पीने के लिए पानी की कमी और दूर से पानी लाने का परिश्रम अतीत के तिब्बत की एक बड़ी समस्या थी। ऐसी स्थिति में तिब्बती गृहस्वामिनियों को घर के जरूरी पानी लाने के लिए लम्बा रास्ता चलना पड़ता था।
तिब्बत में महिलाओं के कंधे से भारी परिश्रम का बोझ उठा ले जाने के लिए इधर के दशक में तिब्बत में मातृ जल भट्टी योजना लागू करना शुरू हो गया है। इस सामाजिक कल्याण योजना के तहत तिब्बत में गांव गांव को स्वच्छ पानी की सप्लाई की जाएगी और तिब्बती महिलाएं फिर पीठ पर पानी लादने जाने से निजात होगी।
तिब्बत के लोको क्षेत्र की न्येतुंग काऊंटी में श्या क्वो नाम का एक गांव है। कुछ साल पहले भी गांव वासियों को पानी लेने के लिए दूर जाना पड़ता था। पिछले साल, गांव में मातृ जल भट्टी योजना के तहत निर्माण कार्य पूरा होने के बाद गांव वासियों के लिए पीने के लिए पानी की कमी की समस्य हल हो चुकी है।
वर्तमान में सभी गांववासियों की तरह बासान भी गांव में निर्मित 15 जल आपूर्ति स्टेशनों से स्वच्छा पानी को अपने घर उठा ले जा सकता है। इस की चर्चा में श्री बासान ने कहाः
हमारे घर में पांच लोग हैं, रोज 100 किलोग्राम के पानी की जरूरत है, जो दो बाल्टियों में बाहर से लाना है। पहले इतना पानी ले आने के लिए हमें गांव से दो किलोमीटर दूर पहाड़ी तलहटी जाना पड़ता था।
लेकिन मातृ जल भट्टी योजना लागू होने के परिणामस्वरूप अब गांववासियों की यह मुश्किल दूर हो गयी है। गांव वासियों को अपने गांव में रहते पानी मुहैया किया जा सकता है। तिब्बत की न्येतुंग काऊंटी के महिला संघ के अध्यक्ष पाईमाजिचुंग ने संवाददाता को बतायाः
2009 के मार्च में हम ने मातृ जल भट्टी योजना पर अमल करना शुरू किया, उसी साल के 15 मई तक गांव का जल भट्टी निर्माण पूरा हो गया, जिससे गांव के 160 परिवार के 582 लोगों के लिए पीने की जल समस्या हल हो चुकी है। इस सफल योजना पर गांववासी बहुत ही संतुष्ट हैं।
पहले के दूर जाकर पीठ पर पानी लादे ले आने की दिक्कत से निजात होकर अब गांव के भीतर ही पानी को घर ले आने की सुविधा से गृहस्वामिनियों को सब से ज्यादा लाभ मिला है, इसे देखते गांव गांव में पानी सप्लाई योजना को मातृ जल भट्टी का नाम दिया गया है, यह योजना तिब्बत में जन जीवन में सुधार लाने की कोशिशों का एक भाग है।
तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के जल संसाधन विभाग के पदाधिकारी श्री जाशि ने कहा कि तिब्बत में अनेक स्थानों में पानी का अभाव होता है, गांव से बाहर दूर जाकर पानी लाने का बोझ आम तौर पर तिब्बती महिलाओं पर है, इसलिए पीठ पर पानी लादे लाने की झंझट भी ज्यादा महिलाओं को झेलना पड़ी । श्री जाशि ने एक कहानी कहकर बतायीः
तिब्बत में अधिकांश गांवों में पीठ पर पानी लादे लाने तथा बहंगी से पानी की बाल्टी उठाने का काम महिलाओं द्वारा किया जाता है। इस के कारण जहां पानी की भारी कमी होती है, वहां युवा महिलाएं शादि के लिए जाना नहीं चाहती हैं, सो ऐसे गांवों में क्वांरे पुरूषों की संख्या ज्यादा है। उदाहरण के लिए, 2003 में मैं छांगतू प्रिफैक्चर के लांगबा नामक एक गांव गया था, यह गांव चिनशा नदी के ऊपरी भाग के तट पर स्थित है, गांववासियों को नदी में से पानी लाने में 300 मीटर लम्बे ढलान पर चढ़ना पड़ता था, इस प्रकार की समस्या की चर्चा में स्थानीय लोगों में यह कहावट चलता हैः कोई भी लड़की लांगबा में शादी के लिए नहीं आती है, यदि आई हो, तो भी पानी उठा लेने से दम तोड़ सकेगी।
असलियत तो यह है कि श्याक्वो और लांगबा जैसे गांव तिब्बत में बहुत हैं। श्री जाशि के अनुसार 2001 तक तिब्बत भर में 16 लाख लोगों के सामने पेयजल की समस्या थी। पानी लाने की असुविधा और पानी सप्लाई की निम्न गारंटी स्थानीय गांवों और चरगाहों की बड़ी समस्या है। श्री जाशि ने कहाः
वर्ष 2001 में हम ने चतुर्मुखी जांच सर्वे किया। उस समय तिब्बत के ग्रामीण व पशुपालन क्षेत्रों में जनसंख्या 22 लाख 20 हजार थी, राष्ट्रीय मापदंड के हिसाब से पानी की समस्या से जूझ रहे लोगों की संख्या 16 लाख 12 हजार थी।
