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भारतीय युवक की चीन में रुचि
2010-07-15 16:16:50

हाल ही में सी.आर.आई. के एक प्रतिनिधि मंडल ने भारत की यात्रा की। यात्रा के दौरान, हमारे संवाददाताओं ने अनेक भारतीय युवकों से मुलाकात की। चीन के प्रति उन में गहरी रूचि है।

भारत की राजधानी नयी दिल्ली में हम कुछ भारतीय युवकों से मिले।वे या तो नयी दिल्ली में काम करते हैं, या पढ़ाई करते हैं, या गर्मियों की छुट्टी में बाहर से राजधानी की यात्रा करने आते हैं। जब उन्हें पता लगा कि हम चीन से आये हैं, तो हमारे साथ चीन के बारे में बातचीत की। उन के साथ बातचीत में हमें लगा कि हालांकि वे लोग चीन नहीं आये हैं, फिर भी चीन के प्रति उन में गहरी रूचि है। भारत के एक व्यवसायिक स्कूल में पढ़ने वाली उदुसा ने हमें बताया, चीन व भारत के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान व आपसी समझ को बढ़ाने के लिए हम युवकों का भारी कर्त्तव्य है। हमें ज्यादा काम करने की जरूरत है। चीनी संस्कृति के प्रति मेरी गहरी रूचि है। मैं चीन की वास्तु कला एवं बौद्ध कला आदि के बारे में जानना चाहती हूं। मैं चीनी संस्कृति के बारे में सब कुछ जानना चाहती हूं।

उदुसा का इरादा है कि बाद में चीन जाकर चीनी संस्कृति व कला सीखे। भविष्य में वह भारत में अपना डिजाइन का कार्यालय खोलना चाहती है और कला व डिजाइन का काम करना चाहती है। उन्होंने कहा कि चीनी संस्कृति उस की डिजाइन के लिए प्रेरक हो सकती है।

भारत के पुनः विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र पढ़ने वाले सागर ड्राईवर भी चीन जाना चाहते हैं। उन्होंने हमें बताया, भारत व चीन दो पड़ोसी देश हैं और चीन एशिया का एक बड़ा देश भी है। हमारे दोनों देशों के बीच मजबूत मैत्रीपूर्ण संबंधों की स्थापना अत्यन्त महत्वपूर्ण है, चूंकि भारत-चीन संबंध का दुनिया भर पर असर पड़ता है।

सानी सागर का सहपाठी है। वह सागर से सहमत है। लेकिन, उस का विचार है कि भारत व चीन इन दो महान देशों के संबंधों का विकास करने के लिए केवल साफ-साफ राजनीतिक समझ पर्याप्त नहीं है। दोनों देशों के मैत्रीपूर्ण संबंधों को दोनों देशों की जनता की आपसी समझ व मैत्रीपूर्ण भावना पर आधारित होना चाहिए, नहीं तो द्विपक्षीय संबंध सच्चे माइने में मैत्रीपूर्ण नहीं हो सकेंगे। उन के अनुसार, भारत व चीन के संबंधों का सुधार आगे बढ़ाने के लिए और दोनों देशों की समझ को बढ़ाने के लिए हमें और ज्यादा प्रयास करना चाहिए। लेकिन, द्विपक्षीय संबंधों के लिए मैत्रीपूर्ण भावना सर्वप्रथम है।

भारत की राजधानी नयी दिल्ली में स्थित नेहरू विश्वविद्यालय में हमारे संवाददाताओं ने अनेक भारतीय युवकों से मुलाकात की। उन के विचार बहुत ओतप्रोत हैं और वे चीन के बारे में बहुत कुछ जानना चाहते हैं।लेकिन, कुछ लोगों के पास चीन की जानकारी बहुत सीमित है, कुछ गलत भी है। उदाहरण के लिए, दक्षिण भारत से आईं भारतीय युवती सुवेदो ने हमारे संवाददाता से एक दिलचस्प सवाल पूछा, मैं एक सवाल पूछना चाहती हूं। सुना है कि चीन में महिला

ओं के पैरों को सुन्दर बनाने के लिए लोहे के जूते पहनाए जाते हैं ताकि पांव छोटे रहें । मैंने एक पुस्तक में इस के बारे में पढ़ा है। क्या यह सच है ?

सुवेदो का सवाल सुनकर हमें आश्चर्य हुआ। हालांकि नये चीन की स्थापना को 60 से ज्यादा वर्ष हो चुके हैं और चीन में भारी परिवर्तन हुआ है, फिर भी पश्चिमी मीडिया संस्थाओं के दुनिया के लोकमत पर कब्जा करने की वजह से अभी तक अनेक देशों की जनता को चीन से संबंधित सही सूचना नहीं दी है। हम ने सुवेदो को बताया कि पुराने समय में चीनी लड़कियों के पांव में अक्सर लोहे के जूते पहना दिए जाते थे ताकि पांव छोटे रहें,लेकिन नये चीन की स्थापना के बाद चीन में इस तरह के सभी गलत रीति रिवाज़ खत्म कर दिए गए हैं। इस तरह के रीति रिवाज जैसे भारत में अतीत में बाल विवाह एवं विधवाओं से किए जाने वाले व्यवहार को दृढ़ता से मिटा देना चाहिए। हमारी बाते सुनकर सुवेदो ने कहा कि वे चीन जाना चाहती है । अपनी आंखों से चीन में हुए भारी परिवर्तन को देखना चाहती हैं और चीनी महिलाओं का सच्चा जीवन देखना चाहती हैं।

सुवेदो जैसे भारीतय युवक बहुत कम हैं। ज्यादातर भारतीय युवाओं को चीन और दुनिया के प्रति पर्याप्त जानकारी है। अपनी जीवन योजना बनाते समय वे बहुत ही तर्कसंगत हैं। नेहरू विश्वविद्यालय के चीनी भाषा विभाग में स्नातकोत्तर उपाधि के लिए पढ़ रहे किशोर ने भी कहा कि वह चीन में आगे शिक्षा लेना चाहता है। उन्होंने कहा, अब मैं विश्वविद्यालय में पांच साल की पढ़ाई पूरा कर चुका है। मुझे स्नातकोत्तर की डिग्री मिल गई है। अब मैं एम फिल की पढ़ाई शुरु करूंगा। लेकिन मैं आशा करता हूं मैं चीन जा सकूंगा और अपनी आंखों से इस महान देश को देख सकूंगा। स्नातक होने के बाद मैं अवश्य ही द्विपक्षीय संबंधों का सुधार करने का काम करूंगा।

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