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स्वर्ण घाटी में नीला सपना
2013-04-02 08:46:02

"रअकुंग"तिब्बती भाषा में"रअकुंग सेचोम"का संक्षिप्त शब्द है, जिसका मतलब है सपना पूरा करने वाली स्वर्ण घाटी। आज का रअकुंग क्षेत्र छिंगहाई तिब्बत पठार स्थित छिंगहाई प्रांत के ह्वांग नान तिब्बती प्रिफैक्चर की थोंगरन कांउटी है। रअकुंग कला तिब्बत में ही नहीं, देश भर में, यहां तक कि विश्व में बहुत प्रसिद्ध है। इस कला का जन्म 13वीं शताब्दी में हुआ। यह तिब्बती बौद्ध धर्म के मठों में प्रचलित परंपरागत हस्त कला है। रअकुंग कला का विकास धर्म के साथ घनिष्ठ संबंध रहा है। इस लेख में कई तिब्बती थांगखा चित्रकारों से अवगत कराया जाएगा।

थांगखा शिल्पकार न्यांगपन के शिष्य थांगखा बनाते हुए 

पीली नदी चीन की राष्ट्रीय माता नदी है। उसका उद्गम छिंगहाई तिब्बत पठार से हुआ। छिंगहाई प्रांत से गुज़रने वाली पीली नदी का पहला मोड़ प्रांत के ह्वांगनान तिब्बती प्रिफैक्चर में है। यह स्वर्ण घाटी के नाम से मशहूर है। पीली नदी क्षेत्र की संस्कृति बहुत रहस्यमय है और तिब्बती जातीय विशेषता वाली रअकुंग कला इसका एक अहम भाग है।

नीले आसमान में सफेद बादल बहते हैं, तिब्बती बौद्ध धर्म के मठों व स्तूपों की स्वर्ण छतें ज्यादा चमकदार हैं। सूत्रों की झंडियां, सूत्र चक्र, तिब्बती शैली की इमारत और सड़क, रंगबिरंगे जातीय वस्त्र.......ये सभी चीजें रअकुंग क्षेत्र में इधर उधर देखी जा सकती हैं। प्राचीन काल से अब तक तिब्बती जाति समेत विभिन्न जातियां रअकुंग क्षेत्र में रहती आयी हैं। उन्होंने रंगीन संस्कृतियां रचीं और भावी पीढ़ियों को मूल्यवान भौतिक व आध्यात्मिक विरासत दी। हाल के वर्षों में चीन में गैर भौतिक सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण कार्य पर ज़ोर दिया जा रहा है। ऐसी पृष्ठभूमि में तिब्बत बौद्ध धर्म से जुड़ी कहानियां, ऐतिहासिक व्यक्तियों की कहानी, महाकाव्य और कथाएं आदि विषयों वाले रअकुंग कला पर दिन ब दिन लोगों का ध्यान केंद्रित हुआ है।

थांगखा चित्र बनाने वाले रंगद्रव्य 

आज का रअकुंग क्षेत्र मुख्य तौर पर ह्वांगनान तिब्बती प्रिफैक्चर की थोंगरन कांउटी कहा जाता है। 13वीं शताब्दी में पैदा हुई इस कला का तिब्बती बौद्ध धर्म के साथ गहरा संबंध है।

वर्ष 2012 से ही छिंगहाई के वित्तीय विभाग ने प्रांत स्तरीय गैर भौतिक सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए विशेष राशि लगाई। इसके मुताबिक प्रांत स्तरीय उत्तराधिकारी को हर वर्ष पांच हज़ार युआन का भत्ता दिया जाता है। इस राशि से उत्तराधिकारी शिष्यों को ट्रेनिंग देते हैं और कल्याण गतिविधियों में भाग लेते हैं।

वर्ष 2006 की शरद ऋतु में ह्वांगनान तिब्बती प्रिफैक्चर के मशहूर थांगखा शिल्पकार न्यांग पन ने 40 लाख युआन की राशि लगाकर रअकुंग चित्र कला अकादमी की स्थापना की और वे अकादमी के प्रधान बने। तभी से इस अकादमी में थांगखा चित्र से संबंधित तकनीकों का प्रशिक्षण शुरू हुआ और इस रअकुंग कला से जुड़ी सांस्कृतिक गतिविधियां चलाई जाती हैं। तिब्बती शिल्पकार न्यांग पन का कहना है:

