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11वां दिन 21 अगस्त
2009-08-24 11:24:38

आज सुबह हम लोग मंगला में अल्पसंख्यक जनजाति ख मू के गांव में गए.गांव की महिलाएं और लड़कियां पारंपरिक पौशाक में गांव के द्वार पर रास्ते के दोनों ओर पंक्तिबद्ध स्वागत में खड़ी थीं.ख मू जनजाति के घर भी लगभग ताई जनजाति की तरह लकड़ी के स्तंभों पर खड़े हैं.वर्षावन क्षेत्र में रह-रह कर होती बारिश के पानी,सांप ,कीड़े मकौड़ों से बचाव के लिए घर इस तरह जमीन से ऊंचाई पर बनाए गए हैं. कई साथी,गांव के मुखिया के घर जा कर बातचीत में व्यस्त हो गए.मेरी बात पास में खड़ी जिस युवा महिला से हुई ,उस ने अपना नाम यी श्यांग वांग बताया.उस का पति मंगला में किसी फैक्टरी में काम करता है.28 वर्ष की यी श्यांग वांग ने बताया कि उस की शादी 8 साल पहले हुई थी,और उस के अब दो बच्चे हैं,दोनों छोटे हैं.उस के और उस के पति के मां बाप भी इसी गांव में रहते हैं.दिन भर गांव की महिलाएं और लड़कियां भी नाश्ता कर के गांव के आसपास के पहाड़ों पर पेड़ों से रबर इक्कठा करने चल देती हैं.उन की आय का यह एक मुख्य स्रोत है.लेकिन इस से इतनी आय नहीं होती कि घर का सारा खर्च चलाया जा सके.इसलिए मर्द लोगों को बाहर काम करना पड़ता है. गांव तक फिलहाल कोई बस नहीं आती,इसलिए यदि मंगला जाना हो तो गांव के एक व्यक्ति के पास ट्रैक्टर है,और मंगला जाने के लिए वह दस य्वान लेता है.गांव में कोई अस्पताल नहीं है,बीमार पड़ने पर,खरीददारी करने के लिए भी मंगला ही जाना पड़ता है.मंगला कस्बे में इन के जीवन की छोटी-मोटी जरुरत की सब चीज़ें मिल जाती हैं.यी श्यांग ने बताया कि आठ साल पहले स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी और रोटी का जुगाड़ करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती थी,लेकिन आठ साल पहले सरकारी मदद मिलने से जीवन कुछ अच्छा हुआ है.

जहां तक गांव के बच्चों की पढ़ाई का सवाल है तो चार किलोमीटर दूर मान च्वांग में स्कूल है जहां प्राइमरी,माध्यमिक और हाई स्कूल की पढ़ाई होती है. हाईस्कूल में पढ़ रहीं यी यान च्याओ ने बताया कि स्कूल में पढ़ाई तो ठीक होती है,लेकिन वहां कोई कम्पयूटर नहीं है,और इंटरनेट भी नहीं है.उस ने बताया कि उस की और उस के कई अन्य सहपाठियों की भी बड़ी इच्छा है कि कम्यूटर सीखें,और इंटरनेट का इस्तेमाल करें.पर कोई चारा नहीं है.आगे पढ़ने की भी उस की बड़ी इच्छा है लेकिन घर की स्थिति ऐसी नहीं है कि आगे पढ़ाई का खर्चा उस के मां-बाप उठा सकें.यी यान भी थनचुंग की चिंगपो अल्पसंख्यक जनजाति की लूसी की तरह अल्प संख्यक जनजाति की नई पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करती है लेकिन फर्क सिर्फ इतना है कि लूसी जहां एक ऐसे वातावरण में पल रही है जहां जीवन की आधुनिक सुविधाएं आसानी से उपलब्ध हैं,वहीं यी यान च्याओ एक पिछड़े इलाके में अपने सपनों के साथ जूझ रही है.

शिक्षा को वे कर एक और द्वंद जनजातियों में मौजूद है जिस का कोई आसान समाधान दिखाई नहीं पड़ता.पांच छह साल तक की उम्र तक बच्चे घर और आसपड़ोस में रहते हैं और अपनी मातृभाषा सीखते हैं,उसी में बोलते-समझते हैं.और जब वे स्कूल में कदम रखते हैं तो उन का सामना एक अजनबी भाषा से होता है.एक ऐसी भाषा में वे पढ़ना आरम्भ करते हैं जिस में वे सोचते नहीं है और जो उन की मातृभाषा नहीं है,यह काफी कठिन काम है.इसलिए कुछ मां-बाप आर्थिक कारण से बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहते और कुछ इस डर से कि इस से उन की भाषा और संस्कृति नष्ट हो जाएगी.अगर मातृभाषा को पढ़ाई का माध्यम बनाने की दिशा में कुछ कदम उठाए जाएं तो बच्चों में पढ़ने का भय और हीन भावना नहीं आएगी और वे आसानी से अपनी मातृभाषा में अन्य भाषा सीख सकेंगे.अल्संख्यक जनजाति के ही किसी विद्यार्थी को अध्यापक बना कर इस दिशा में पहल की जा सकती है .इस के अलावा अल्पसंख्यक जन जातियो में खुली शिक्षा के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देना चाहिए ताकि वे यहां जो बच्चे आर्थिक कारणों से कालिज,युनिवर्सिटी नहीं जा सकते,वे काम करने के साथ-साथ अपनी पढ़ाई जारी रख सकें.इस से उन के सपनों की असामयिक मृत्यु नहीं होगी,और वे खुद की काबलियत बढ़ाने के साथ-साथ समाज के लिए भी अधिक योगदान भी दे सकेंगे.जाने से पहले मैंने यी यान च्याओ से पूछा कि क्या वह जानती हैं कि हम लोग कौन हैं और यहां क्यों आए हैं,उस ने कहा कि हमारे हाथों में कैमरे देख कर उसे लगता है कि हम लोग पत्रकार हैं,इस के अलावा वह और कुछ नहीं जानती. मैने उचित समझा कि मैं उसे हम सब लोगों का परिचय दे कर विदा लूं.

दोपहर बाद हम लोग मो हन गए.यहां लाओस चीन की सीमा पोर्ट है और लोगों की आमदोरफ्त के अलावा सामान का आयात-निर्यात भी होता है.मोहन एक छोटा सा गांव नुमा क्स्बा है.किसान लोग छोटे स्तर पर सब्जियां वगैरह बेच कर कुछ कमाई कर लेते हैं.ताई,ख मू.ई आदि जनजाति के लोग यहां रहते हैं.गरीब लोग पेट पालने के लिए हर वह काम करने को तैयार रहते हैं जिस से दो जून रोटी नसीब हो सके.मंगला में सैक्स व्यापार भी यहां गरीब लोगों के लिए पेट भरने का एक वैकल्पिक साधन दिखाई पड़ता है.रुईली थनचुंग की तुलना में यहां की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है.कल सुबह शीशुआंगबाना में हमारे सफर का अंतिम दिन है.

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