इधर सालों में चीन व भारत दोनों देशों के नेताओं और उद्यमियों के अथक प्रयासों से दोनों देशों के बीच आर्थिक व व्यापारिक आवाजाही तेजी से विकसित हो गयी है और आर्थिक व्यापार में बड़ी हद तक वृद्धि भी हुई है । वर्ष 2008 में चीन भारत की द्विपक्षीय व्यापार रकम 51 अरब 80 करोड़ अमरीकी डालर तक पहुंच गयी। इस उल्लेखनीय उपलब्धि की देन दोनों देशों की जनता, अधिकारियों और संबंधित व्यापारियों को जाती है ।
2001 में भारत चीन व्यापार केंद्र की स्थापना पेइचिंग में हो गयी । तब से लेकर आज तक यह केंद्र लगातार चीन भारत दोनों देशों के आर्थिक व व्यापारिक संबंधों को बढावा देने की भरसक कोशिश करता रहा है । जैसा कि इस केंद्र के कार्यकारी अधिकारी श्री वू यूंग ने इस केंद्र की स्थापना के मकसद की चर्चा में कहा कि प्रशंसनीय बात है कि दोनों देशओं की पूरी तैयारी से भारत चीन उद्योग व वाणिज्य संघ की स्थापना 2005 में 28 फरवरी को नयी दिल्ली में विधिवत रूप से हो गयी है । मौके पर भारत स्थित चीनी दूतावास के वाणिज्य कांसिलर ल्यू लू निंग ने स्थापना के समारोह की अध्यक्षता की और भारत स्थित तत्कालीन चीनी राजदूत सुन यू शी ने अपने भाषण में पिछले कई सालों में भारत में स्थापित चीनी पूंजी वाले कारोबारों की उपलब्धियों की प्रशंसा की है और भारत के साथ व्यापार करने में उन की भूमिका पर भी बल दिया । भारत स्थित दर्जनों चीनी कम्पनियों के प्रतिनिधि समारोह में उपस्थित हुए ।
भारतीय वाणिज्य व उद्योग मंत्री श्री कमल नाथ ने 2006 में भारत की यात्रा पर गये तत्कालीन चीनी वाणिज्य मंत्री पो शी लाई के सम्मान में आयोजित एक समारोह में कहा कि विश्व की निगाह भारत व चीन की आर्थिक वृद्धि पर टिकी हुई है, भारत व चीन दोनों देशों को इस मौके का फायदा उठाना चाहिये । भारत चीन के साथ क्षेत्रीय व्यापार समझौता संपन्न करने के लिये एक विशेष दल भी स्थापित कर चुका है ।
पता चला है कि भारत चीन उद्योग व वाणिज्य संघ की स्थापना का उद्देश्य है कि भारतीय व चीनी उद्यमों के बीच आपसी सम्पर्क व आवाजाही, चीनी उद्यमों व भारतीय उद्योग व वाणिज्य जगतों के बीच आपसी समझ, आर्थिक व व्यापारिक सहयोग को बढावा दिया जाये और चीनी पूंजी वाले उद्यमों के कानूनी अधिकारों की रक्षा की जाये ।
चीन और भारत दुनिया में दो सब से बडी आबादी वाले देश हैं और दो ऐसे देश भी हैं जिन में आर्थिक वृद्धि सब से तेज गति से हो रही है। कुछ लोगों का विचार है कि ये दोनों देश विकास की प्रक्रिया में अपने अपने हित की रक्षा के लिए एक दूसरे से तीव्र स्पर्द्धा करेंगे। लेकिन 2006 में नयी दिल्ली में आयोजित चीन-भारतीय वाणिज्य मंच के सम्मेलन में भाग लेने के बाद दोनों देशों के सरकारी पदाधिकारियों और कारोबारों के करीब 200 प्रतिनिधियों ने इस विचार को मानने से इन्कार कर दिया। सम्मेलन में उपस्थित चीनी वाणिज्य मंत्री श्री पो शी-लाई ने चीन में प्रचलित "मिलनसार होने से धन आना "वाली एक कहावत से चीन व भारत के बीच आर्थिक व व्यापारिक सहयोग का भविष्य चित्रित किया और यह दावा किया कि दोनों देश आपसी सहयोग में उभय जीत प्राप्त कर सकेंगे। भारतीय वाणिज्य व उद्योग मंत्री श्री कमल नाथ ने भारत और चीन को एशिया की दो आंखें करार देते हुए बल देकर कहा कि हम दोनों देश एक दूसरे से अलग नहीं रह सकते।
