आज हम हतुंग प्रिफेक्चर के शहर रुईली में हैं. रुइली शीला नदी के किनारों पर बसा ताई प्रजाति समूह का जन्मस्थान है.रुइली नदी हरे-हरे पहाड़ों में से सांप की तरह बलखाती और सफेद जेड की तरह चमकती ऐसी लगती है जैसे कि मानों उस ने पहाड़ों को अपने चंगुल में लपेटा हुआ हो.चिंगपो पहाड़ी गांव के प्राचीन आसमान छूते पेड़,ताई की बांसों की इमारतों के पास केले के बाग,और आराम से आसपास चरते पशुओं के रेवड़ इस एक अनोखी पेंटिग बनाते से लगते हैं.रुईली में इंगचिंग नामक ऐसा एक गांव है जिस का आधा भाग म्यनमार में पड़ता है और आधा चीन में.यहां मुख्य तौर पर दो अल्पसंख्यक जातियां रहती हैं ताई और चिंगपो.ताई भाषा में रुईली का अर्थ है मंगमाओ यानिकि धुंध वाला इलाका.रुईली का कुल क्षेत्रफल 1,020 वर्ग किलोमीटर है और जनसंख्या 167,000..
रुइली में वर्षा का मौसम जुलाई से अक्तूबर तक रहता है.यहां मौसम सूखे और वर्षा में साफ-साफ बंटा हुआ है。यहां अचानक मूसलाधार बारिश पड़ने लगती है और अचानक रुक जाती है.जब बारिश होती है तो लोगों को सिर छुपाने के लिए समय नहीं मिलता..लेकिन भीग जाने पर भी ज्यादा असुविधा नहीं होती.क्योंकि तुरंत ही सूर्य निकल आता है और कपड़े सूख जाते हैं.यहां कि बारिश की दूसरी विशेषता यह है कि बारिश बहुत ही स्थानीय होती है....पूर्व की सड़क पर बारिश हो रही होती है और पश्चिम की सड़क पर लोग सूखे के सूखे घूम रहे होते हैं..अचानक पूर्व की सड़क से भीगी हुई कार जब पश्चिम की सड़क पर आती है तो ऐसा लगता है जैसे कार अभी-अभी पानी के हौज से निकल कर आ रही हो.एक चीनी गीत "नार योअ फ्याओ ल्यांग दा ती फांग" में रुइली का वर्णन किया गया है.
रुइली शहर में नुंगताओपिंग माओ पोर चीन की दक्षिणी पश्चिमी सीमा पर भारत,नेपाल और म्यंनमार के साथ सीमा व्यापार का महत्वपूर्ण केंद्र है.
चीन में सुधार और खुलेपन की नीति लागू होने के बाद रुइली में व्यापार और पर्यटन का तेजी से विकास हुआ है.सीमा पर शांति है .सीमांत गांवों में और प्रदूषण रहित उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन में ताए प्रजाति के विशेष पैगोड़ा और मन को बांध लेने वाले लोकनृत्य देखे जा सकते हैं.चीन म्यनमांर सीमा पर अतुल रत्न और जेड से बनी चीजें हैं और यह चीन में गहनों का सब से बड़ा बाज़ार है, पर्यटक यहां आ कर वापिस नहीं जाना चाहते.रुईली की म्यनमार के साथ 169.8 किलोमीटर लम्बी सीमा है जिस में दो राष्ट्रीय पोर्ट होने के अलावा 38 सड़क मार्ग और 97 सीमांत बाज़ार हैं.सुबह हम नाश्ते के बाद चे काओ गए. म्यनमार से माल के आयात निर्यात का यह एक पोर्ट है.यहां म्यनमार के नागरिक पास बनवा कर चीन की ओर आ कर काम कर सकते हैं.बारिश कब शुरु हुई पता ही नहीं चला और कब थमी इस का भी.हम ने देखा कि लोग आमतौर पर बारिश का खास नोटिस नहीं लेते,उन्हें मालूम है इस के आने-जाने का कोई समय तो है नहीं,तो क्यों ख्हामख्वाह परेशान हों.वहां से हम चीन की सब से बड़ी गहनों की मार्किट के रुप में मशहूर में गए..दो तीन घंटे तक घूम कर जेड से बने गहने और सजावट का सामान देखा.यहां दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों के लोगों की भी दुकानें हैं,कई तो सालों से यहां रहते आ रहे हैं.एक ऐसे ही सज्जन
से मुलाकात हुई,वे इस विशाल बाजार के एक उच्च पदाधिकारी भी हैं.देखने में वे भारतीय जान पड़े,बात करने पर मालूम हुआ कि मूल रुप से वे भारतीय ही हैं पर उन का जन्म म्यनमार में हुआ,और वहीं पढाई भी की.उन्होंने बताया कि यहां भारत और पाकिस्तान मूल के ऐसे व्यापारी तो मिल जाएंगे जिन की पैदाएश बाहर के मुल्क में हुई हो लेकिन वर्तमान भारत.पाकिस्तान का कोई व्यापारी यहां नहीं मिलेगा.कारण भी साफ है ..भारत और पाकिस्तान में लोग जेड या जेड से बने गहने पसंद नहीं करते,उन की आंखे तो पीले सोने और सफेद चांदी के गहनों पर ही टिकती हैं.
वहां से हम होटल वापिस आए और थोड़ा सा आराम करने के बाद रात का खाना खाने चिंग पो प्रजाति के विशेष रेस्तरां में गए,जहां चिंग पो के पारंपरिक नाच गान और चावल की बनी शराब और चावल के बने मीठे केक के साथ रेस्तरां के द्वार पर चिंग पो की खूबसूरत पारंपरिक परिधान में सजी सवंरी लडकियों ने हमारा स्वागत किया.खाने के दौरान भी नाचगान का सिलसिला जारी रहा.खाना खाने के बाद हम लोग सीधे वापिस होटल आ गए.सब लोग थके हुए से जान पड़ते हैं और सभी की इच्छा है कि आज अच्छी तरह से आराम कर लिया जाए,ताकि कल तरोताजा हो कर अगले शहर के सफर की तैयारी की जा सके.