अभी आप ने टी वी फिल्म में जिस महिला को देखा है , वह ही हूं , मैं चीन से आयी हूं , एक साधारण डाकिया हूं , मेरी जन्मभूमि रमणीय श्यांगकालीला में है , मेरा डाक मार्ग पाइमा बर्फीले पर्वत से मेली बर्फीले पर्वत की घाटी में है।"
यह बात 13 मई 2011 को स्थानीय समय के अनुसार साढे एक बजे निमालामू स्वीटजरलैंड में योपीयो की 24 वीं महा सभा में बोल रही थीं ।
निमालामू युन्नान प्रांत के तिछिंग तिब्बती जातीय स्वशासन प्रिफेक्चर की त्हछिन कांऊटी के दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्र में स्थित युनलिंग टाऊनशिप डाक घर की एक तिब्बती ग्रामीण डाकिया हैं। वे 31 प्राकृतिक गांवों के पांच हजार आठ सौ से ज्यादा ग्रामीण वासियों की डाक सेवा करती हैं, पर ये गांव नौ सौ से अधिक वर्गकिलोमीटर विशाल पहाड़ों व नदी घाटियों में बिखरे हुए हैं। यहां पर गगनचुम्बी बर्फीली चोटियां ही नहीं , भौगोलिक स्थिति अत्यंत जटिल है और मौसम बहुत खराब भी है। गर्मियों में पर्वत की तलहटी और घाटियों का तापमान 11 से 30 डिग्री होता है, पर ऊंचे पर्वत पर यह तापमान तो माइनस 10 से 20 डिग्री तक होता है। और तो और उफनती लान छांग नदी को पार करना है , उन का यह डाक मार्ग विविधतापूर्ण जोखिमों से भरा ही नहीं, हर कदम रखना भी बेहद कठिन है।
लेकिन निमालामू को यहां पर काम किये हुए दसेक साल हो गये हैं , उन का कद केवल डेढ़ मीटर ऊंचा है, पर उन्होंने भारी डाक पार्सल पीठ पर लादकर हजार बार झुलते पुल और ऊफनती लान छांग नदी को पार किया है और अपने दोनों पैरों से जोखिमों से खच्चाखच दो लाख किलोमीटर से लम्बे डाक मार्ग तल कर लिया है।
एक व्यक्ति, दो लाख किलोमीटर से अधिक डाक मार्ग ...... मेरी सोच फिर उन के डाक मार्ग पर उड़ गयी ...... ।
आकाश से बात करने वाले मेली बर्फीले पर्वत के नीचे लानछांग नदी गरजते हुए आगे बहती जाती है। राजमार्ग के पास खड़े होकर त्हछिन कांऊटी के डाक ब्यूरो के प्रधान यांग ली मिन ने मुझे बताया:
"यहां पर निमालामू का डाक मार्ग देखा जा सकता है। देखिये, सामने जो टेढा मेढा पगडंडी रास्ता दिखाई देता है, वह युनलिंग टाऊशिप से सनोंग से शीतांग इन दोनों प्रशासनिक गांवों तक पहुचने वाला डाक मार्ग ही है, यह मार्ग 70 किलोमीटर से अधिक लम्बा है, सनोंग गांव से शीतांग गांव तक जाने में तीन दिन लगते हैं। आम तौर पर डाक पार्सल 15 या 20 किलोग्राम भारी है, डाकिया इतना भारी डाक पार्सल लिये दिन में ज्यादा से ज्यादा 20 किलोमीटर टेढा मेढ़ा रास्ता तय कर सकता है।"
सामने खड़े पहाड़ पर जो धुंधला सा पगडंडा रास्ता दिखाई देता है, वह मानो पेंसिल से खिंचा गया हो, गौर से देखकर पता चला है कि वह ही पिछले दसेक साल में निमालामू का आने जाने का डाक मार्ग ही है। प्रधान यांग ने कहा कि इसी प्रकार के पहाड़ी रास्ता सिर्फ इन तीन किस्मों वाले व्यक्ति तय कर लेते हैं। एक है निष्ठावान तीर्थ यात्री, दूसरा है पर्यटन खोजकर्ता और तीसरा है ग्रामीण डाकिया।
जब मेरी मुलाकात निमालामू से हुई, तो वे अपने काम में व्यस्त थीं। माइक्रोफोन लगाकर हम बातचीत करने ही वाले थे, तो वे अचानक रो पड़ीं। उन्होंने कहा:
"जब मैं ने जो काम पूरा किया है , तो मैं उसे पूरी तरह भूल गयी हूं , उस की याद कभी नहीं आती । आम दिनों में मुझे दूसरे के साथ बात करना पसंद नहीं है , क्या बोलना भी नहीं आता है । मैं हान भाषा अच्छी तरह नहीं बोल सकती, जब बोलती हूं, तो लोगों को मुझ पर हंसी आती है ।"
फिर बार बार प्रश्न पूछने पर वे चुपी साधकर कुछ नहीं बोलतीं। निमालामू की भीतरी दुनिया को जानने के लिये मैंने दूसरे दिन उन के साथ डाक भेजने का फैसला कर लिया।
पठार पर स्थित छोटे गांव की सुबह एकदम शांत और निर्मल है। पौ फटते ही निमालामू दोनों डाक पार्सलों को पीठ पर बिठाकर हाथों में अन्य दो छोटे पार्सल लिये बाहर चल निकलीं। निमालामू के तीन डाक मार्ग हैं, आज हम जो हुंगपो गांव जा रहे हैं, वह इन तीनों डाक मार्गों में सब से नजदीक है।
जब डाक भेजा जाता है, तो निमालामू को लान छांग नदी की ती रअ घाटी और चार हजार मीटर ऊंचे पर्वत को पार करना पड़ता है। दिन में माइनस की कड़ी सर्दी और तीस डिग्री से अधिक सख्त गर्मी सहनी भी पड़ती है, इतना ही नहीं, भूस्खलन, जहरीले सांपों और जंगली जानवरों से सतर्क बरतने की जरूरत भी है, क्योंकि खतरा हर वक्त आने की संभावना मौजूद है।
"भेडिया आया है, भेड़िया पर्वत के नीचे आ गया है। यहां पर सांप काफी अधिक हैं, पता नहीं, वह किस समय पर एकदम सामने आता है, सावधार रहो।"
हम निमालामू के साथ समुद्र की सतह से तीन हजार से अधिक ग्रामीण डाक मार्ग पर चलते हैं ।
असल में यह कोई मार्ग नहीं कहा जा सकता है, सामने केवल छिछले व गहरे पदचिन्हें नजर आते हैं। मैंने सोचा कि शायद ये पदचिन्हें पिछले दसेक सालों में निमालामू ने छोड़ दिये हो। हम बड़ी सावधानी से इन पद चिन्हों का अनुसरण करते हुए आगे बढ़ जाते हैं, नहीं तो गहरी घाटी में गिरने की मुसीबत आयेगी।
विश्राम के समय निमालामू ने फिर भी पीठ पर रखे दोनों भारी डाक पार्सल और गोद में लिये छोटे पार्सल नहीं उतारे, बार बार सलाह देने पर भी वे नीचे उतारने को तैयार भी नहीं हैं। निमालामू ने कहा:
"हमारे डाक पार्सल तेज, सही, सुरक्षित और सुविधापूर्ण हैं, एक डाकिया होने के नाते मुझे इस का दायित्व निभाना ही होगा।"
एक पहाड़ी मोड पारकर और एक पहाड़ी मोड़ सामने नजर आता है। मैंने देखा है कि सामने एक पहाड़ी ढलान पर एक लौहे चेन आकाश से नीचे लटक रहा है। ऐसे मौके पर निमालामू जोर से चिल्लाने लगीः भाग जाओ, भाग जाओ। चार पांच सैकंड के बाद लकड़ियों का एक बंडल उस लौहे चेन से नीचे लुढक आया । ये लकड़ियां जहां गिर पड़ी हैं, वहां अभी अभी हम खड़े हुए हैं। निमालामू ने हमें बताया कि तिब्बती लोग इसी लौहे चेन के जरिये लकड़ियों को पहाड़ के नीचे भेज देते हैं।
हम साथ मिलकर चुपचाप से आगे बढ़ जाते हैं, धीरे-धीरे उन्होंने मुझे मेरे जिज्ञासु सवालों का जवाब दिया है । मसलन डाक भेजते समय हरित डाक पोषाकों के बजाये लाल पोषाक क्यों पहनी जाती है। इसकी चर्चा में निमालामू ने कहा:
"हमारे डाक मार्ग बड़े बड़े पर्वतों के बीच में पड़े हैं, चारों तरफ हरित रंग दिखाई देता है, लाल रंग सब से चमकदार और आकर्षित है , यदि किसी खतरे में पड़ जाऊं, तो स्थानीय वासी आसानी से मुझे उबार सकते हैं।"
सालभर में बड़े बड़े पर्वतों के बीच आती जाती हैं, आखिर किस के लिये है। निमालामू का जवाब इस प्रकार है:
