दक्षिण अफ्रीका ने गत वर्ष के दिसंबर माह में ब्रिक्स की सदस्यता हासिल की है। इसकी सतत आर्थिक विकास पर लोगों का ध्यान गया है।
1994 की मई में दक्षिण अफ्रीका में कई सालों तक प्रचलित नस्लवादी अलगाव व्यवस्था समाप्त हुई। इसके बाद दक्षिण अफ्रीका में आर्थिक वृद्धि होने की स्थिति बनी रही। 2003 से 2007 तक वार्षिक आर्थिक वृद्धि दर 5 प्रतिशत बनी रही है। 2008 में वित्तीय संकट के प्रभाव से दक्षिण अफ्रीका में आर्थिक वृद्धि धीमी रही। लेकिन 2010 में फुटबॉल विश्व कप से प्रोत्साहित होकर अर्थतंत्र का पुनरुत्थान शुरू हुआ है।
अब 5 करोड़ जनसंख्या वाला देश दक्षिण अफ्रीका अफ्रीकी देशों में सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बन गया है, जिसकी कुल आर्थिक मात्रा पूरे अफ्रीका की एक चौथाई है और दुनिया में 31वें स्थान पर रहा है। प्रति व्यक्ति के हिस्से में सालाना आय 9780 अमेरिकी डॉलर है, जो रूस की 15440 और ब्राजील की 10070 से थोड़ी कम है, लेकिन चीन व भारत से ज़्यादा है।
दक्षिण अफ्रीका दुनिया में चौथा बड़ा खनन उत्पादन देश है, जहां सोने व हीरे का भंडार और उत्पादन विश्व में पहले स्थान पर है। खनन उद्योग विश्व की प्रथम पंक्ति में है।
दक्षिण अफ्रीका विश्व बाजार का फायदा लेते हुए देश में व्यापार व पूंजी बढ़ा रहा है। डरबन और केप टाउन समेत 8 बंदरगाहों पर निर्भर दक्षिण अफ्रीका का माल व्यापार पड़ोसी देशों में फैला हुआ है, जिससे पूरे अफ्रीका के आर्थिक विकास के लिए समर्थन प्रदान किया गया है।
इसके अतिरिक्त वित्तीय निगरानी की मजबूती के साथ-साथ दक्षिण अफ्रीका में वित्तीय वातावरण में निरंतर सुधार आ रहा है। 1999 में दक्षिण अफ्रीका स्विट्जरलैंड से ई-अकाउंट पद्धति आकर्षित की गई, जिससे स्विट्जरलैंड के साथ समगति से स्टोक का हिसाब किया जा सकता है और ब्रिक्स के अन्य सदस्य देशों के लिए पश्चिम देशों के साथ वित्त, व्यापार व पूंजी के क्षेत्रों में सहयोग का ट्रांसफर स्टेशन प्रदान किया जा सकता है।
(ललिता)