"इस चित्र कला अकादमी स्थापित करने का मकसद हमारी तिब्बती जाति की संस्कृति का प्रशिक्षण व प्रसार करना है। यह एक संरक्षण केंद्र के रूप में है। पहले इसका नाम था केसांग फूल जातीय चित्र कला अकादमी था और अब इसे बदलकर रअकुंग चित्र कला अकादमी कर दिया गया है। हमारे अकादमी में शिष्यों व शिक्षकों को मिलकर सौ से अधिक व्यक्ति हैं। हर साल हम च्यान जा, युशु कांउटियों और स्छ्वान प्रांतों से विद्यार्थियों को दाखिला कराते हैं। वे लोग मुख्य तौर पर चरवाहे और किसान है। मुझे लगता है कि गैर भौतिक सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण किए जाने के साथ-साथ इसका प्रसार प्रचार किया जाना भी जरूरी है। इधर के वर्षों में विश्व के कई स्थानों में रअकुंग कला प्रसिद्ध होने लगी है। देश में इस प्रकार की कला के संरक्षण को महत्व दिया जाता है। हमारे रअकुंग क्षेत्र ने भी संबंधित प्रसार कार्य पर जोर दिया।"

शिल्पकार ध्यान से थांगखा चित्र बना रहे हैं

आम तौर पर रअकुंग कला थांगखा, त्वेशो और मिट्टी मूर्ति आदि कला का कुल नाम है, जिनमें थांगखा इसका प्रतिनिधित्व है। ध्यान रहे, त्वेशो रअकुंग कला का एक हिस्सा है। यह रंगीन कपड़ों के टुकड़ों से बनाए जाने वाला चित्र है, जिसके विषय मुख्य तौर पर धार्मिक वस्तुएं भी हैं और साथ ही दूसरे विषय वाले त्वेशो चित्र भी लोकप्रिय हैं।

"थांगखा"तिब्बती भाषा का शब्द है। यह कपड़े पर बनाया जाने वाला चित्र है। तिब्बती चरवाहे आम तौर पर घुमंतू जीवन बिताते हैं। घास के मैदान में पशुपालन करते समय वे अपने पास जरूर एक थांगखा चित्र रखते हैं और कभी कभार इसके सामने पूजा करते हैं। तिब्बती चरवाहों के दिल में थांगखा चित्र मठ का रूप माना जाता है। शिविर में हो, या पेड़ की शाखाओं पर, वे थांगखा लटकाकर पूजा करते हैं। यह उनके दिल में हमेशा पवित्र है।

वूथुन बर्फीला सांस्कृतिक कला केंद्र थोंगरेन कांउटी के वूथुन गांव में स्थित है। यह केंद्र प्रांत के भीतर व बाहर से आए देशी विदेशी पर्यटकों को थांगखा कला प्रदर्शित करता है। इसके अलावा विभिन्न स्थल से आए छात्र-छात्राओं को थांगखा चित्र बनाने की तकनीक सिखाई जाती है। इस केंद्र के तिब्बती शिक्षक जाशी ने जानकारी देते हुए कहा:

"हमारे यहां 98 छात्रों में 60 प्रतिशत गरीब परिवार के हैं। हमारा विचार है कि सालाना आय 700 युआन के करीब वाला परिवार बहुत निधन परिवार है। इस तरह हमारा केंद्र हर माह छात्रों को छात्रवृति भी देता है। जो कि आठ सौ युआन, एक हज़ार युआन और 12 सौ युआन तीन स्तरों में बांटी जाती है। पिछले दो सालों में केंद्र ने इस पर 24 लाख युआन खर्च किए। अब छात्रों की चित्र बनाने की तकनीक धीरे-धीरे सुधर रही है और वे केंद्र के लिए पैसे कमा सकते हैं। मेरे दो भाइयों ने नौवें पंचन लामा के एक पेशेवर चित्रकार से चित्र बनाने की तकनीक सीखी थी। और उनका कलात्मक स्तर बहुत ऊंचा है। शिष्य उनसे मेहनत से सीखते हैं। कुछ समय पूर्व केंद्र में 50 शिष्यों की पढ़ाई पूरी हो गई। थांगखा चित्र बनाने से लोगों का जीवन समृद्ध होने लगा है। घर में निजी वाहन और बैंकों में भी जमा राशि होती है। साथ ही उन्होंने परिवार के लिए नया मकान भी बनाया। हम शिक्षक धैर्य के साथ शिष्यों को सिखाते हैं, इस प्रकार तिब्बती कला का विकास हो सकता है। हम संतुष्ट हैं।"

