तिब्बत के लिनची प्रिफेक्चर की मिलिन कांऊटी का नानईको क्षेत्र अपने दर्शनीय प्राकृतिक सौंदर्य से विख्यात ही नहीं, चीन की काफी कम संख्या वाली लोपा अल्पसंख्यक जाति बहुल क्षेत्र भी है। इधर सालों में नानइको क्षेत्र के पारिस्थितिकी पर्यटन कार्य के जोरदार विकास के चलते बड़ी संख्या में स्थानीय लोपा जातीय लोग अपनी जातीय विशेषता वाले घरेलू होटल चलाने में सक्रिय हो गये हैं। आज के इस कार्यक्रम में हम आप को इस क्षेत्र के लोपा जातीय कबीली बंगला नामक मशहूर घरेलू होटल को देखने ले चलते हैं, ताकि आप इस लोपा जातीय विशेषता वाले रहन सहन को करीबी से महसूस कर सके।
नानइको क्षेत्र में जून और जुलाई माह का मौसम सब से सुहावना और खूबसूरत है। जब हम कार चलाकर नानइको क्षेत्र की पगडंडी पर आगे निकल जाते हैं, तो हम पगडंडी के दोनों किनारों के अद्भुत सौंदर्य पर एकदम मोहित हो जाते हैं, हरे भरे पेड़ पगडंडी के दोनों किनारों पर सुढंग रुप से उगे हुए दिखाई देते हैं, नानइ नदी पत्थरों से कतराते हुए निकलकर आगे बह जाती है, पहाडों के बीच पक्षियों की चहचहाहट सुनाई देती है, पेड़ों की शाखाएं हवा के झोंकों में हिलते जोलते हुए दिखाई देती हैं और झरने पत्थरों के साथ टक्कर मारने से ऊपर से जोर से नीचे गिरकर पड़ जाते हैं, यह अद्भुत अनौखा प्राकृतिक सौदर्य बड़े मधुर सिम्फोनी का आभास देता है। आगे बढ़ते बढ़ते अचानक एक बेहद अनूठे आंगन नजर आता है, नजदीक जाकर देखा कि काष्ठ से बने गेट पर लोपा जातीय कबीला फार्म शब्द लिखे हुए हैं।
हमारी कार अभी अभी रुक गयी, तो इस प्रांगण के मालिक लिन तुंग बड़े उत्साह के साथ हमारी अगवानी में आ पहुंचे। गेहुंवां रंग वाले लिन तुंग इस वर्ष तीस साल के हैं और वे बहुत हृष्ट पुष्ट लगते हैं, उन के भावुक स्वाभाव में शिकारी जातियों की विशेष अभिमानी देखी जा सकती है। हम लिन तुंग के साथ काष्ठ रोड़ पार कर उन के प्रागण पहुंच गये। प्रागण में विभिन्न किस्मों वाले फूल पौधे उगे हुए हैं, हरे भरे घास पौधे और खिले हुए रंग विरंगे फूल देखकर बड़ा जीगता जागता नजारा नजर आता है, जिस से हमें लगता है कि इस आंगन के मालिक प्राकृतिक दृश्य से बड़ा लगाव है। आंगन में कई जातीय वास्तु शैली युक्त मकान सुव्यवस्थित रुप से खड़े हुए दिखाई देते हैं। ये सभी दुमंजिले मकान काष्ठ से निर्मित हुए हैं, निचली मंजिल गोदाम का काम देती है और ऊपर वाले कमरे रहने के लिये हैं। लिन तुंग ने इस का परिचय देते हुए कहा कि यह लोपा जाति की सब से पुरानी वास्तु शैली में निर्मित हुए हैं। उनका कहना है:"पहले हम बड़े पर्वत में रहते थे, मकान मुख्य रुप से बांस से बने हुए थे। अब पहाड़ से मैदानी इलाके में आने के बाद लकड़ियों से मकान बनवाये गये हैं। मेरे ये सभी मकान उक्त दोनों विशेष शैलियों में निर्मित हुए हैं। हमारी लोपा जाति एक पहाड़ी जाति है, इस वास्तु शैली में निर्मित मकान भूकम्प से बचते ही नहीं, सामग्री भी आसानी से मिलती है, साथ ही जानवरों के आकस्मिक प्रहारों से भी बच जाते हैं।"