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नेपाली व्यापारी और उसका लकड़ी का डिब्बा
2013-03-11 14:00:46

यह लकड़ी से बना हुआ एक साधारण सा डिब्बा है, उसका आकार एक संदूक के बराबर है, डिब्बे के बाहर कोई न तो कोई नक्काशी की गई है और न ही उसपर किसी तरह का कोई रंग है। डिब्बे के सतह पर ट्री पैटर्न देखा जा सकता है, इसे साल दर साल प्रयोग किए जाने के कारण ये बहुत समतल हो गया है। विशेष बात यह है कि डिब्बे के ऊपर दोनों किनारों पर वर्गाकार खुदाई की गई है। देखने में ये अजीब लगता है, पता नहीं इस डिब्बे का क्या इस्तेमाल होता था?तिब्बत की यात्रा के दौरान हमारे संवाददाता ने इस डिब्बे के मालिक से मुलाकात की और पता लगाया कि यह डिब्बा और उसके मालिक का परिवार आधी सदी में चीन और नेपाल के बीच मैत्रीपूर्ण आवाजाही के साक्षी हैं।

डिब्बे के मालिक का नाम है डिबु, जो तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के अली प्रिफेक्चर की फूलान कांउटी में व्यापार करने वाले एक नेपाली हैं। डिबु की दुकान में प्रवेश करते समय हमारे संवाददाता ने देखा कि वह डिब्बे के पीछे बैठते हुए धाराप्रवाहपूर्ण तिब्बती भाषा में स्थानीय ग्राहकों से मोल भाव कर रहे हैं।

हमारी संवाददाता और नेपाली व्यापारी डिबु के साथ

डिबु ने हमारे संवाददाता को डिब्बा खोल कर दिखाया। इसके भीतरवाला ऊपरी भाग कई जालियों से विभाजित है, जिसमें कुछ चेंज पैसे रखे जाते हैं। डिबु ने हमे बताया कि यह डिब्बा उसका कैश रजिस्टर ही है, जो आधी सदी में डिबु और उसके पिता जी के साथ चीन के तिब्बत में अपने अनुभवों का साक्षी है। इसकी चर्चा करते हुए नेपाली व्यापारी डिबु ने कहा:"डिब्बे के बाहर ये दोनों छेद पिता जी ने बनाया था। डिब्बे को खोले बिना हम इस के भीतर सिक्के डाल सकते हैं। डिब्बे का इतिहास बहुत पुराना है और मेरे लिए अत्यंत मूल्यवान है। मैं हमेशा इसका प्रयोग करता हूँ और पहले पिता जी इसका इस्तेमाल करते थे। बहुत समय पूर्व पिता जी इसे नेपाल से चीन ले गए थे और चीन में व्यापार करने के दौरान वे उसका प्रयोग करते थे। उस समय से ही अब तक यह डिब्बा चीन में ही रखा जाता है।"

फूलान कांउटी अली प्रिफेक्चर के दक्षिण में स्थित है, जो चीन, नेपाल और भारत का सीमावर्ती क्षेत्र है। तीनों देशों के व्यापारियों के इस कांउटी में सीमावर्ती व्यापार करने का इतिहास 500 वर्षों से अधिक पुराना है। वर्तमान में फूलान कांउटी के सीमावर्ती व्यापार बाज़ार ने इन व्यापारियों के लिए विशेष मंडप दिए। नेपाली और भारतीय व्यापारी यहां नेपाल और भारत से लाए इन दोनों देशों की विशेषता वाली वस्तुओं की बिक्री करते हैं। हर वर्ष गर्मियों के दिनों और शरत ऋतु में नेपाली व्यापार फूलान के अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में सौदा करते हैं। गर्मियों में वे अपने देश से फ्रांसीसी परफ़्यूम और भारतीय अगरबत्ती लाकर तिब्बत में बेचते हैं और सर्दियों में चीन से खरीदी वस्तुओं को लेकर सौदा करने स्वदेश लौट जाते हैं।