श्री कमल नाथ ने सम्मेलन में भाषण देते हुए कहा कि भारत-चीन सहयोग चीन के थांग राजवंशकाल से ही शुरू हुआ था । तब से अब तक लगभग हजार वर्ष बीत चुके हैं। आज दोनों देशों के बीच सहयोग की और बड़ी आवश्यकता नजर आ रही है। उन्होंने कहा कि विश्व को यह जानना होगा कि भारत औऱ चीन के बीच सहयोग ही है, न कि मुकाबला। विश्व को यह संदेश भी मिलना चाहिए कि भारत औऱ चीन अवश्य कंधे से कंधे मिलाकर एक साथ आगे चलेंगे। भारत और चीन एशिया की दो आंखें हैं, जो एक दूसरे की पूरक हैं। भारत और चीन संयुक्त रूप से एक नया युग शुरू करेंगे। भारत को चीन के साथ आर्थिक एवं व्यापारिक संबंधों के विकास की बड़ी उत्सुकता है।
नवीनतम आंकड़ों के अनुसार चीन और भारत के बीच व्यापार चीन और अन्य देशों के बीच व्यापार की तुलना में सब से तेज रफतार से बढता गया है। चीन-भारत व्यापार में जो वृद्धि हुई, वह चीन-अमरीका, चीन-जापान औऱ चीन-एशियान के व्यापार में हुई वृद्धि गति को पार कर गई है। दोनों देशों के विश्व अर्थतंत्र में योगदान तो कहीं अधिक शानदार हैं। विश्व आर्थिक वृद्धि का 10 वां और 28 वां भाग क्रमश: भारत और चीन के योगदानों से हुआ है। चीनी वाणिज्य मंत्री श्री पो शी-लाई ने कहा कि चीन और भारत के पास नयी शताब्दी में हाथ में हाथ डालकर काम करने के पर्याप्त कारण और स्थितियां हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह और चीनी प्रधान मंत्री वन च्या-पो दोनों का मानना है कि अगर चीन औऱ भारत हाथ में हाथ डालकर सद्भावनापूर्ण सहयोग करें, तो विश्व में एशियाई युग आ कर ही रहेगा। मैं समझता हूं कि यह चीन और भारत की कई पीढियों की जनता का सपना है। दोनों देशों के नेताओं की समान कोशिशों से इस समय द्विपक्षीय सहयोग का वातावरण बहुत अच्छा है। हम विश्वास के साथ यह देख सकते हैं कि आने वाले 5 सालों में दोनों देशों के बीच पूंजी-निवेश तथा व्यापार आदि क्षेत्रों में और महत्वपूर्ण सहयोग करेंगे. सॉफ्टवेयर और सेवा जैसे व्यवसायों में भारत की वरीयता है।चीन भारतीय कंपनियों के चीन आकर अपनी वरीयता का विकास करने का स्वागत करता है।
भारत की मशहूर टाटा परामर्शता सेवा कंपनी के उप महानिदेशक फ़िरोज़ वऩड्रेवाला ने हमारे संवाददाता से कहा कि आर्थिक सुधार से चीन औऱ भारत दोनों में आर्थिक विकास की आश्चर्यजनक तेज गति मिली है. चीन निर्माण के क्षेत्र औऱ भारत सेवा के क्षेत्र में अपनी अपनी ताकत रखते हैं। सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच सहयोग हो रहा है। संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधान व विकास और वित्तीय सेवा के क्षेत्रों में दोनों के सहयोग भी ध्यानाकर्षक हैं। अनेक भारतीय आईटी कंपनियों ने चीन में पूंजी-निवेश कर कारोबार खोले हैं। हम आर्थिक और व्यापारिक क्षेत्र में चीन-भारत संबधों में मौजूद निहित शक्ति से प्रेरित हैं।
