48 वर्षीय तिब्बती समाजशास्त्री तनचेन ह्लुतुप का जन्म तिब्बत की राजधानी ल्हासा में हुआ और अब वे पेइचिंग में काम करते हैं। आज से 30 साल पूर्व जब पहली बार पेइचिंग आए, वे बहुत खुश थे। उस समय की याद उन्हें अभी भी ताजा है। तनचेन ह्लुतुप का कहना हैः
"पेइचिंग आने पर ही मैं त्यानआनमेन चौक गया और फोटो भी खिंचवाया गया। फिर मैं केन्द्रीय जातीय विश्वविद्यालय का पुस्तकालय गया। वहां पर मैंने ढेरों पुस्तकें व सामग्रियां पढ़ीं। विशेषज्ञों के साथ मैंने बातचीत भी की। उस साल मैं तिब्बत जातीय कॉलेज में पढ़ता था। हमारे कॉलेज में पुस्तकें इतनी ज्यादा नहीं थी। इसलिए पेइचिंग की यात्रा मेरे लिए अत्यंत फायदेमंद थी।"
हालांकि उस बार का प्रशिक्षण सिर्फ 10 दिन चला था, पर तनचेन ह्लुतुप इसे कभी नहीं भूल सकते।
दो साल बाद उत्तर-पश्चिम चीन के शेनशी प्रांत स्थित तिब्बत जातीय कॉलेज से स्नातक होने के बाद तनचेन ह्लुतुप ल्हासा वापस लौटे और उन्होंने तिब्बती सामाजिक विज्ञान अकादमी में तिब्बती साहित्य से जुड़े काम करना शुरू किया। काम करने के दौरान उन्हें तिब्बती साहित्य से संबंधित दुर्लभ व कीमती प्राचीन कापियां देखने का मौका मिला और वे अनेक मशहूर विद्वानों से परिचित हो गए। वे अक्सर इन विद्वानों से मिलने जाते हैं और उनसे शिक्षा लेते हैं।
कुछ समय के बाद तिब्बतशास्त्र अनुसंधान केन्द्र पेइचिंग में स्थापित हुआ। तनचेन ह्लुतुप अपनी योग्यता व विद्वानों की सिफारिश पर अनुसंधान केन्द्र में काम करने पेइचिंग आए। इस तरह उन्हें आगे पढ़ने के लिए और ज्यादा मौके मिल गए। वर्ष 2001 में वे पेइचिंग विश्वविद्यालय से स्नातक हुए और चीन के पहले तिब्बती समाजशास्त्र डॉक्टर बन गए। इस पर तनचेन ह्लुतुप ने कहाः
"मैं मुझे सहायता देने वाले सभी विद्वानों का बहुत आभारी हूं। उनमें तिब्बती जाति के अलावा हान और अन्य जातियों के विशेषज्ञ भी हैं। उन्होंने मेरी बड़ी मदद की और मुझे तिब्बती समाजशास्त्र के काम में जुटने का विश्वास दिलाया। इन विद्वानों द्वारा जो तिब्बती जातीय संस्कृति के बारे में जानकारी मुझे दी गई है, वह विश्वविद्यालय के कोर्स में नहीं मिल सकती। उनके साथ काम करने से मुझे बड़ा फायदा मिला है।"