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तिब्बत की सहायता के लिये होपेह प्रांत से आये कार्यकर्ता लू रुई छिंग की अभिलाषा
2012-08-06 16:51:43

अली क्षेत्र तिब्बत का सब से रहस्यमय स्थल जाना जाता है और यह स्थल सिंधु नदी के ऊपरी भाग पर अवस्थित भी है। यहां पर अपने विशेष दर्शनीय प्राकृतिक दृश्य और मानवीय भू दृश्य को छोड़कर विश्व में सब से कीमती ऊन पैदा होता है, अब यह कीमती ऊन चिन हाडा नामक ब्रांड से प्रसिद्ध हो गया है, जबकि इस ब्रांड का संस्थापक चीन के भीतरी क्षेत्र के होपेह प्रांत से आये सरकारी कार्यकर्ता लू रुई छिंग ही हैं।

2001 में जब चीन सरकार ने भीतरी क्षेत्र के सरकारी कार्यकर्ताओं से सहायता के लिये तिब्बत जाने का आहवान किया, तो सरकारी कार्यकर्ता लू रुई छिंग इसी आहवान में आकर तिब्बत गये, पर उस समय वे होपेह प्रांत के शीचाच्वांग शहर के अधीन एक कांऊटी स्तरीय शहर का उप मेयर थे। पिछले अनेक साल में काम करते करते उन्हें धीरे धीरे तिब्बत के अली प्रिफैक्चर से बड़ा लगाव हो गया। उन्होंने अपना अनुभव बताते हुए कहा:

"सर्वप्रथम काम की दृष्टि से देखा जाये, तिब्बत का वातावरण इतना अनुकूल है कि यहां पर हरेक कार्यकर्ता अपने उत्साह को पूर्ण रुप से प्रदर्शित कर सकता है, पहलकदमी से काम करने का बड़ा गुंजाइश है, निष्क्रिय कामकाजी मामलात बहुत कम हैं। यदि आप उत्साही और बुद्धिमान हैं, तो आप निश्चिंत रुप से अपनी बुद्धि व प्रतिभा को पूर्ण रुप से प्रदर्शित कर सकते हैं। तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की पार्टी कमेटी और विभिन्न स्तरीय सरकारें स्वच्छ शासन करती हैं, वे हरेक कार्यकर्ता को अपनी प्रतिभा प्रदर्शित करने का मंच प्रदान करती हैं। दूसरी तरफ तिब्बत के स्थानीय लोग बहुत सीधे सादे हैं, यहां के कार्यकर्ता और जन समुदाय अत्यंत सरल भी हैं, उन के साथ निश्चिंत रुप से दिल खोलकर बातचीत कर सकते हैं, जब आप ने उन की भलाई में थोड़ा बहुत काम किया, तो उन्होंने आप के प्रति अवश्य ही आभारी प्रतिक्रिया व्यक्त की।"

तिब्बत की राजधानी ल्हासा शरह समुद्र की सतह से 3 हजार 8 सौ मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, जबकि अली क्षेत्र की औसत ऊंचाई समुद्र की सतह से चार हजार पांच सौ मीटर से अधिक भी है, यहां के वातावरण में आक्सिजन मात्रा चीन के भीतरी इलाके का 60 प्रतिशत है, इसलिये भीतरी क्षेत्र से आने वाले लोगों को आम तौर पर बड़ी दिक्कतें होती हैं, लू रुई छिंग इस के अपवाद भी नहीं हैं । उन्होंने तिब्बत में काम करने में प्राप्त अनभवों को अपनी जिंदगी में सब से अनमोल संपदा समझी। उन का कहना है कि जब देश की सीमांत रेखा पर खड़ा होकर सामने भारतीय सीमावर्ती निवासियों और उन के जीवन वातावरण को देखने को मिलता है, तो स्वाभाविक रुप से अपने देश के सीमांत निवासियों के जीवन की याद आती है, इसी वक्त मेरा मन चाहता है कि अपने सीमांत निवासियों का जीवन बेहतर से बेहतर हो और संभ्यता की प्रक्रिया और तेज हो। यही जागरुकता मुझे काम करने के लिये बड़ा प्रोत्साहन देती है। जिस से मुझ में तीव्र जिम्मेदारी भावना उत्पन्न हो जाती है। लू रुई छिंग ने कहा:

