Web  hindi.cri.cn
तिब्बती शिक्षक सोलांग की कहानी
2013-04-10 16:16:29

अध्यापक सोलांग शिक्षा देते हुए

52 वर्षीय सोलांग त्सेरिंग का चेहरा गोल है और वे थोड़ा मोटे व्यक्ति हैं। उनके चहरे पर हमेशा मुस्कुराहट दिखती है। वे सांगरी कांउटी के रोंगश्यांग ज़िला स्थित पारांग गांव में रहते हैं। वे रोजाना सुबह छह बजे उठते हैं। एक गिलास घी चाय पीने के बाद थोड़ा तिब्बती पकवान चानबा खाकर वे पैदल गांव से एक किलोमीटर दूर स्थित रोंगश्यांग जिले के नंबर एक प्राइमरी स्कूल जाते हैं। पिछले 35 सालों से वे इस स्कूल में पढ़ा रहे हैं।

सुबह साढ़े आठ बजे स्कूल की क्लास शुरू होती है। सोलांग त्सेरिंग ग्रेड दो को गणित पढ़ाते हैं। यह प्राइमरी स्कूल रोंगश्यांग ज़िले के दो सरकारी प्राइमरी स्कूलों में से एक है। लोका प्रिफैक्चर यालुचांगबू नदी के मध्य भाग में स्थित है, यह नदी चीन में समुद्र तल से सबसे ऊंचाई पर बहने वाली नदी है, जिसका निचला भाग भारत में ब्रह्मपुत्र नदी है। यह प्राइमरी स्कूल यालुचांगबू नदी के तट पर स्थित है। स्कूल के 245 छात्र-छात्राएं और 23 शिक्षक हैं। सोलांग त्सेरिंग स्थानीय गांववासी हैं। उनके माता पिता किसान हैं और निरक्षर भी। सोलांग ने 14 साल की उम्र में स्कूल जाना शुरू किया। इसकी याद करते हुए उन्होंने कहा:"मेरे माता पिता दोनों किसान हैं और वे अनपढ़ हैं। स्कूल जाने से पहले गर्मियों और शरद ऋतु में मैं गाय व भेड़-बकरी का पालन करता था। सर्दियों में लकड़ी इकट्ठा करने के लिए पहाड़ी क्षेत्र में जाता था। 14 वर्ष की उम्र में मैं स्कूल जाने लगा। परिवार में कुल सात बच्चे हैं और मैं तीसरा हूँ।"

रोगंश्यांग प्राइमरी स्कूल की कक्षा इमारत

पुराने ज़माने में तिब्बत में सिर्फ़ कुलीन और भिक्षु ही शिक्षा हासिल कर सकते थे। आम तिब्बती लोगों का सांस्कृतिक स्तर नीचा था। आधुनिक शिक्षा के विकास की राह में भी बाधा थी। वर्ष 1951 में शांतिपूर्ण मुक्ति से पहले तिब्बत में निरक्षरता दर 95 प्रतिशत से अधिक थी। स्कूली उम्र वाले बच्चों की स्कूल में दाखिला दर सिर्फ़ 2 प्रतिशत थी। वर्ष 1959 में तिब्बत में लोकतांत्रिक सुधार के बाद चीन की केंद्र सरकार ने तिब्बत में शिक्षा के विकास पर विशेष ध्यान दिया। और वहां धीरे-धीरे स्कूलों की स्थापना की और किसानों व चरवाहों के बच्चों को शिक्षा पाने में आर्थिक मदद दी। सोलांग त्सेरिंग के माता पिता अनपढ़ थे, लेकिन वे बच्चों के शिक्षा का महत्व जानते थे। उसी समय ज़िले के प्राइमरी स्कूल में पढ़ाई के दौरान छात्रों को भत्ता मिलता था। इस तरह 14 वर्ष की आयु से ही सोलांग ने स्कूल जाना शुरू किया। एक साल के बाद उन्होंने मिडिल स्कूल में दाखिला लिया और वर्ष 1977 में मिडिल स्कूल से पास होने के बाद 17 वर्षीय सोलांग गांव में ज्ञानवर्धक व्यक्ति बन गए। इसकी चर्चा में उन्होंने कहा:"उस जमाने में मुझे अपने गांव में एक पढ़ा-लिखा और ज्ञानी व्यक्ति माना जाता था। क्योंकि उस समय गांव में मठ के भिक्षु व भिक्षुणियों के अलावा कोई भी पढ़ाई नहीं कर सकता था। इसके बाद मैं स्थानीय सरकार की मदद से मैं स्कूल में पढ़ाने लगा।"

