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तीर्थ-भूमि को कलंक हुआ कर्मकांड नापसंद
2012-04-04 16:14:31

दुनिया में भारत का बौधगया बौद्ध धर्मानुयाइयों का आध्यात्मिक व भावनात्मक केंद्र रहा है,जहां शांति व सद्भावना मिलती है।2000 वर्षों से अधिक समय पहले गोतम बुद्ध को यहां बुद्धि प्राप्त हुई थी।तब से यहां आने वाले तीर्थयात्रियों की तांता लगी रही है और यहां जो बौद्ध धर्म संबंधी आयोजन किए गए हैं,वे भी अनगिनत हैं।इस साल जनवरी की पहली से 10 तारीख तक दलाई गुट के समर्थन में 14वें दलाई लामा ने बौधगया में अपने जीवन में 32वें"चक्र वज्र अभिषेक कर्मकांड"की अध्यक्षता की।लेकिन खेद की बात यह है कि यह कर्मकांड भी अतीत में हुए अपने तरह के आयोजनों की ही तरह शुद्ध बौद्ध गतिविधि के रूप में नहीं देखा गया।उसमें बौद्ध सूत्रों के खिलाफ़ धोखाधड़ी,षड़यंत्र,दुष्प्रचार और घृणा का पूरा आसार दिखाई दिया।ऐसा इसलिए कहा गया है,क्योंकि सुख और बुद्धि की प्राप्ति के उद्देश्य से आयोजित यह बौद्ध कर्मकांड विभाजन व उपद्रव के राजनीतिक विचार से प्रेरित होकर चला है।कर्मकांड के आयोजन से पूर्व आयोजकों ने दलाई लामा के कथित जीवन व काम,कथित निर्वासित सरकार और निर्वासित तिब्बती समुदाय,कथित लोकतांत्रिक व्यवस्था और तिब्बत-सवाल के बारे में वृतचित्र दिखाने के माध्यम से व्यापक बौद्ध धर्मानुयाइयों में दलाई व कथिक निर्वासित सरकार के विचारों का खूब प्रचार-प्रसार किया।कर्मकांड की तैयारियों के दौरान निर्वासित सरकार के बाहरी संगठनों ने भी बहुत बड़ा उत्साह दिखाया,उदारहण के लिए उग्र तरीक से स्वतंत्रता प्राप्त करने की राह पर कायम तिब्बती युवा संघ के सदस्यों ने कर्मकांड के स्वयंसेवकों के रूप में चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश से आए बौद्ध-भिक्षुओं को तिब्बत की स्वतंत्रता के लिए उकसाने की कोशिश की।अगर कहा जाए कि कर्मकांड के आयोजन से पहले के कुछ समय का फायदा उठाकर किसी स्वार्थ के लिए राजनीतिक दुप्रचार करना समझ में आ सकता है,तो कर्मकांड के आयोजन के दौरान मुकाबले व विभाजन का ढिंढोरा पीते फिरना व्यापक ईमानदार बौद्ध भिक्षुओं के धर्म से प्यार को पैरों तले रौंदने जैसा माना जा सकता है।

गत जनवरी की तीसरी तारीख को कर्मकांड के दौरान दलाई लामा ने बौद्ध सूत्रों की चर्चा करने के बाद अचानक अपनी बात को तिबबत में तिब्बतियों को स्वतंत्रता उपलब्ध नहीं होने के विषय पर केंद्रित किया और कर्मकांड के पूरे सभागाह को कथित मध्ममार्ग के प्रचार-प्रसार का स्थल बनाया।इससे चीन सरकार का विरोध करने और तिब्बत का विभाजन करने का दलाई लामा का विचार साफ़ तौर पर जाहिर हुआ है।