"मुझे थोड़ा बहुत तिब्बती भाषा बोलना आता है, मसलन टुछिछि का अर्थ है धन्यवाद। जब हम गांव जाते हैं, तो बहुत ज्यादा गांववासी हमारे हाथ मिलाते हुए टुछिछि, टुछिछि कहते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि सरकार उन की भलाई के लिये विविधतापूर्ण सेवाएं उपलब्ध कराती है, वे इस बात पर सरकार के आभारी हैं।"

लू रुई छिंग ने परिचय देते हुए कहा कि स्थानीय किसानों व चरवाहों की आमदनी को बढाने के लिये उन्होंने विशेष तौर पर प्रशिक्षण कक्षाएं खोल दीं। उस समय सरकार ने हर वर्ष कृषि व पशुपालन क्षेत्रों में सड़कों की मरम्मत करने, कुऐं खोदने और अन्य कुछ बुनियादी संस्थापनों के निर्माण में काफी बड़ी धन राशि अनुमोदित दे दी है। पर इन परियोजनाओं का निर्माण जिम्मा अधिकतर बाहर से आये व्यक्तियों या कुछ उपक्रमों ने संभाल लिया, स्थानीय किसान व चरवाहे इस में शामिल नहीं हुए हैं। बाद में लू रुई छिंग को पता चला है कि ऐसी परियोजनाओं का निर्माण ज्यादा मुश्किल नहीं है और उच्च तकनीकी कौशल की जरुरत भी नहीं है, स्थानीय किसान व चरवाहे विशेष प्रशिक्षण लेने पर भी इन परियोजनाओं का निर्माण करने में समर्थ हो जाते हैं। बाद में उन के समर्थन में स्थानीय किसानों व चरवाहों ने तकनीकी प्रशिक्षण ले कर सड़कों के निर्माण के कुछ संबंधित मुद्दों को ठेके पर ले लिया। इसी तरह उन्होंने पहले से ज्यादा पैसे कमा लिये हैं और अपना जीवन स्तर भी सुधार किया है। इसकी चर्चा में लू रुई छिंग ने कहा:

"अतीत के कर्जदारों ने अपना कर्ज चुकाने के लिये पर्याप्त पैसे प्राप्त किये हैं। जिन के घर में भेड़ बकरियां ज्यादा नहीं हैं, वे पैसे कमाने के बाद और ज्यादा भेड़ बकरियां खरीदने में समर्थ भी हुए हैं। क्योंकि यहां पर भेड़ बकरियों की संख्या निश्चित हद तक किसानों व चरवाहों की घरेलू संपत्ति का द्योतक मानी जाती है। कुछ परिवारों में ट्रेक्टर नहीं है, अब उन के पास ट्रेक्टर खरीदने के लिये पर्याप्त पैसे भी हैं। और ऐसे लोग भी हैं, पहले हाथ तंग होने की वजह से अपना जीवन बहुत सरल व गरीब है, अब पैसे कमाने के बाद पर्याप्त चाय, मक्खन और रोजमर्रे में आने वाली दूसरी वस्तुएं भी खरीद लेते हैं। कुछ लोगों के पास पोषाक व फर्निचर नहीं है, अब वे अपनी पसंदीदा पोषाके व फर्निचर खरीद लेते हैं।"

जीवन स्तर सुधर गया है, स्थानीय किसानों व चरवाहों का सांस्कृतिक जीवन भी उत्तरोत्तर रंगारंग होने लगा है। उदाहरण के लिये अब वे रेडियो सेट से प्रसारण सुन पाते हैं। हालांकि वे बड़े बड़े पर्वतों व जंगलों में बसे हुए हैं, पर फिर भी यह महसूस हुआ है कि वे युग के साथ साथ आगे बढ़ते हैं। इस के अलावा हर वर्ष में जब जौ की फसल काटी जाती है, तो सब लोग इकट्ठे होकर भव्य मिलन समारोह आयोजित करते हैं, अपनी शानदार फसल की खुशियों में लोग मुक्त कंठ से गीत गाते हैं, घुड़ सवारी करते हैं, तीरंदाजी करते हैं और नाच गान भी कर लेते हैं।