49 वर्षीय डिबु के मुताबिक उसे याद है कि बचपन में पिता जी ने चीन और नेपाल के बीच सीमावर्ती व्यापार करना शुरू किया था। पिता जी से प्रभावित होकर विश्वविद्यालय से स्नातक के बाद वह सीमावर्ती व्यापार करने के लिए फूलान कांउटी आया। इसकी चर्चा करते हुए नेपाली भाई डिबु ने कहा:"पिता जी बहुत पहले व्यापार करने के लिए यहां आए थे। 30 वर्ष पूर्व उनका देहांत हो गया। उनके बाद मेरे बड़े भाई ने व्यापार का काम जारी रखा और फूलान में सीमावर्ती व्यापार करने लगे। वर्ष 1985 में मैं पहली बार फूलान आया। इस समय मेरी पत्नि नेपाल में रहती है और वहां से माल को चीन में पहुंचाने की जिम्मेदार निभाती है। घर में बच्चे और बच्ची छोटे हैं इसलिये मेरी पत्नी नेपाल में रहती है।"

डिबु का जन्मस्थान नेपाल की धारचुला कांउटी के उत्तरी भाग में स्थित लिपुपस गांव में है, जो नेपाल के सबसे उत्तर पश्चिमी भाग में बसा हुआ है और चीन और भारत को जोड़ता है। धारचुला कांउटी नेपाल में दो त्रिदेशीय सीमावर्ती कांउटियों में से एक है। यहां पहाड़ी क्षेत्र है और समुद्र सतह से 5 हज़ार मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। साल भर में धारचुला कांउटी का तापमान कम रहता है। लिपुपस गांव से फूलान तक के रास्ते की स्थिति बहुत कठोर है, इसी दौरान हिमालय पर्वत पर चढ़ने की आवश्यकता पड़ती है। कुछ स्थलों में साल भर बर्फ़ जमी रहती है और यहां कम लोग आते जाते हैं। इसी क्षेत्र में पर्यावरण स्थिति भी अत्यंत गंभीर है। डिबु के पिताजी को चीन-नेपाल सीमावर्ती व्यापार करने के वक्त लिपुपस गांव से फूलान तक पांच दिन लगते थे। यातायात स्थिति की कठोरता नेपाली व्यापारी डिबु के सामने खड़ी सबसे गंभीर मुश्किल है। लेकिन चीन के तिब्बत में एस्फ़ाल्ट मार्गों का यातायात शुरू होने के बाद ये मुश्किल आसान हो गई। उसे जन्मस्थान से फूलान तक सिर्फ़ दो दिन लगते हैं। डिबु ने कहा:"पहले बहुत मुश्किल थी। लेकिन आज स्थिति सुधर गई और सुविधापूर्ण हो गई है। हम घोड़ों और खच्चरों से माल को नेपाल-चीन सीमावर्ती क्षेत्र तक पहुंचाते हैं, फिर गाड़ियों से फूलान कांउटी तक। रास्ते में थोड़ी मुश्किल होने के बावजूद हम कभी हिम्मत नहीं हारते । यह हमारी पारिवारिक परम्परा है और हम इसे जारी करना चाहते हैं।"

जलवायु के कारण डिबु हर वर्ष जून माह फूलान आते हैं और नवम्बर माह में माल खरीदने के लिए भारत और नेपाल जाते हैं। फूलान कांउटी का मौसम सुनहरा है और अपना व्यापार भी बहुत अच्छा है। इस तरह डिबु फूलान में रहना और जीवन बिताना बहुत पसंद करते हैं। उन्होंने कहा कि चीन सरकार ने व्यापारियों के लिए सिलसिलेवार उदार नीतियां अपनाईं। मसलन् उसकी दुकान का मासिक किराया मात्र एक हज़ार युआन है, कर वसूलने की जरूरत नहीं है, खान-पान और निवास स्थान आदि की गारंटी दी जाती है। हर वर्ष सर्दियों के मौसम में डिबु बाकी माल को दुकान में सुरक्षित रखकर स्वदेश लौटते हैं और अगले वर्ष में बेचने वाली वस्तुएं खरीदने के लिए भारत और नेपाल जाते हैं। डिबु ने कहा:"हमारे रहने की स्थिति बेहतर है। यहां बेडरूम, रसोईंघर, टॉयलेट समेत पांच-छह कमरे होते हैं। मैं कभी कभार नेपाली खाना खाता हूँ, कभी चीनी भोजन का मज़ा लेता हूँ। रसोईंघर में खाना पकाने वाले विशेष व्यक्ति होते हैं। नेपाली खाना पकाने के लिए सभी कच्ची सामग्री स्थानीय दुकान में खरीदी जा सकती है। चावल, नमक, खाद्य-तेल और सब्जियां आदि सब चीज़ें उपलब्ध हैं, जो पहले कम थी।"