चीनी कारोबार भी भारतीय बाजार के विकास के प्रति आशान्वित हैं। चीनी इस्पात व्यापार कंपनी भारत में अपने कारोबार को विस्तृत करने की कोशिश कर रही है और इस समय उस के कारोबार तेजी से बढ रहे हैं। कंपनी के महानिदेशक श्री वांग हुंग-सेन ने चीन और भारत के उद्यमों के सहयोग के दौरान एक दूसरे के पूरक होने और दोनों को एक दूसरे की आवश्यकता होने के बारे में अपना अनुभव बताते हुए कहा कि चीन औऱ भारत धातु-शोधन के क्षेत्र में एक दूसरे के बड़े पूरक हैं। उत्पादन-क्षमता और तकनीकी स्तर की दृष्टि से चीन इस क्षेत्र में कुछ कर दिखा सकता है। हमारी कंपनी जैसे भारत में स्थित चीनी उद्यमों और भारतीय उद्यमों के बीच सहयोग एक मुख्य धारा है, स्पर्द्धा तो सिर्फ सहयोग को बेहतर बनाने के लिए है। बहुत से पश्चिमी देशों द्वारा स्पर्द्धा करने का उद्देश्य दूसरे देशों के विकास को बाधित करना है। लेकिन हम स्पर्द्धा के जरिए एक दूसरे के विकास को बढावा देना चाहते हैं। देशों और आर्थिक ईकाइयों में स्पर्द्धा जरूर होती है, पर कुंजीभूत बात यह है कि वह सहयोग के हित में होना चाहिए। चीन औऱ भारत के बीच स्पर्द्धा बेशक परस्पर विकास और प्रगति के हित में है । चीनी प्रधान मंत्री वन च्या पाओ ने 19 जनवरी2010 को पेइचिंग में भारत वाणिज्य व उद्योग मंत्री शर्मा से मुलाकात में कहा कि चीन और भारत दोनों एशिया के बड़े विकासामन देश हैं, दोनों की जनसंख्या विश्व की कुल जन संख्या का 40 प्रतिशत है। दोनों के व्यापक समान हित होते हैं। इसलिए चीन और भारत प्रतिस्पर्धी नहीं है, सहयोग के साथी हैं। केवल चीन और भारत दोनों समान रूप से विकसित और समृद्ध हो गए, तभी सचे मायने का एशिया युग आ सकेगा।
श्री शर्मा ने कहा कि भारतीय नेता चीन के साथ रणनीतिक सहयोग के साझेदारी संबंध को मजबूत करने पर डटे रहेंगे। यह दोनों देशों की जनता के मूल हितों से मेल खाता है और एशिया व विश्व के विकास के लिए लाभदायक है।
प्रिय श्रोताओ , अभी आप चीन व भारत के बीच आर्थिक व व्यापारिक सहयोग के बारे में एक परिचयात्मक रिपोर्ट सुन रहे थे। अब आप फिर एक बार चीन भारत राजनयिक संबंध की स्थापना की 60वीं वर्षगांठ के बारे में ज्ञान प्रतियोगिता का प्रश्न सुनिए और नोटकर लिख लें । इस रिपोर्ट में जो सवाल रखा गया है, वह है कि 2008में चीन व भारत के बीच आर्थिक व्यापार की रकम कितनी है?
श्रोता दोस्तो, चीन भारत राजनयिक संबंध की 60वीं जयंति के बारे में ज्ञान प्रतियोगिता के साथ साथ सी आर आई हिन्दी सेवा चीन से रिश्ता शीर्षक लेखन प्रतियोगिता का भी आयोजन कर रही है, जिस में आप लेख, कविता लिखकर चीन के प्रति अपना अनुभव या चीन से आप के किस प्रकार के रिश्ते के बारे में लिख सकते हैं। आप अपने लेख या कविता जैसी रचनाओं को ई-मेल या डाक द्वारा हमें भेज सकते हैं। हम उन में से श्रेष्ठ वाला चुन कर इनाम देते हैं। आशा है कि आप इस में भी सक्रिय रूप से हिस्सा लेंगे। हम आप की रचनाओं का इंतजार कर रहे हैं।