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छठा दिन 16 अगस्त
2009-08-18 18:36:06

आज सिर्फ एक दिन के लिए हम थंगचुंग में हैं और एक दिन में जितना संभव हो देखने ,जानने की इच्छा है. थंगछुंग काऊंटी युन्नान प्रांत के पश्चिमी भाग में काओलीकुंग पर्वतऋंखला के पश्चिमी पाद पर अवस्थित है.ताइंगच्यांग नदी की एक सहायक नदी ताएशुए इस शहर को घेर कर निकलती है.पश्चिम में म्यनमार के कछिंगपांग की सीमा से सटी हुई 148.7 किलोमीटर की सीमा वाली काऊंटी की कुल जनसंख्या 530,000 है और इस काऊंटी का कुल क्षेत्रफल 5.693 वर्ग किलोमीटर है.यहां 10 से अधिक अपनी-अपनी रंगबिरंगी सांस्कृतिक विशेषताओं और रीतिरिवाजों वाली प्रजातियां रहती हैं जैसे हांस,ताई,पाए.हुई,लीशु,अचंग आदि.थंगचुंग प्रसिद्ध,ऐतिहासिक और सांस्कृतिक शहर है और 'प्रवासी चीनियों का घर' और 'संस्कृति की भूमि' के नाम से जाना जाता है.यहां के प्राकृतिक बोटोनिकल गार्डन,ज्योलोजिकल म्युजियम और प्राकृतिक म्युज़ियम वैज्ञानिकों के आकर्षण के केंद्र हैं.जापान विरोधी युद्ध में युन्नान के पश्चिमी भाग में यह युद्धभूमि का मुख्य अखाड़ा था.

थंगचुंग अपने लंबे इतिहास,संस्कृति,जाबांज लोग,सुंदर भू-दृश्य और ऐतिहासिक अवशेषों के कारण बहुत प्रसिद्ध है.इसे युन्नान का प्रसिद्ध ऐतिहासिक और सांस्कृतिक शहर माना जाता है.यह शहर दूसरे देशों के लिए खुला हुआ है और इस की सीमा पर प्रांतीय व्यापारिक पोर्ट है.

भारतीय गांवो के बाद थनचुंग एक ऐसा पहला शहर मिला जहां सुबह अभी भी मुर्गे की बांग से होती है.ठीक चार बजे मुर्गे बांग देने लगते हैं .दूसरी विशेषता इस शहर की यह है कि यहां के लोग बहुत साधारण हैं और जीवन की गति भी धीमी है.रेस्तरां में घर वाला माहौल होता है,खाना साधारण,और चाय,पानी या शराब परोसने की कोई जल्दबाजी नहीं और कभी-कभी ज़रुरत भी नहीं समझी जाती .यहां हर पल रिमझिम बारिश होती रहती है.लेकिन लोग उस की ओर अधिक ध्यान नहीं देते.सुंदर और काफी विकसित शहर, इसलिए सोचा क्यों न पहले यहां के कुछ ऐसे आम लोगों से बातचीत की जाए जो बता सकें कि चीन की सुधार की और खुलेद्वार की नीति का उन को प्रत्यक्ष रुप से कितना लाभ पहुंचा है,या नहीं पहुंचा है.काम करने वाली दो महिलाएं हमें वन ब्युरो दफ्तर के पास मिलीं जहां हम लोग सुबह गए थे.पहली महिला ने बताया कि वह 28 साल की है,पास ही के गांव में रहती है,और आठ साल से विवाहित है,उस का पति यहीं इमारत बनाने का काम करता है और नौ साल का उस का एक बेटा है.उस के मां बाप गांव में किसान हैं.वह छह माह पहले ही शहर आई है.उस ने बताया कि पहले फसल से इतनी आमदनी नहीं होती थी,सरकार को कर भी देना पड़ता था,और मौसम बिगड़ने पर सारी की सारी फसल चौपट होने पर कुछ अधिक सहायता की उम्मीद नहीं रहती थी.लेकिन अब किसानों को कर नहीं देना पड़ता और स्वास्थ्य बीमा के कारण असुरक्षा की भावना कम हो गई है.यह पूछने पर कि वह अपने बेटे को क्या बनाना चाहती है,उस ने कहा कि इस के बारे में अभी कुछ सोचा नहीं है,दूसरी महिला चालीस साल की थी.जिस के तीन बेटे हैं.सब से बड़ा बेटा 22 साल का है और कालिज में पढ़ता है,दूसरा बेटा 18 साल का है ,वह भी पढ़ाई करता है,तीसरा बेटा अभी 9 साल है,वह भी पढता है,उस ने कहा कि सरकार की नीतियों से उन्हें काफी लाभ पहुंचा है और वह उम्मीद करती है कि पढ़ाई पूरी करके उस के बेटे अच्छे काम पर लग जाएंगे.उस ने यह भी कहा कि सरकार की नीतियों के कारण उन जैसे गांव मज़दूरों को निश्चय ही लाभ पहुंचा है