दूसरी तरफ़ कर्मकांड के दौरान की गई बुद्धिमत्ता,समझदारी व सहनशीलता से जुड़ी बौद्ध सूत्रों की व्याख्या में घृणा,आतंक और उग्रवाद के बहुत सारे विचार डाले गए हैं।गत मार्च माह के बाद तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में कई बौद्ध-भिक्षुओं का आत्मदाह होने की घटनाएं हुई हैं।इन उग्रवादी घटनाओं में मारे गए युवाओं के लिए सभी दयालु और जागृत लोगों को,चाहे वे तिब्बती हो या हान जाति के लोग,चीनी हो या विदेशी,बहुत दुख हुआ है और साथ ही इन युवाओं को ऐसा करने के लिए उकसाने वालों से ज्याजा नफ़रत भी हुई है।कर्मकांड से आत्मदाह की प्रशंसा की बू भी आई।2011 की 27 फरवरी को बौधगया में मुख्य स्तूप के समक्ष आयोजित 3 दिवसीय बौद्ध कर्मकांड के दौरान "तिब्बत के जातीय स्वतंत्रता के कार्य के लिए हिम्मत से आत्मदाह में जान अर्पित करने वाले तिब्बतियों की आत्मा को शांत करने वाली प्रार्थना-सभा" भी बुलाई गई थी।2011 की 31 दिसम्बर से 2012 की दूसरी जनवरी तक "तिब्बती संगीतकार संघ"ने लगातार 3 दिनों तक"तिब्बती शहीदों और उन के हिम्मती कारनामों व योगदान की याद" शीर्षक से संगीत-समारोह आयोजित किया था।कर्मकांड के दौरान निर्वासित सरकार ने एक वक्तव्य जारी कर आत्मदाह की घटनाओं पर व्यथा तो प्रकट की ,लेकिन बेहद अजीब रूप से चीन सरकार से मांग की कि वह इन घटनाओं के लिए जिम्मेदार हो जाए।यह अपने दोष को दूसरे पर थोपना नहीं, तो और क्या है?यहां तक कि तिब्बती युवा संघ ने खुले तौर पर आत्मदाह करने वाले तिब्बतियों की महान भावना की भूरि-भूरि प्रशंसा की।

इन गतिविधियों ने निस्संदेह बौद्ध कर्मकांड में कुछ खूनी सा रंग लाया है।

सचमुच किसी भी एक निर्दोष जीवन का अंत होना दुखमय है।लेकिन इस तरह के आत्मदाह की कार्यवाही को बिना सिद्धांत के वीरता की ऊंचाई पर पहुंचाना आत्मदाह में मृत हुए लोगों की स्मृति की बजाए जीवित लोगों को "आत्मदाह के महान कार्य" में जुटे रहने के लिए प्रोत्साहित करने की भूमिका अदा करता है।बौद्ध धर्म सहनशीलता,समझदारी,सद्भावना,

विनम्रता और अलौकिकता पर जोर देता है।आत्मदाह जैसी उग्र कार्यवाही को प्रत्साहित करना किसी भी तरह बुद्ध की इच्छा नहीं है।दलाई गुट के मुख्य कार्यकर्ताओं ने बौद्धकथा में वर्णित कुछ किस्सों के सहारे आत्मदाह को युक्तिसंगत बताने की कोशिश की।लेकिन न भूलें कि बौद्धकथा में जो कहानियां उल्लिखित हैं,वे करुण की भावना से भरी हैं,न कि घृणा से जैसे दलाई गुट ने प्रचार-प्रसार किया है।एक कदम पीछे हटकर कहा जाए कि अगर आत्मदाह का सचमुच बौद्धधर्म पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता है,तो दलाई गुट के मुख्य कार्यकर्ताओं ने आत्मदाह में खुद पहल क्यीं नहीं की?राजनीति की ज्यादा ज्ञान न रखने वाले लोगों की जान की कीमत पर राजनीतिक स्वार्थ प्राप्त करना क्या मानवीय माना जा सकता है?

