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नानचीन चाय, पाई और किनहुआई नदी
2011-09-24 20:05:34
नानचीन चाय, पाई और किनहुआई नदी

अरूण आनंद

नानचीन पहुंचते ही यहीं दो बातों का अहसास होता है। एक, यह बहुत ही हरा-भरा शहर है और दूसरा यहां की सांस्कृतिक विरासत इतनी समृद्ध है जितनी विश्व के चुनिंदा शहरों की होगी।

नानचीन के उप-महापौर ने विदेशी और स्थानीय चीनी पत्रकारों के साथ साक्षात्कार में यह स्पष्ट भी किया कि इस शहर को हरा-भरा बनाए रखने पर खास जोर दिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि वह चाहते हैं कि लोग इस शहर में तनावरहित जीवन जिएं।

वास्तव में यही इस शहर की खासियत भी है।

होटल तक पहुंचने से पहले ही अगर आप शहर के एक खास इलाके से निकलेंगे तो वहां आपको सैंकड़ों वर्ष पुरानी बनी दीवार दिखेगी।

यहां के स्थानीय संग्रहालय में आपको चू चेंग झी की मूर्ति भी मिलेगी जिन्होंने सैंकड़ों वर्ष पहले ही गणित में इस्तेमाल किए जाने वाले विशेष अंक पाई के लिए बिल्कुल वही संख्या खोज निकाली थी जिसका हम आज भी प्रयोग करते हैं।

यहीं संग्रहालय के भवन के निकट ही परिसर में एक पार्क हैं जिसमें चीन के प्रसिद्ध 200 मुहावरे आपको एक खास लकड़ी की गैलरी में चिन्हित मिलेंगे। इस गैलरी से गुजरते हुए परम्परागत चीनी ओपेरा का लुत्फ उठाया। यह जानकर हैरानी भी हुई और सभी प्रभावित भी हुए कि परम्परागत साजों के साथ संगीत की लहरियां बिखेर रहा यह ओपेरा स्थानीय लोगों द्वारा चलाया जा रहा था। लेकिन उनकी संगीत क्षमता किसी पेशेवर संगीतज्ञ से कम नहीं कही जा सकती है।

इसके बाद झोंगहुआ द्वार पर जाना एक अलग अनुभव था। नानचीन को दुश्मनों से बचाने के लिए 600 वर्ष पहले तत्कालीन सम्राट झू युआनझांग ने शहर के चारों ओर इस दीवार का निर्माण किया था।इसमें चार महत्वपूर्ण द्वार हैं जो दुश्मनों को रोकने के काम आते थे। इस स्मारक में आकर चीन की पुरानी युद्ध कला और स्थापत्य कला से एक साथ साक्षात्कार हुआ।

किक्षिया मंदिर आज से लगभग 600 वर्ष पूर्व बना था और नानचीन के लिए ही नहीं बल्कि दुनिया भर के लिए यह एक महत्वपूर्ण स्मारक हैं। यहां चीन में बौद्ध धर्म को लाने वाले शाक्यमुनि का मंदिर है। यहां चट्टानों को काटकर बनाई विभिन्न आकार की भगवान बुद्ध की लगभग 100 से अधिक प्राचीन मूर्तियां हैं। यहां के परिसर में अभी भी बौद्ध सन्यासी सादगी से रहते हैं। बौद्ध धर्म के चीन में आने के बारे में कई दिलचस्प जानकरियां यहां मिलीं और बौद्ध मत को और गहरे से जानने का मौका भी मिला।

इसके बाद देर शाम कन्फयूशिस स्ट्रीट परम्परागत भोजन किया और किनहुआई नदी में नाव में बैठकर सैर की। लेकिन इस सैर का एक हिस्सा इस नदी के तट पर बने मंच पर चीनी कलाकारों द्वारा अपनी संगीत और नृत्य कला का प्रदर्शन है। इस कार्यक्रम को देखना अपने आप में एक अविस्मरणीय अनुभव है। केवल कुछ ही घंटों में चीनी लोक परम्पराओं का एक अद्भुत पक्ष सामने आता है। मधुर संगीत, शानदार कोरियोग्राफी और अत्याधुनिक प्रकाश व्यवस्था से लगता है कि वक्त ने अपना रूख बदल लिया है और हम इतिहास को अपने सामने प्रत्यक्ष घटता देख रहे हैं।

-लेखक भारत की प्रमुख समाचार एजेंसी आईएएनएस की हिंदी सेवा के कार्यकारी सम्पादक हैं और 15 से 26 सितम्बर तक चीन की यात्रा पर हैं।-

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