थनचुंग की जापान विरोधी युद्ध् में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है.प्रवासी चीनियों ने यहां वापिस लौट कर जापान के खिलाफ मोर्चा संभाला था,और दुश्मन को हराया था.जापान के साथ युद्ध में जिन लोगों ने अपनी जान की बाजी लगाई थी,उन की स्मृति में एक स्मृति स्मारक यहां बनाया गया है जहां न केवल शहीद हुए चीनी सैनिकों की स्मृति शिलाएं हैं.बल्कि उन विदेशी,विशेष कर अमरीकी सैनिकों की भी स्मृति शिलाएं हैं,जिंहोंने चीनी सैनिकों के साथ कंधे से कंधा मिला कर जापान के कई आक्रमण नाकाम किए थे.

दोपहर बाद हम "जापान युद्ध विरोधी युन्नान बर्मिज संग्रहालय" देखने गए,जहां द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान द्वारा चीन पर किए गए आक्रमण के दौरान थनचुंग में चीनी मोर्चा और जापान द्वारा युद्ध में छोड़े गए हथियार,उन के द्वारा चीनी जनता के खिलाफ किए गए अमानवीय अत्याचार,और रौंगटे खड़े कर देने वाले जापानी सैनिकों के क्रूर कारनामों की तस्वीरें ,और सूचनाएं प्रदर्शित हैं.इस संग्रहालय को देखने के बाद पता चलता है कि किस प्रकार साम्राज्यवादी जापान को उस के नापाक मकसद में कामयाब न होने देने के लिए संयुक्त मोर्चे ने कैसी कार्यवाही की थी.और अंततः विजय प्राप्त करने में सफलता हासिल की थी.संग्राहलय सन 2005 में स्थापित हुआ है और इस के क्युरेटर के अनुसार हर रोज़ यहां कम से कम 1000 लोग इसे देखने आते हैं.उन का कहना है कि इस संग्रहालय का उद्देश्य लोगों को,विशेष कर नई पीढ़ी को यह बताना है कि वह इतिहास को न भूलें और यह याद रखें कि आजादी जिस का वह उपभोग कर रहे हैं,वह उन के पूर्वजों ने कितनी बड़ी कीमत चुका कर हासिल की है.

इस के बाद हम ने जल प्रपात देखा और उस के बाद थनचुंग में प्रसिद्ध उन प्रवासी चीनियों का गांव देखने गए,जिन्होंने जापान विरोधी युद्ध में चीन वापिस आ कर जापानी सेना के खिलाफ मोर्चा बांधा था,यहां एक निजी लगभग 160 वर्ष पुराने घर में हमारी मुलाकात घर की 75 साल की मालकिन से हुई जिन्होने हमें अपने बीते जीवन की कुछ खट्टी मीठी कहानियां सुनाईं.उन्होने बताया कि यह मकान उन्होंने सरकार को दे दिया है,और बदले में सरकार उन के खाने-पीने का सारा इंतजाम देखती है और हर रोज शाम को उन की सुरक्षा के लिए पांच सुरक्षाकर्मी घर के बाहर तैनात होते हैं.उन्होंने अपनी मां के द्वारा उन्हें दी गई सहेज कर रखी हुई चीनी पौशाक बाहर निकाली और हमारी एक साथी को पहनने के लिए कहा.शायद हमारी इस युवा साथी को अपनी उस पौशाक में देख कर व अपने पुराने दिनों की याद ताजा करना चाहती थीं.हमें लगा हम इतिहास के एक ऐसे पन्ने को छू रहे हैं जो हम से बहुत दूर है लेकिन फिर भी पास है.इस के बाद हम इसी गांव में चीन का प्रथम पुस्कालय देखने गए जिस की स्थापना सम 1912 में हुई थी.यह पुस्तकालय मुफ्त है.लोग यहां आ कर पढ़ सकते हैं ,इंयरनेट इस्तेमाल कर सकते हैं

आज का दिन थनचुंग के इतिहास के पन्ने बदलते हुए बीत गया,कल सुबह खुनमिंग के लिए रवाना होना है..

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