बौद्ध कर्मकांड के दौरान जातीय अंतरविरोध को बढा-चढ़ा कर पेश किया गया।गत 5 जनवरी को "निर्वासित तिब्बती सरकार" के प्रधान मंत्री और अन्य प्रमुख कार्यकर्ताओं ने कर्मकांड के सभागाह में एक न्यूज-ब्रींफिंग बुलाई और तिब्बत-सवाल के बारे में कहा कि तिब्बतियों को सिर्फ इसलिए स्वयत्तता नहीं मिल सकी है,चोंकि वे हान जाति के नहीं हैं।क्या यह कथन वाकई आश्चर्यजनक नहीं है?क्या यह जातीय घृणा भड़काने और जातियों के बीच संबंधों में फूट डालने वाला कथन नहीं है?हो सकता है कि खुद दलाई लामा को भी यह कथन सुनकर शर्म आती है।यहां यह पूछते हैं कि अगर तिब्बतियों को स्वायत्तता नहीं उपलब्ध है,तो तिब्बत स्वायत्त प्रदेश कहां से आया है?अमरीका के हवाई विश्वविद्यालय में शिक्षित हुए यह "प्रधान मंत्री"जरूर जानते हैं कि अगर वह अमरीका में यह बात कहे कि मैक्सिको मूल के लोग बड़ी संख्या में इसलिए अमरीका में प्रवास नहीं कर सके,क्यों वे Anglo-Saxon मूल के श्वेत लोग नहीं हैं,तो इस का क्या परिणाम निकलेगा।यह बिल्कुल दोनों तरफ़ से विरोध मोल लेने वाला कथन है।इस तरह के बेवकूफ़ कथन से "प्रधान मंत्री"में बुद्धि की कमी से ज्यादा राजनीतिक उद्देश्य अभिव्यक्त है।

तिब्बतियों और हान लोगों के बीच मनमुटाव बढाने के जरिए तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में अस्थिरता लाने का उद्देश्य पूरा करने से न सिर्फ तिब्बती और हान दोनों जातियों की भावना को ठेस पहुंचाया गया है,बल्कि बौद्ध कर्मकांड की गंभीरता व पवित्रता को भी क्षति पहुचाई गई है।

गौरतलब है कि बौद्ध कर्मकांड का सभागाह धार्मिक टक्कर बढाने का मंच भी बन गया।दलाई लामा 1959 में भारत जाने के बाद से तिब्बती बौदधर्म के विभिन्न संप्रदायों से मिलकर अपने को सारे तिब्बती बौद्धधर्म से प्रभाविक क्षेत्र के नेता के रूप में बनाने का प्रयास करते रहे हैं।उन्होंने तिब्बती बौद्धधर्म में विपक्षी दल का जबरदस्त दमन किया।दमन का शिकार हुआ तेसिन श्यु तान संप्रदाय एक उदाहरण है।

वर्ष 1996 के शुरू में दलाई लामा ने कहा था कि तेसिन श्यु तान संप्रदाय में सब से लोकप्रिय कानून-देव का पूजन उन के स्वास्थ्य और तिब्बती स्वतंत्रता-कार्य को नुकसान पहुंचा रहा है।इस बहाने से उन्होंने कानून-देव की पूजा करने और इस देव की मूर्ति रखने पर रोक लगाने की घोषणा की।यह ही नहीं उन्होंने कानून-देव की मूर्ति सुशोभित करने वाले मंदिरों और तेसिन श्यु तान संप्रदाय के लोगों पर हमला करने के लिए भड़काऊ बयान भी दिए।

गत जनवरी के पहले 10 दिनों में आयोजित"चक्र वज्र अभिषेक कर्मकांड"भी दलाई लामा द्वारा सांप्रदायिक मुठभेड़ भड़काने का साधन बन गया।गत 5 जनवरी को प्रवचन के दौरान दलाई लामा ने एक बार फिर खुले तौर पर बौद्ध-भिक्षुओं से कानून-देव की मूर्ति नहीं रखने की मांग की और धमकी भी दी,"आप को मैं यानी 14वें दलाई लामा चाहिए या वह भूत (कानून-देव)चाहिए।आप को दोनों में से एक चुनना है।"दलाई का यह बयान बौद्ध धर्म की सहनशीलता और सामंजस्य की भावना व छवि के बिलकुल विपरीत है।

तिब्बती बौद्ध धर्म के तांत्रिक संप्रदाय के सर्वोच्च समारोह के रूप में "चक्र वज्र अभिषेक कर्मकांड"तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुयाइयों के दिलों में बेहद ऊंचे स्थान पर रहा है और उसका हान जाति के बौद्ध-भिक्षुओं पर भी दीर्धकालिक प्रभाव पड़ा है।सन् 1932 और 1934 में चीन के भीतरी इलाके में रहने वाले नौवें पंचन लामा ने व्यापक बौद्ध-भिक्षुओं और तत्काल की सरकार के समर्थन में पेइचिंग के प्राचीन राज प्रासाद और चच्यांग प्रांत के हांगचो शहर में विश्व शांति की प्राप्ति व विपत्तियों के विनाश के लिए प्रार्थना-सभा के रूप में"चक्र वज्र अभिषेक कर्मकांड"का आयोजन किया था,जिसकी हान जाति और तिब्बती जाति के बीच आदान-प्रदान के इतिहास में अच्छी-खासी प्रशंसा की गई है।