विकसित आर्थिक क्षेत्र से आये सरकारी अधिकारी होने के नाते लू रुई छिंग स्थानीय किसानों व चरवाहों को खुशहाल जीवन बिताने देने के लिये संकल्पबद्ध हैं, वे अपनी यह तमन्ना पूरी करने की खोज करने के लिये प्रयासशील हैं। एक दिन उन्होंने आश्चर्य से अली डिस्ट्रिक्ट की रअथू कांऊटी में पाइ रुंग नामक बकरी का पता लगाया , इसी किस्म वाले बकरी का ऊन अत्यंत सूक्ष्म है, उसे कश्मीरी कहा जाता है, इसी किस्म वाली कश्मीरी की क्वालिटी तिब्बती जंगली एंटीलोप की कश्मीरी के बराबर है। कहा जाता है कि 16वीं शताबदी में यूरोपीय देशों की बेगमों के शाँल तिब्बत के अली क्षेत्र में पैदा इसी ऊन से बुनाये गये हैं, उस समय इसी किस्म वाले ऊन को कश्मीर से होकर यूरोप में पहुचाये जाते थे, फिर यूरोप में इसी ऊन से शांल बुनाये गये हैं , इसलिये बाद में यह ऊन कश्मीरी के नाम से विश्वविख्यात हो गया है, वास्तव में तिब्बत के अली डिस्ट्रिक्ट की रअथू कांऊटी इसी कीमती कश्मीरी का उत्पादन क्षेत्र ही है। लू रुई छिंग ने सोचा कि यदि इसी कीमती कश्मीरी का गहरा प्रोसेसिंग करने के बाद उस का मूल्य और बढ़ेगा, तो स्थानीय वासियों को और बड़ा लाभ होगा।

इस के मद्देनजर लू रुई छिंग ने अपने साथियों के साथ उच्च कोटि वाले तत्वों को लेकर काम करना शुरु कर दिया। इसी बीच उन्होंने सब से बढ़िया क्वालिटी वाली पाइशान कश्मीरी को सब से बढ़िया प्रोसेसिंग उपक्रम यानी चीनी कश्मीरी औद्योगिक उपक्रम अरडोस कम्पनी और सब से विख्यात डिजाइनर व तिब्बत के विशेषता वाले सांस्कृतिक तत्वों के साथ जोड़ दिया है। उपक्रम के विकास के लिये 11वें पनचन लामा अरदनी ने बड़ी प्रसन्नता से विशेष तौर पर यह अभिलेख भी लिखा कि जनता की भलाई में आर्थिक विकास करो। उच्च कोटि वाले तत्वों से तैयार तिब्बती कश्मीरी ब्राण्ड किन हाडा भी तिब्बत का एक प्रसिद्ध मार्क बन गया है। चिन हाडा ब्राण्ड के विकास पर होपेह प्रांत से आये लू रुई छिंग को बड़ी खुशी व गर्व है । उन का कहना है कि हाडा तिब्बत का एक द्योतक है, वह लोगों के आशीर्वाद का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि चिन हाडा सब से सुंदर व सब से सदिच्छापूर्ण आशीर्वाद ही है। लू रुई छिंग ने कहा:

"मुझे उम्मीद है कि हमारे तिब्बत की चीजों से अपने तिब्बती उत्पादनों को तैयार किया जायेगा, अपने कच्चे मालों की श्रेष्ठता को आर्थिक श्रेष्ठता का रुप दिया जायेगा। इस से बाहर से आने वाले दोस्तों को प्रेम व आशीर्वाद दिये जाते ही नहीं, बल्कि इसी माध्यम से अपने विशेषता वाले उद्योग की स्थापना भी की जायेगी, ताकि स्थानीय किसानों व चरवाहों को आय बढाने में मदद दी जा सके।"

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