उस वक्त रोंगश्यांग जिले के पालांग गांव का प्राइमरी स्कूल बड़ा नहीं था। आंगन में मिट्टी व लकड़ी से बने चार तिब्बती शैली के कमरे थे, जिनमें दो क्लासरूम के लिए इस्तेमाल होते थे, अन्य एक दफ़तर और एक गोदाम। स्कूल में 80 से अधिक छात्रों के लिए सिर्फ़ सोलांग त्सेरिंग ही एक शिक्षक थे। इसी गांव के प्राइमरी स्कूल से सोलांग ने प्रारंभिक शिक्षा ली थी। उस समय की पढ़ाई आज के प्राइमरी स्कूल से अलग होती थी, स्कूल में ग्रेड व क्लास बंटी नहीं होती थी। छात्रों को उच्च, माध्यमिक और जूनियर क्लास में बांटा जाता था। सोलांग बारी-बारी से एक-एक ग्रेड में चीनी, तिब्बती भाषा, गणित और पीई चार कक्षाएं देते थे। इसके साथ ही वे स्कूल का प्रबंधन भी देखते थे।

विद्यार्थी पाठ्यपुस्तक पढ़ते हुए

स्कूल में पढ़ाते हुए 30 से अधिक साल बीत चुके हैं। अब वे उस प्राइमरी स्कूल में सबसे वरिष्ठ अध्यापक हैं। उनके कई शिष्य विभिन्न क्षेत्रों में अच्छे पदों पर काम कर रहे हैं। इस स्कूल की पीई क्लास की टीचर गेसांग चोमा 20 साल पहले सोलांग की शिष्या भी थी। छात्र से सहयोगी टीचर बनने के बाद चोमा और सोलांग एक-दूसरे को अच्छी तरह समझते हैं। अपने शिक्षक की चर्चा करते हुए चोमा ने कहा:"मुझे लगता है कि टीचर सोलांग मेरे पिता जी जैसे हैं। मैं उनका सम्मान करती हूँ। जब वे स्कूल में गणित पढ़ाते थे और स्कूल के प्रधान थे तो उस समय मैं महज ग्रेड तीन या चार में पढ़ती थी। मुझे लगता है कि वे ज्यादा गंभीर होने के बजाए दयालु हैं। क्लास के बाद वे अक्सर हमारे साथ खेलते थे और दिल की बात बताते थे। बड़ी होने के बाद मैं दूसरी जगह गई और फिर अपने जन्म स्थान वापस लौटी, सोलांग जी की उम्र ज्यादा हो गई है। इसके बावजूद वे पढ़ाने में बहुत मेहनत करते हैं और स्कूल के सभी टीचर उनका सम्मान करते हैं।"

शुरुआत में पालांग गांव के प्राइमरी स्कूल में सिर्फ़ एक ही शिक्षक सोलांग त्सेरिंग होते थे, लेकिन गत् अस्सी के दशक में उसे दूसरे प्राइमरी स्कूल के साथ जोड़ा गया। और अब वह रोंगश्यांग जिले का प्रथम प्राइमरी स्कूल बन चुका है, इसके साथ ही स्कूल को यालुचांगबू नदी के तट पर स्थानांतरित किया गया है। वर्तमान में स्कूल में दो मंजिली शिक्षा इमारत, कैंटीन, छात्रावास और ऑफ़िस हैं। कक्षा के बाद छात्र घास के मैदान में खेलते हुए नज़र आते हैं।

1 2
संदर्भ आलेख
आप की राय लिखें
सूचनापट्ट
• वेबसाइट का नया संस्करण आएगा
• ऑनलाइन खेल :रेलगाड़ी से ल्हासा तक यात्रा
• दस सर्वश्रेष्ठ श्रोता क्लबों का चयन
विस्तृत>>
श्रोता क्लब
• विशेष पुरस्कार विजेता की चीन यात्रा (दूसरा भाग)
विस्तृत>>
मत सर्वेक्षण
निम्न लिखित भारतीय नृत्यों में से आप को कौन कौन सा पसंद है?
कत्थक
मणिपुरी
भरत नाट्यम
ओड़िसी
लोक नृत्य
बॉलिवूड डांस


  
Stop Play
© China Radio International.CRI. All Rights Reserved.
16A Shijingshan Road, Beijing, China. 100040