कुछ समय पहले हमारे संवाददाता ने बौधगया का दौरा किया।वहां पूजा करने वाले सैकड़ों लोगों की भीड़ में तिब्बती बौद्ध-भिक्षु कभी-कभार नजर आए।वे अन्य बौद्ध-भिक्षुओं की ही तरह गोतम बुद्ध की बुद्धि एवं दयालुता पाने के लिए दूरदराज के इलाकों से यहां आए हुए थे।लेकिन दुर्भाग्यवश 14वें दलाई लामा और उन के समर्थकों ने बौद्धधर्म खासकर"दलाई लामा"जैसी धार्मिक उपाधि के प्रति इन ईमानदार लोगों की पवित्र भावना का बेजा फायदा उठाया है।

"दलाई लामा"इस उपाधि का तिब्बती बौद्ध धर्म और पूरे तिब्बत में अत्यंत ऊंचा स्थान है।मतलब कि दलाई लामा का बेहद सम्मान किया जाता है।इस का श्रेय तिब्बती इतिहास में राजनीतिक जंगों के परिणाम,केंद्र सरकार के पुरजोर समर्थन और पुरानी पीढ़ियों के दलाई लामाओं के योगदान को जाता है।

तीसरे दलाई लामा बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए लम्बा सफर तय कर मंगोलिया पहुंचे थे और वहां उन का निर्वांण भी हुआ।5वें दलाई लामा ने इतिहास की मुख्य धारा के अनुसार चीनी राष्ट्र के एकीकरण के लिए बहुत से काम किए,7वें दलाई लामा ने तिब्बत पर चीनी संप्रभुता को मजबूत करने में केंद्र सरकार के साथ घनिष्ठ सहयोग किया,13वें दलाई लामा ने देश के अत्यंत कमजोर होने की स्थिति में भी ब्रितानियों से दूर रहने और केंद्र सरकार को नहीं छोड़ने के अपने वचन का अच्छी तरह से पालन किया,जहां तक छठें दलाई लामा की बात है,तो उन्होंने भी विद्रोही दीखने पर भी अपनी सहनशीलता व दयालुता से अमिट छाप छोड़ी।इतिहास इन सभी दलाई लामाओं के योगदानों को कभी नहीं भूलेगा।लेकिन वर्तमान 14वें दलाई लामा अपनी पूर्ववर्तियों की तरह देशभक्ति,धर्म से प्यार,राष्ट्र व जनता के कल्याण हेतु कार्य में लगे होने के बजाए अपनी विशेष पहचान और प्रभाव के माध्यम से मातृभूमि का विभाजन करने एवं तिब्बत में अस्थिरता लाने का प्रयास कर रहे हैं।उन की कार्यवाहियों से पुरानी पीढ़ियों के दलाई लामाओं के सिद्धांतों का हनन हुआ है और"दलाई लामा"जैसी उपाधि को नुकसान पहुंचा है।

हमारी हार्दिक उम्मीद है कि 14वें दलाई लामा गलत रास्ते पर आगे नहीं बढेंगे और तिब्बती बौद्धधर्म का बेजा फायदा उठाकर विभाजन एवं तोड़-फोड़ की कोई भी नई गतिविधि नहीं चलाएंगे,ताकि धर्म की पवित्रता लौट सके।हम यह भी चाहते हैं कि दलाई लामा अपने बाकी जीवन में तिब्बत के विकास,स्थायित्व एवं तिब्बतियों के कल्याण के लिए सही मायने में कुछ योगदान करें।ऐसा होने से ही दलाई लामा जैसी उपाधि से व्यापक तिब्बतियों और दुनिया भर में बौद्ध-भिक्षुओं की आशा पर पानी नहीं फिरेगा और पुरानी पीढ़ियों के दलाई लामाओं की मेहनत से निश्चित देशभक्ति,धर्म से प्यार,राष्ट्र व जनता के कल्याण हेतु सैकड़ों वर्ष पुराना महान कार्य जारी रहेगा।

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