आज हमारे सफर का सातंवा दिन हैं,और आज हम थंनचुंग से सुबह रवाना हो कर रात दस बजे खुनमिंग पहुंचे.कल यहीं खुनमिंग में आराम करके परसों सुबह युन्नान के पश्चिम में मंगला जाने की योजना है.पिछले छह दिनों के सफर में युन्नान के सीमांत प्रांतों में नई-नई जगहें देखीं,ऐसी जगहें जिन के पहले हम ने नाम भी नहीं सुने थे。हमारा उद्देश्य था कि इन जगहों में जा कर प्रत्यक्ष रुप से देखें कि पिछले तीस सालों में चीन सरकार द्वारा अपनाई गई सुधार और खुलेद्वार की नीति का इन सीमांत प्रांतों पर कितना प्रभाव पड़ा है,इन नीतियों से प्राप्त लाभ का कितना अंश उस आदमी तक पहुंचा है जो पंक्ति में सब से पीछे खड़ा है. यह जानने के लिए हमारे पास कितने विकल्प हो सकते हैं ?यह यूं कहें कि किसी समाज के विकास को समझने कि लिए हमारे पास क्या कसौटी हो सकती है ?किसी एक कसौटी के आधार पर किसी समाज के विकास को समझना तो कठिन है किंतु ये कुछ तरीके हो सकते हैं जिन के आधार पर हम अंदाज लगा सकते हैं कि समाज किस दिशा की ओर आगे बढ़ रहा है.पहला,समाज का स्वास्थ्य कैसा है यानिकि समाज में सब से नीचे स्तर पर रहने वाले व्यक्ति की क्या स्थिति है क्या उसे और उस के परिवार को रोटी,कपड़ा और मकान उपलब्ध है और सावर्जनिक सुविधाएं जैसे स्कूल,अस्पताल,पोस्ट ऑफिस,इंटरनेट ,सड़क,बिजली,पानी,यातायात के साधन.और सामाजिक सुरक्षा ?यह सब जानने के लिए हमें एक तो उन लोगों से बात करने की जरुरत है जिन के पास अधिकार हैं और जिन पर यह सब काम करने का जिम्मा है यानि कि सरकारी अधिकारी.यह काम तो हम ने हर जगह किया.हालांकि सिर्फ सरकारी अधिकारियों से बात करके संतोष नहीं किया जा सकता फिर भी वे यह जानते हैं कि यदि स्टेट मीडिया उन के पास बात करने आ रहा है तो वे अधिक से अधिक तैयारी करेंगे और अपना काम चुस्त-दुरुस्त रखेंगे और जितना संभव हो तथ्यों को ईमानदारी से सामने लाएंगें.ऐसे समाज में जहां भर्ष्टाचार और काम के प्रति लापरवाही बरतने वालों के खिलाफ सहनशीलता शून्य हो,सरकारी अधिकारियों की जिम्मेवारी और भी बढ़ जाती है.दूसरा तरीका है कान,आंखें खोल कर हम विकास के उन रुपों को स्वयं देखें जिन के लिए किसी से बात करने की ज़रुरत नहीं पड़ती.मसलन,सड़कें कैसी हैं,शहर में बिजली,पानी,सफाई,यातायात,बाज़ार,लोगों की आमदरफ्त,इन सब को देख कर अच्छा अंदाज लग जाता है कि शहर में विकास हो रहा है या नहीं.तीसरा उन लोगों से बात करने की ज़रुरत है जो विकास के मूल हकदार हैं ,और जो विकास के हाथ और पांव भी हैं.जनसंख्या कम होने के बावजूद युन्नान के इन सीमा प्रांतो के शहरों का जिस तेजी से विकास हुआ है,शहर में रहते हुए यह एहसास गायब हो जाता है कि आप किसी सीमा प्रांत के शहर में घूम रहे हैं.
त हुंग प्रिफेक्चर में मांग श,रुईली,आदि जगहें सीमा व्यापार की दृष्टि से पिछले सालों में तेजी से आगे बढ़ी हैं और वैश्विक आर्थिक विकास की गति के धीमे पड़ने का इन पर कोई अधिक प्रभाव नहीं पड़ा है.अल्पसंख्यक जनजाति के युवाओं से बात करके मालूम हुआ कि उन में आगे बढ़ने का कितना हौसंला और विश्वास है,14 साल की लूसी चिंग पो अल्पसंख्यक जनजाति की लड़की है जो बड़े होकर मीडिया में काम करना चाहती है और जिसे अंग्रेजी पढ़ने का शौक है.लूसी मेरे लिए इन सीमा प्रांतों में बसी अल्पसंख्यक जनजातियों की उस नई पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करती है जिसे सपने देखने और उन्हें पूरा करने का मौका मिला है.रुईली में भारतीय मूल के व्यापारी से हुई मुलाकात में उन्होंने बताया कि सरकारी नीतियां देसी, विदेशी व्यापारियों के प्रति एक समान हैं और कोई भी सरकारी काम करवाना हो,सरकार का रवैया बहुत दोस्तान रहता है जिस का यहां विदेशी पूंजी निवेश करने वालों पर अच्छा प्रभाव पड़ा है
विकास के चक्कर में कई दफा स्थानीय संस्कृति,रहने के तौर तरीकों की बलि चढ़ जाती है,अच्छी बात है कि स्थानीय सरकारें विकास के हकदारों की भागीदारी से उन योजनाओं को लागू करने की कोशिश कर रही हैं,जिन का समाज की सूरत पर दूरगामी असर होगा.थनचुंग में खेत मजदूर महिलाओं से बात करके इस बात की पुष्टि हुई कि सरकार की शिक्षा,किसानों से लिए जाने वाले करों में कटौती,स्वास्थ्य बीमा,ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए बनाई गई नीतियों का इन के जीवन पर प्रभाव पड़ा है और अब ये अपने बच्चों के लिए एक सुंदर भविष्य की कल्पना और कामना करने में आशावान हैं.