वूथुन गांव वासी ईशी च्यानत्सो ने वूथुन बर्फीले सांस्कृतिक कला केंद्र में पांच सालों में थांगखा चित्र बनाने की तकनीक सीखी। अब वे खुद शिष्यों को भी पढ़ाते हैं। उन्होंने कहा:

"इस केंद्र में मैं चार-पांच साल बिता चुका हूँ। अब मेरे पास 20 से अधिक शिष्य हैं। बचपन में मैंने चित्र बनाना सीखना शुरू किया था। अब थांगखा चित्र बनाने और शिष्यों को सिखाने से मेरा जीवन अच्छे से बीत रहा है। मेरे पास कार है और पारिवारिक जीवन भी दिन ब दिन बेहतर हो रहा है। मेरे तीन भाई हैं। हमने नए मकान बनाए और प्रति व्यक्ति की सालाना आय एक लाख युआन से अधिक है।"

थांगखा शिल्पकार शी होताओ

वुथुन गांव में वूथुन श्या नामक मठ है। यह बहुत शानदार है, दीवार पर रंगीन चित्र बनाए हुए हैं और मठ के भीतर हस्त थांगखा चित्र भी रखे जाते हैं। गांव में आने वाले लोगों को इस मठ से आकर्षित किया जाता है। सत्तर वर्षीय बुजुर्ग थांगखा शिल्पकार शी होताओ का जन्म इस गांव में हुआ। थांगखा चित्र बनाना गांव की परम्परागत कला है। निश्चिय ही वह शी होताओ के घर की पीढ़ी दर पीढ़ी विकसित कला भी है।

सात साल की उम्र में शी होताओ ने अपने मामा जी से थांगखा चित्र बनाना सीखना शुरू किया। मामा काचांग तिब्बती क्षेत्र में मशहूर थांगखा शिल्पकार हैं, वे उत्तर पश्चिमी चीन के कानसू प्रांत के कान्नान तिब्बती प्रिफैक्चर में स्थित लाब्रांग मठ के भिक्षु थे। सात साल की उम्र से शी होताओ लाब्रांग मठ गए और मामा जी से पांच साल तक थांगखा चित्र बनाना सीखा। 12 वर्ष की आयु में वे खुद थांगखा बनाने लगे। करीब पचास सालों के कलात्मक जीवन में शी होताओ सुप्रसिद्ध थांगखा शिल्पकार बने। वर्ष 2006 में चीनी संस्कृति मंत्रालय ने शी होताओ समेत रअकुंग के अन्य तीन कलाकारों को"राष्ट्र स्तरीय ललित कलाकार"के रूप में सम्मानित किया।

इधर के वर्षों में थांगखा चित्र बनाने से शी होताओ के परिवार की जीवन शैली में भी बड़ा परिवर्तन आया है। घर की सालाना आय कई लाख युआन से ज्यादा है। थांगखा बनाने के अलावा उन्होंने एक पारिवारिक होटल भी खोला, दूर से आए पर्यटकों का सत्कार करने के वक्त वे उन्हें थांगखा की सुन्दरता और इस कला से संबंधित जानकारी से अवगत कराते हैं। शिल्पकार शी होताओ ने कहा:

"थांगखा सच्चाई, उदारता और सुन्दरता का वर्णन करने वाली वस्तु है। यह उच्च स्तरीय कला है। साथ ही थांगखा चित्र देखने में भी सुन्दर है। लोग इसे संरक्षित करना चाहते हैं। मुझे लगता है कि थांगखा कला ही नहीं, वह चीनी राष्ट्र के परम्परागत सदाचार से भी जाहिर होता है।"

शी होताओ ने अपने मामा जी के जरिए थांगखा चित्र की दुनिया में प्रवेश किया। आज उनका बेटा फूह्वा अपने पिता के हाथों से ब्रश लेकर इस कला का आगे विकास कर रहा है। रअकुंग के कई पीढ़ियों के लोग ब्रश के जरिए अपना सुनहरा भविष्य भी बना रहे हैं।

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