"पत्र, अखबार स्थानीय वासियों के लिये बहुत महत्वपूर्ण हैं, डाक पार्सल सब से अहम है, जी हां, छात्र का दाखिला सूचना पत्र ज्यादा महत्वपूर्ण भी है। जब किसी छात्र ने अपना दाखिला सूचना पत्र खोलकर देखा कि वह विश्वविद्यालय में दाखिला हुआ है, तो उस का खुशी का ठिकाना न रहा, मत पूछिये, यह देखकर मैं भी उतनी ही खुश हूं और अपने काम पर भी अत्यंत संतुष्ट हुई हूं।"
दूसरे की प्रसन्नता के बारे में निमालामू ने अपना अनुभव बताते हुए कहा: "उन्होंने अपना पत्र मुझे देने के साथ साथ अपना दिल भी दे दिया है। चाहे स्थिति कितनी कठोर क्यों न हो, मेरा दायित्व पत्र पत्रिकाओं को स्थानीय वासियों के हाथों सौंप देना ही है, मैं आगे भी इसी रास्ते पर कायम रहूंगी ।"
न जाने हम ने कितनी नदियों को पार किया है, कितने मोड़ लगा दिये है और कितना लम्बा रास्ता तय कर लिया है।
कुछ दूरी पर तिब्बती वासियों द्वारा लटकाये रंगीन झंडियां हवाओं में फहराते हुए दिखाई देती हैं। निमालामू ने मुझे बताया कि अब हम सचमुच गंतव्य स्थल पहुंच गये हैं। हुंगपो गांव एक एकदम शांत व निर्मल स्थल है, यहां का आसमान इतना नीचा है, मानो हाथ आगे बढाकर ऊपर मंडराते बादल को पकड़ा जा सकता हो।
गांववासी अतिमू का बेटा छिंगहाई में विश्वविद्यालय में पढ़ता है, आज निमालामू ने उस के बेटे का पत्र ले आयी हैं। उस का दूसरा बेटा चुंग त्येन में नौकरी करता है, इस बेटे ने डाक से जो पैसे वापस भेजा है, वह भी निमालामू ने उसे ले आयी हैं। उस के अन्य एक बेटे का दाखिला सूचना पत्र भी निमालामू ने घरवालों को दे दिया है।
तिब्बती लड़की हो फिंग ये अकसर निमालामू के जरिये शांगहाई की एक कम्पनी से फैशनेबुल त्रेस खरीदती है। उसने कहा कि उसने अकसर यह काम निमालामू को सौंप दिया है, उसे उन पर बहुत विश्वास है। धीरे-धीरे वो दोनों दोस्त बन गयी हैं, अब हो फिंग निमालामू को दीदी कहकर पुकारती है।
गांववासियों को पत्र भेजने के बाद निमालामू फिर हुंगपो प्राइमरी स्कूल की ओर चल पड़ी।
उन्होंने पत्र पत्रिकाएं हुंगपो प्राइमरी स्कूल में भेज दीं, इस प्राइमरी स्कूल के अध्यापक छिंगमि त्सेरिंग बड़ी संजीदगी के साथ पढ़ लगे। उन्होंने कहा कि वे लोग राजकीय मामलात व हाल में हुई घटनाएं, कुछ आधुनिक सूचनाएं और सीमांत जातीय क्षेत्रों के बारे में पार्टी की केंद्रीय कमेटी की नीतियां समय पर जानना चाहते हैं। निमालामू बाहर के साथ जोड़ने वाले पुल और सम्पर्क की भूमिका निभाती हैं।
निमालामू यहां से निकलने ही वाली हैं, गांववासी चाशितुंड्रोप उन्हें अपने रिश्तेदार के नाम लिखा पत्र सौंपते हुए कहा कि हमारी तिब्बती जाति में यह परम्परा है कि यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति से काम कराना चाहता है, तो वह अपना दिल भी उसी व्यक्ति को दे सकता है। हम निमालामू को अपना पत्र उन्हें देते हैं, इस का मतलब है कि हम ने अपना दिल भी दे दिया है।
हम यह बात सुनकर समझ गये हैं कि पिछले दसेक सालों में निमालामू तिब्बती वासियों के दिल लिये दो लाख किलोमीटर से अधिक ऊबड़ खाबड़ पहाड़ी रास्ता तय करने में मस्त हैं। निमालामू अकेली नहीं हैं, युनलिंग टाऊनशिप के पांच हजार आठ सौ से अधिक तिब्बती बंधुओं का गरमागरम दिल हमेशा उन के साथ रहा है ।