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रअकुंग कला के विकास में संलग्न थांगका शिल्पकार न्यांगपन की कहानी
2013-09-03 09:33:05

रअकुंग चित्र कला अकादमी के द्वार के सामने

शिल्पकार न्यांगपन इनटरव्यू लेते हुए

छिंगहाई प्रांत के ह्वांगनान तिब्बती स्वायत्त प्रिफैक्चर की थोंगरन कांउटी क्षेत्र को"रअकुंग"कहा जाता है। यह तिब्बती भाषा में"रअकुंग सेचोम"का संक्षिप्त शब्द है, इसका मतलब है सपना पूरा करने वाली स्वर्ण घाटी। 13वीं शताब्दी में जन्मे रअकुंग कला तिब्बती बौद्ध धार्मिक कला का महत्वपूर्ण भाग है, इसमें थांगखा चित्र कला अत्यंत महत्वपूर्ण है। सूत्रों के अनुसार अब रअकुंग क्षेत्र में चार सुप्रसिद्ध थांगखा शिल्पकार रहते हैं। न्यांगपन उनमें से एक है। 

थांगखा तिब्बती भाषा का शब्द है, यह रंगीन रेशमी कपड़े पर चित्रित धार्मिक चित्र है, जिसका विषय मुख्य तौर पर तिब्बती बौद्ध धर्म की कहानियां, तिब्बती जाति के इतिहास में महान व्यक्ति, मिथकों, कथाओं और महाकाव्यों में पात्र और उनकी कहानी शामिल है। चीन में तिब्बती बहुल क्षेत्रों में चाहे बड़े या छोटे मंदिर में हो, या हर परिवार के बुद्ध कमरे में क्यों न हो, थांगखा चित्र रखा जाता है। थांगखा चित्रकला का जन्म ईस्वी 7वीं शताब्दी में तत्कालीन तिब्बत यानी थूपो के राजा सोंगचान कानबू काल में हुआ था, आज तक इसका एक हज़ार से अधिक वर्ष का इतिहास है। तिब्बती जाति घूमंतू जीवन बिताती है और तिब्बती लोग आम तौर पर घास के मैदान में रहते हैं, उनके हृदय में थांगखा चित्र मंदिर के बराबर है। चाहे शिविर में हो, या पेड़ की शाखा पर ही क्यों न हो, थांगखा को लगाए जाने के बाद तिब्बती लोग पूजा कर सकते हैं। उनके विचार में थांगखा चित्र एक शुद्ध बौद्धिक चिह्न है।

वर्तमान में देश के गैरभौतिक सांस्कृतिक अवशेष की सूचि में शामिल होकर थांगखा कला के संरक्षण और विकास पर जोर दिया जा रहा है। वर्ष 2006 की शरद ऋतु में छिंगहाई प्रांत के ह्वांगनान तिब्बती प्रिफैक्चर के मशहूर थांगखा शिल्पकार न्यांग पन ने 40 लाख युआन की राशि लगाकर रअकुंग चित्रकला अकादमी की स्थापना की और वे अकादमी के प्रधान बने। तभी से इस अकादमी में थांगखा चित्रों से संबंधित तकनीक का प्रशिक्षण शुरू हुआ और यहां रअकुंग कला से जुड़ी सांस्कृतिक गतिविधियां चलाई जाती हैं। तिब्बती शिल्पकार न्यांग पन का कहना है:

"इस चित्र कला अकादमी को स्थापित करने का उद्देश्य हमारी तिब्बती जाति की संस्कृति का प्रशिक्षण और प्रसार करना है। यह एक संरक्षण केंद्र के रूप में है। पहले इसका नाम था केसांग फूल जातीय चित्रकला अकादमी और अब इसका नाम बदलकर रअकुंग चित्रकला अकादमी कर दिया गया है। हमारे अकादमी में शिष्यों और शिक्षकों को मिलाकर सौ से अधिक व्यक्ति हैं। हर वर्ष हम च्यान जा, युशु कांउटियों और स्छ्वान प्रांतों से विद्यार्थियों का दाखिला करते हैं। वे लोग मुख्य तौर पर चरवाहे और किसान हैं। मुझे लगता है कि गैर भौतिक सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण किए जाने के साथ-साथ इसका प्रसार-प्रचार किया जाना भी आवश्यक है। हाल के वर्षों में विश्व के कई स्थानों में रअकुंग कला प्रसिद्ध होने लगी है। देश में इस प्रकार की कला के संरक्षण को महत्व दिया जाता है। हमारे रअकुंग क्षेत्र ने भी संबंधित प्रसार कार्य पर जोर दिया।"

तिब्बती जाति में थांगखा चित्र के माध्यम से बौद्ध धर्म की कहानियों का वर्णन किए जाने का इतिहास भी बहुत पुराना है। थांगखा कला सबसे पहले मठों में उभर कर सामने आई है, तिब्बती लामा बौद्ध धर्म में जिस थांगखा में बुद्ध की तस्वीर हू ब हू चित्रित की गयी है, वह बुद्ध का प्रतिनिधित्व माना जा सकता है, साथ ही तिब्बती जाति को अपने परम्परागत खानाबदोश जीवन की वजह से साल के चार मौसमों में स्थानांतरित करना पड़ता है, थांगखा को इधर उधर ले जाना काफी सुविधापूर्ण है, इसलिये थांगखा के माध्यम से बुद्ध की कहानी प्रदर्शित की जाती है, धीरे-धीरे बौद्ध धार्मिक अनुयायियों में इसी प्रकार वाले थांगखा की बुद्ध के रुप में पूजा करने की परम्परा प्रचलित हो गयी है। बौद्ध धार्मिक विषय थांगखा की बड़ी विशेषता ही है, लेकिन शिल्पकार न्यांगपन के विचार में थांगखा की विषय वस्तुएं बौद्ध धार्मिक विषय तक सीमित नहीं है। इसका परिचय देते हुए शिल्पकार न्यांगपन ने कहा:

"चिकित्सा, खगोल, भूगोल समेत तमाम विषयों की अभिव्यक्ति थांगका के माध्यम से की जा सकती है, इसी कारण से थांगखा कला आज तक बची हुई है और वह हमारी विविध जातीय संस्कृतियों में सबसे अद्भुत निधियों में से एक बन गयी है।"

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