नेपाली व्यापारी डिबु ने कहा कि फूलान कांउटी के सभी लोग उससे परिचित करते हैं। यहां उन्होंने बहुत ज्यादा दोस्त बनाए हैं। 56 वर्षीय तिब्बती दादा कुरू उनमें से एक है, जो डिबु परिवार के साथ घनिष्ठ संबंध कायम रहते हैं। डिबु के पिता जी के चीन में व्यापार करने के वक्त कुरू के पिता उनके लिए घोड़ों से माल का परिवहन करते थे। बाद में विश्वविद्यालय से स्नातक होने के बाद फूलान आने के शुरूआती दिनों में कुरू डिबु के लिए तिब्बती भाषा का दुभाषिया रहा। उस ज़माने में कुरू का घर गरीब था। डिबु कभी कभार उसे पैसे उधार देते थे। लम्बे समय में डिबु और कुरू के बीच दोनों के पिता जी की तरह घनिष्ठ मैत्री हो गई। अपने दोस्त डिबु की चर्चा में तिब्बती वृद्ध कुरू ने कहा:"डिबु एक ईमानदार व्यक्ति हैं। वह चीज़ों के दाम को मनमाने ढंग से तय नहीं करते। जब मैं कुछ खरीदना चाहता हूँ, तो पहले उनको फॉन करता हूँ। वह जरूर समय पर मेरे लिए तैयार करते हैं और गलती कभी नहीं करते।"

हमारी संवाददाता और तिब्बती वृद्ध कुरू के साथ

नेपाली व्यापारी डिबु ने बताया कि चीन में उनका जीवन बहुत आनंदपूर्ण है। व्यापार न करने के समय वह फूलान कांउटी के पूर्व स्थित पवित्र पर्वत कांगरनपोछिन(भारत में कैलाश जहा जाता है) का दौरा करते हैं। इसके अलावा वह निमंत्रण पाकर स्थानीय तिब्बतियों के विवाह रस्म में भी भाग लेता है। ऐसे कार्यक्रमों में हिस्सा लेना डिबु को बहुत दिलचस्प लगता है। उन्होंने कहा:"मैं सचमुच चीन से बहुत प्यार करता हूँ। मुझे लगता है कि तिब्बती समेत चीनी लोग बहुत ईमानदार हैं। मेरे संबंध उनके साथ बहुत घनिष्ठ हैं। सीमावर्ती क्षेत्र में रहने के बावजूद मेरा जीवन अच्छा है, मेरे पास कोई मुश्किल नहीं होती।"

बातचीत करते समय डिबु ने हमारे संवाददाता को अपने मोपाइल फ़ोन में सुरक्षित पत्नि, दो बेटियों और एक बेटे के साथ खींचे हुए फ़ोटो दिखाए। उन्होंने कहा कि परिवार के लोग सुखमय जीवन बिता रहे हैं। भविष्य की योजना और अपनी अभिलाषा पूछे जाने पर डिबु ने कहा:"वर्तमान में चीन नेपाल संबंध बहुत मैत्रीपूर्ण है। आशा है कि हमारा व्यापार दिन ब दिन अच्छे से अच्छा होता जाएगा। बेटे के विश्वविद्यालय से स्नातक होने के बाद मैं उसे चीनी भाषा सिखा दूंगा। क्योंकि चीनी लोगों के साथ व्यापार करना सचमुच अच्छा लगता है। मैं बेटे को पढ़ने के लिए शांगहाई भेजना चाहता हूँ। उम्मीद है कि भविष्य में वह मेरा स्थान लेकर परिवार के परम्परागत कार्य को आगे बढ़ाने के लिए फूलान आएगा।"

डिबु की दुकान में कई ग्राहक आते हैं, दोनों के बीच मोल भाव की आवाज़ गूंज उठी। इसके बाद एक सौदा तय हो गया।

डिबु ने पैसे को लकड़ी डिब्बे में डाले और मुस्कुराते हुए कहा:"अब मैं इसका प्रयोग कर रहा हूँ, भविष्य में इसका इस्तमेल भी जारी रखूंगा। बाद में मैं इस डिब्बे को अपने बेटे को दे दूंगा और मेरा बेटा भी इसका प्रयोग करेगा। दूसरी चीज़ें बदलने के बावजूद यह डिब्बा कभी नहीं बदलेगा।"

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