सुबह जल्दी उठ कर साढ़े सात बजे हमें सफर के लिए रवाना होना था लेकिन उठते-
उठते देर हो ही गयी और लगभग आठ बजे ही हम खुनमिंग के दो खास चौक चिन मा ( स्वर्ण अश्व) और बी ची ( हरित कुक्कट) से विधिवत उदघाटन के बाद युन्नान प्रांत के सीमांत क्षेत्रों के दौरे पर रवाना हो पाए. पहाडी इलाका और लगभग सात सौ किलोमीटर का बस का सफर.मन में शंका थी रास्ते में घुमावदार रास्ते तो होंगे ही,और शाम तक पहुंचते–पहुंचते शरीर के पेंच ढीले हो जाएंगे.सुबह उठने में देरी होने का कारण यह भी था कि खुनमिंग में बेजिंग की अपेक्षा सुबह देरी से होती है.,सुबह छह बजे बेजिंग में जहां दिन निकल आता है,वहीं खुनमिंग में इस समय अंधेरा अभी भी आलस में पड़ा खुमारी भर रहा होता है.साढे आठ बजे नाश्ता करके जब हम खुनमिंग से चले तो ऐसा लग रहा था जैसे अभी-अभी सुबह हुई हो..पूर्व से जितनी दूर हम खिसकते जाएंगे,सुबह भी उतनी ही पीछे छूटती जाएगी.
जैसे ही हम खुनमिंग को पीछे छोड़ कर आगे बढ़े,तो देखा कि पहाड़ी रास्ता होने के बावजूद सात सौ किलोमीटर तक के रास्ते में पहाड़ों के सीने में छेद कर छोटी बड़ी,50,100 मीटर से ले कर के 3से 4 हज़ार मीटर लंबी सुरगें बना कर घुमावदार मोड़ों को कम से कम कर दिया गया है,जहां पहाड़ को काट कर सड़क नहीं बनाई जा सकती,वहां सीमेंट के स्तंभ जमीन में गाड़ कर,जहां पहाड़ से वर्षा के मौसम में भूस्खलन का खतरा है,वहां पहाड़ की सतह को सीमेंट,कहीं लोहे के जाल और कहीं आड़ी-तिरछी सीमेंट के मीनारों से सहारा दे कर पहाड़ की सतह को इस तरह पुख्ता कर दिया गया है कि सड़क पर पहाड़ से मिट्टी से गिरने का खतरा दूर हो गया है..और इस तरह दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में चार लेन का तीव्र गति का राष्ट्रीय राजमार्ग बना हुआ है जहां कम से कम गाड़ी की गति 60 से 80 किलोमीटर और अधिक से अधिक 120 किलोमीटर है.यह गति सिर्फ गाड़ियों की गति ही नहीं है,यह गति रास्ते में दिखाई पड़ते शहरों,गावोंऔर सभी उन क्षेत्रों के विकास में भी दिखाई पड़ती है जो,इस राष्ट्रमार्ग से किसी न किसी रुप में ज़ुड़ते हैं.रास्ते में हरियाली से भरे पहाड़ों की न खत्म होने वाली ऋंखला और पहाडों की छाती को काट बहती नदी का सिलसिला तब तक खत्म नहीं हुआ.जब तक कि हम बाओशान नहीं पहुंच गए..हुतंग प्रिफेक्चर की काऊंटी मांगशा यहां से सिर्फ पचासेक किलोमीटर की दूरी पर है.जहां आज रात हमें रुकना है.रास्ते में अनेक जनजातियों के गांव देखने को मिले,और हर जनजाति के मकानों की दीवार पर उन की विशेष पहचान का चिन्ह बना हुआ दिखाई पड़ा.हुई(मुस्लिम) जनजाति के गांव के पास से जब हम गुज़रे तो दूर एक विशाल हरे रंग की मस्जिद दिखाई पड़ी,और गांव से हर मकान की दीवार पर दूर से दिखाई पड़ने वाला इसी मस्जिद का चित्र दिखाई पड़ा.सारे रास्ते में हम देखते आए कि पहाड़ों पर,ढलान पर हर कहीं मक्का के खेत लहलहा रहे हैं,और कहीं-कहीं तंबाकू के कुछ खेत भी .पहाड़ी इलाका होने के कारण समतल जमीन का अभाव किसान पहाड़ों की ढलानों के थोड़ा सा समतल सा बना कर कर लेते हैं.
शाम साढे सात बजे हम मांग श पहुंचे.मांग श ह में तुंग प्रिफेक्चर की स्थानीय सरकार का दफ्तर है,हमारा स्वागत करते हुए स्थानीय सरकार के पदाधिकारी,उप-गवर्नर थियन ता यु ने हमें रात्रि भोज दिया.रात काफी हो गई है,खाना खाने के बाद सब आराम करना चाहते हैं ताकि कल बाहर घूम कर,जिम्मेदार लोगों से और आम लोगों से मिल कर उन से बातचीत करें और उन के जीवन की कहानी सुनें.