प्रिय श्रोताओं, हाल में शांगहाई विश्व मेले के युरोपीय हॉल में जातीय विशेषता वाली नीली घास बुनने की कला की प्रसार गतिविधि का आयोजन किया गया। घटनास्थल पर चीन के क्वेई चो, स्छ्वान एवं हू नान की अल्पसंख्यक जातीय क्षेत्रों से आई महिलाओं ने परम्परागत कढ़ाई एवं बुनाई कला प्रदर्शित की। यह युरोपीय संघ आदि द्वारा पूंजी देकर गरीबी उन्मूलन की गतिविधि है। लोग प्रशिक्षण लेने एवं आदान-प्रदान आदि गतिविधियों से अल्पसंख्यक जातीय क्षेत्र की महिलाओं को काम करने के नये मौके मुहैया करवा सकते हैं और इस से अल्पसंख्यक जाति की सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण भी होता है। आज के इस कार्यक्रम में हम आप लोगों को आशा नीली घास नामक परियोजना का परिचय देंगे।
पश्चिम चीन के पहाड़ों में स्थित क्वेई चो की श्यैननींग शमनखेई क्षेत्र में माओ जाति की एक शाखा दा ह्वा माओ है। उन की विशेष जातीय वेशभूषा एवं रीति रिवाज़ हैं। चूंकि वे सुदूर में रहते हैं, इसलिए परम्परागत कृषि उत्पादन के अलावा, स्थानीय नागरिकों के पास अन्य आमदनी के स्रोत नहीं हैं। औसत परिवार की वार्षिक आमदनी केवल कई सौ चीनी य्वान हैं। क्वेई चो के शीमनखेई क्षेत्र से आयी माओ जाति की लड़की हू थ्यैनह्वेई इसी तरह अपनी जन्मभूमि का परिचय देती है।
चूंकि हम ऊंचे पहाड़ों पर रहते हैं, इसलिए हम केवल आलू एवं मकई उगा सकते हैं। हमारे यहां अन्य कृषि उत्पाद मुश्किल से उगते हैं। हम मकई का इस्तेमाल करके पशुओं का पालन करते हैं। इस के अलावा, हमारे पास आमदनी का अन्य कोई स्रोत नहीं है।
वर्ष 2010 की जनवरी में युरोपीय संघ द्वारा चीन की सहायता की एक गतिविधि के रूप में नीली घास नामक एक गरीबी उन्मूलन परियोजना पेइचिंग में औपचारिक रूप से शुरू हुई। हू थ्यैनह्वेई समेत स्छ्वान एवं हू नान आदि जगहों की माओ, छ्यांग एवं च्वांग जातियों की महिलाएं इस परियोजना के तहत सहायता पा चुकी हैं। सामान्य गरीबी उन्मूलन परियोजना से भिन्न यह परियोजना प्रत्यक्ष रूप से महिलाओं को आर्थिक मदद नहीं देती है, बल्कि अल्पसंख्यक जाति की महिलाओं की परम्परागत कला पर ध्यान देती हैं। क्वे चो प्रांत की नीली घास परियोजना की जिम्मेदार सुश्री छन वन ने परिचय देते हुए बताया,
नीली घास नामक परियोजना अन्य गरीबी उन्मूलन परियोजना से भिन्न है। यह लोगों को एक सही विचारधारा देती है। इस परियोजना के अनुसार, सरकार पहले की ही तरह प्रत्यक्ष रूप से लोगों को पैसे या चीज़ें नहीं देती है, बल्कि महिलाओं को एकत्र करके उन की परम्परागत संस्कृति का प्रसार करती है।
अल्पसंख्यक जाति की महिलाओं को अपने घर में प्रशिक्षण देकर उन की जीवन स्थिति का सुधार करना नीली घास परियोजना का मुख्य काम है। लेकिन, आर्थिक व सामाजिक विकास के साथ-साथ, अल्पसंख्यक जाति के पुराने हस्तशिल्प के गायब होने का खतरा है। चीन के क्वेई चो के शीमनखेई से आयी लड़की हू थ्येनह्वेई ने कहा कि पहले उन के यहां यदि लड़कियां अच्छी तरह सिलाई नहीं कर सकतीं थीं, तो विवाह भी नहीं हो पाता थी। लेकिन, अब उन के यहां अनेक युवा लड़कियां परम्परागत बुनाई कढ़ाई नहीं कर पाती हैं। उन के अनुसार,
