने कहा:

"मैं थांगखा कला के राष्ट्र स्तरीय उत्तराधिकारियों में से एक हूँ। हमें थांगखा चित्र और उसके संबंधित तकनीक का विकास करना चाहिए। लुप्त होने वाली वस्तुओं को बहाल करके थांगखा कला का संरक्षण करना हमारा कर्तव्य है।"

शिल्पकार न्यांगपन ने कहा कि वर्तमान में वे एक परियोजना के काम में संलग्न है। वे थांगखा से संबंधित परम्परागत तकनीक को बहाल कर रिकॉर्डिंग करेंगे, ताकि इसका और अच्छी तरह संरक्षण किया जा सके।


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