तिब्बत के शिकाजे प्रिफेक्चर की ज्यांगजी काऊंटी का गायि गांव एक दूर दराज छोटी पहाड़ी पर स्थित है, गांव में मातृ जल भट्टी की योजना लागू हुई, गांववासी कमेटी के मकान के सामने नल पानी की सुविधा कायम हुई, गांववासी नल पानी व्यवस्था से पानी लेते हैं, जब कभी वहां पानी लेने का समय आया, तो छोटे प्रांगन में हंसने तथा बातचीत का बड़ा खुशगार माहौल छाया रहता है।
गायि का अर्थ तिब्बती भाषा में प्रसन्न है। लेकिन पुराने समय में इस सुन्दर नाम वाले गांव में हमेशा सूखा पड़ता था और भू-सतही और भूमिगत दोनों प्रकार के जल संसाधन की कमी थी, यह गांव इसी कारण काऊंटी भर में मशहूर है। स्थानीय लोगों में यह कथन चल रहा था कि गायि गांव, जहां से उड़कर गुजरने वाली पक्षी भी प्यास से मर जाती है।
इस से अंदाजा किया जा सकता है कि उस समय में गायि गांव की महिलाओं के लिए पानी लाने का रोजाना काम कितना कठोर था। गांव वासी के अनुसार मातृ जल भट्टी योजना से पहले गांव के हरेक घर के एक एक सदस्य रोज पानी लाने के काम में रह जाता था और रोज दो घंटे दूर से पानी लाने में लगते थे।
2005 में गायि गांव में मातृ जल भट्टी की योजना लागू होने के परिणामस्वरूप स्वच्छ पानी पाइप से गांव में पहुंचाया जाने लगा और गांव वासियों के लिए पीने के पानी सुविधापूर्वक मिल जाता है । गांववासी श्री डोजिचंत्वी ने कहाः
मातृ जल भट्टी योजना से पहले गांव के 60 से अधिक घरों के लोग रोज पीठ पर बाल्टी लादे ले आने जाते थे और पानी की क्वालिटी भी अच्छी नहीं थी। योजना पर अमल के बाद स्वच्छ पानी सीधे गांव में पहुंचाया गया और इस से बचे श्रम-शक्ति दूसरे कामों में लगाया जा सकता है और अब बहुत से गांव वासी शहर में नौकरी करने चले जाते हैं।
पानी मिलने के फलस्वरूप गांव में फुल, पेड़, घास और सब्जी की खेती हुई, हरेभरे पेड़ पौधों से गांव की सूरत बदल गयी है और हर तरफ जीवन का माहौल छाया है। गांववासियों के प्रांगनों में सब्जियों की क्यारी बड़ी आकर्षक है।
तिब्बत की न्येतुंग काउंटी के श्याक्वो गांव की 78 वर्ष की बूढिया च्वोमा ने तहेदिल से अपना एहसानमंद भाव व्यक्त कियाः
मातृ जल भट्टी के निर्माण से पहले हमारे लिए पानी पीने की बड़ी दिक्कत थी, उम्र बड़ी होने, आंखों की नजर कमजोर होने तथा अपना संतान विकलांग होने के कारण मुझे पानी लाने के लिए दूसरों से मदद लेनी पड़ती थी। अब मातृ जल भट्टी की योजना लागू हुई, हमें गांव में ही पानी मिल सकती है, हमारे सिर पर एक बोझ एकदम हट गया है।
मातृ जल भट्टी योजना अखिल चीन महिला संघ द्वारा आयोजित हुई है, संघ का कोष इस में पूंजी का अनुदान करता है और स्थानीय सरकारी वित्तीय संस्थाएं और सामाजिक परोपकारी कोष भी धनराशि देते हैं। योजना का मकसद पश्चिम चीन के गरीब व सूखाग्रस्त क्षेत्रों में महिलाओं और अन्य लोगों को पानी की समस्या से मुक्त कराना है।
तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के जल संसाधन विभाग के अधिकारी जाशि ने कहा कि तिब्बत में यह योजना कार्यान्वित किए दस साल हो चुका है। पिछले एक दशक में योजना के तहत किए गए कामों ने तिब्बत में 50 हजार परिवारों को पानी की दिक्कत से पिंड छुड़ाया है, इस तरह तमाम तिब्बती महिलाओं द्वारा पीठ पर पानी लादने का इतिहास सदा के लिए खत्म होगा।
मातृ जल भट्टी योजना के अलावा तिब्बत स्वायत्त प्रदेश ने केन्द्रीय सरकार के पूंजीगत समर्थन में जोरदार रूप से ग्रामीण पेयजल समस्या के समाधान तथा जल सुरक्षा योजना का भी विकास किया है जिस के नतीजातः तिब्बत के अधिकांश भागों में पीने वाले पानी की कमी तथा सुरक्षा सवाल को दूर किया गया है। श्री जाशि के विचार में मातृ जल भट्टी योजना से चार क्षेत्रों में लाभ मिला है। उन्होंने कहाः
इस से रोगों की रोकथाम होगी और किसानों, चरवाहों और महिलाओं का स्वास्थ्य स्तर ऊंचा होगा। दूसरे, स्वच्छ पानी की सुविधा मिलने से ग्रामीण महिलाएं कड़े परिश्रम से निजात होगी। तीसरे, गांव में पानी की सप्लाई से देहाती आर्थिक विकास तेज होगा और अंतिम, स्वच्छ पानी के प्रयोग से गांव का पर्यावरण सुधर जाएगा। सब से बड़ा लाभ ग्रामीण महिलाओं को मिलेगा।