हमारी बुनाई कढ़ाई में हर एक तस्वीर के पीछे अपनी जाति की संस्कृति व इतिहास है। पीढ़ी दर पीढ़ी हम इसी तरह जीवन बिताते हैं। लेकिन, आजकल अनेक युवतियां यह काम नहीं करतीं। उन के विचार में मैं दूसरों से उधार ले सकती हूं या मेरी मा या अन्य रिश्तेदार मेरे लिए बना सकती हैं। इसलिए, वे खुद बुनाई कढ़ाई नहीं सीखना चाहती हैं।
इसलिए, सांस्कृतिक विकास संघ की स्थापना करके युवक लड़कियों को बुनाई कढ़ाई की तकनीक सिखाना हालिया नीली घास परियोजना का मुख्य विषय बन चुका है। इस परियोजना की रुपरेखा व निगरानी करने वाली इटली की विकासमान देशों को सहायता देने के संघ की जिम्मेदार सुश्री मारिआ ओमोदेओ ने कहा कि वे लोग क्वेई चो, हू नान एवं स्छ्वान में कारगर काम कर चुके हैं। उन का कहना है,
हम ने सिलसिलेवार प्रशिक्षण लिया है। क्वेई चो में तीन प्रशिक्षण, और हू नान एवं स्छ्वान में अलग-अलग तौर पर दो प्रशिक्षण हुए हैं। हर प्रांत में 80 से ज्यादा महिलाएं प्रशिक्षण में भाग लेती हैं। हाल में हम मुख्यतः कढ़ाई का प्रशिक्षण देते हैं। तीन महीनों के प्रशिक्षण के बाद अनेक महिलाओं का कढ़ाई करने का स्तर उन्नत हो गया है।
शांगहाई विश्व मेले के युरोपीय हॉल में अनेक पर्यटकों ने अलग-अलग तौर पर कढ़ाई कला के प्रदर्शनी बूथ आकर अल्पसंख्यक जातीय महिलाओं की तकनीक देखी और उन से कढ़ाई करना सीखा। चीन के हू नान प्रांत के ईयांग से आयी सुश्री श्यांग श्वेईच्वन घटनास्थल पर अल्पसंख्यक जातीय महिलाओं के साथ कढ़ाई कर रही हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें जातीय कढ़ाई बहुत पसंद है।
मेरी दादी कढ़ाई कर सकती हैं। लेकिन, मैंने उन से नहीं सीखा । मुझे जातीय व परम्परागत चीज़ें बहुत पसंद हैं।
प्रिय श्रोताओं, चीन का लम्बा इतिहास है और यहां विविध जातियां हैं। चीन की प्रचुर गैरभौतिक सांस्कृतिक धरोहर भी है। वर्ष 2006 से 2008 तक चीनी राज्य परिषद ने क्रमशः दो बार 1028 राष्ट्रीय स्तरीय गैरभौतिक सांस्कृतिक धरोहरों की नामसूची जारी की, जिन में म्याओ व छ्यांग जाति की कढ़ाई एवं परम्परागत रंगाई की कला आदि शामिल है। चीनी कला अनुसंधान अकादमी के पुस्तकालय के उप प्रधान श्री वांग लू ने कहा,
चीन सरकार गैरभौतिक सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण को बड़ा महत्व देती है। नीली घास परियोजना से अल्पसंख्यक जातियों की महिलाएं अपनी परम्परागत हस्तशिल्प तकनीक से अपने जीवन स्तर को उन्नत कर सकती हैं। साथ ही इस परियोजना के लागू होने से जातीय संस्कृति व परम्परा की रक्षा व प्रसार भी किया जा सकता है।
हाल में परम्परागत कला एवं प्राकृतिक सामग्री का इस्तेमाल करके सुश्री हू थ्येनह्वेई एवं उन की बहनें अनेक सुंदर जातीय परम्परागत वेशभूषा एवं हस्तशिल्प कलाकृतियां बना चुकी हैं। नीली घास परियोजना ने अल्पसंख्यक जातियों की महिलाओं को भविष्य के सुन्दर जीवन का नया सपना दिया है।