आज के इस कार्यक्रम के अन्तर्गत तिब्बती जाति की दो लोक कथाएं प्रस्तुत होंगी, आशा है कि आप को पसंद आयेगी। पहली कथा का नाम है सफेद याक की कहानी।
तिब्बत पठार पर प्राचीन काल से याक पाये जाते आए है। वह तिब्बती लोगों के परिवर्हन का एक प्रमुख साधन है, जो वहां बहुत लोकप्रिय रहा है। तिब्बती याक के बाल आम तौर पर काले या खिचड़ी रंगों के होते हैं और सफेद बालों वाला याक बहुत कम देखने को मिलता है, इसलिए सफेद याक दुर्लभ होने के कारण बहुत मूल्यवान है। तिब्बती पठार पर जो सफेद याक उपलब्ध है, वो विश्व के दुर्लभ किमती जानवरों में शुमार है और विश्व में विख्यात है।
तिब्बती लोगों में सफेद याक के बारे में एक लोक कथा भी प्रचलित हो रही है, जो इस प्रकार हैः
प्राचीन काल में तिब्बती जाति की एक शाखा थ्यान जु के पूर्वज पठार के पश्चिमी छोर पर बायांगारा हिम-पहाड़ की तलहटी में रहते थे। वहां बेशुमार बैल और बकरी चरते थे, जिस की वजह से घास मैदान भी बहुत तंग हुआ लगा था। थ्यानजु के पूर्वज ह्लाश्यो और उस के बड़ा भाई आश्यो थे, दोनों में नए घास मैदान ढूंढने के बारे में बातचीत हुई। नदीजातः ह्वाश्यो अपने भाई से बिदा लेकर नये घास मैदान की खोज में निकला। रवाना होने के वक्त गिरि देवता से यज्ञ करके उसे मार्ग दिखाने की प्रार्थना की।
एक दिन, युद्धक वर्दी में एक देवता सफेद घोड़े पर सवार होकर आकाश में आया, उस के साथ रंगीन बादल का एक टुकड़ा पूर्व की दिशा में उड़ने जा रहा था। ह्वाश्यो अपने कबीला के जन समूह को लेकर असंख्य गाय-बकरी हांफते हुए रंगीन बादल जाने की दिशा में चल निकला। जब उस के कबीला और मवेशियों का झुंड एक पत्थरी दर्रे से गुजरने जा रहे थे, तो काले याकों में विरह और दुख की आवाज सुनाई देने लगी। लोगों को मालूम हुआ कि मनुष्य की ही तरह याक भी अपनी जन्मभूमि से जाना नहीं चाहता। तत्काल याकों में दुख भरी आवाज जगह जगह सुनाई देती रही और ऐसा कोई भी नहीं था जो फिर आगे बढ़ जा सके। यह दुखी दशा देखकर चरवाहों की आंखों में भी आंसू टपक गयी और वे विलाप करने लगे।
ऐसे वक्त, पीछे के एक ऊंचे हिमाच्छादित पर्वत की ओट में से एक सफेद याक दृष्टिगोर हुआ, वह इतना कदर शुद्ध सफेद और सुडोल था कि देखते ही बनता है। सफेद याक एक सफेद मेघ टुकड़े की भांति दहाड़ मारते हुए दर्रे के पास से गुजरा। बड़ी अजीब की बात थी कि सफेद याक देखते ही अन्य याक की तड़पने की आवाज बन्द हो गयी और वे भी दर्रे से गुजर कर आगे लपके, इसतरह ह्वाश्यो का कबीला फिर आगे बढ़ने लगा।
याकों के पीछे लोग जब दर्रे से आगे निकले, तब सामने की दुर्दशा देखकर सभी लोग हक्के-बक्के रह गए। उन के सभी याक अब ढेर के ढेर हो गए, केवल वह सफेद याक एक काले रंग के राक्षस से भिड़न्त हो रहा था, भीषण घमासान से आकाश धूंधली हो गया, धरती कांप रही और धूल का बंडवर उमड़ रहा। लोग डर के मारे स्तंभित हो गए और सबों को सफेद याक पर चिंता उठ गयी। अनायास काले राक्षस के मुंह से दर्दनाक हुंकार निकला और झपकी लेने की देर में ही वह नौ दो ग्यारह हो गया। सफेद याक ने अपने संगीन सींग और बहादुरी से राक्षस पर विजय का पताका लहराया।
मैदान में जख्मी हुआ एक बछिड़ा कराह कर रहा था, सफेद याक ने पास पहुंचकर अपनी जीभ को बछिड़े के घाव पर फेराया, देखते ही देखते काला बछिड़ा एक बिलकुल सफेद याक में रूपातरित हो गया।
इस समय, आकाश में घोड़े की हिनहिनाहट सुनाई देने लगी, सफेद पोशाक पहने देवता फिर आकाश में दृष्ट हुआ। दुख से आहत ह्वाश्यो और उस का कबीला सफेद देवता के साथ आगे बढ़ना जारी रखा। चलते चलते न जाने कितना कठिन रास्ता तय हुआ और पता भी नहीं चला था कि कितने समय बीत गए। एक दिन आकाश के मार्ग से चल रहा देवता घोड़े के साथ जमीन पर उतरा, सामने एक गगनचुंबी ऊंचा बर्फीला पहाड़ शान से खड़ा नजर आया था, यही था अश्वदंत पर्वत। ह्वाश्यो ने अपने लोगों से कहा, यहां हमारा नया घर है। कबीला फिर आगे नहीं बढ़ा और वहां बस गया। अश्वदंत पहाड़ की तलहटी में फैला घास मैदान विशाल था, पेड़ पौधे हरे भरे और पानी कलकल कर बहते थे, सचमुच मवेशी चराने के लिए एक श्रेष्ठ स्थान था। तभी से ह्वाश्यो और उस के लोग वहां सुखचैन से रहने लगे। अश्वदंत पहाड़ से निकले वाला पानी पीने से याक के बाल और अधिक सफेद हुए, वे झुंड झुंड में चरते हुए मानो आकाश में सफेद बादल के टुकड़े चलते विचरते हो।
इस स्थान का नाम था थ्यानजु, जो सफेद याक का आवास स्थल बन गया, सफेद याक भी थ्यानजु कबीले का गर्व बना और संसार में मशहूर हो गया। सफेद याक को थ्यानजु याक की संज्ञा दी गयी और विश्व की दुर्लभ मूल्यवान याक नस्ल मानी गयी।
दोस्तो, अभी आप ने तिब्बती जाति की प्रथम लोक कथा सुनी, अब सुनेंगे आज की दूसरी लोक कथा, नाम है राजकुमारी का मंदबुद्धि वाला पति।
प्राचीन काल की कहानी थी, एक होशियार राजा था, नाम फान्सो। उस ने अपने गुरू ब्राह्मण आयार्य सजीव के साथ शास्त्रार्थ करते समय पाया कि उस के गुरू एक ज्ञानी पंडित है और उस ने अपनी पुत्री को गुरू के साथ शादी के लिए देने की सोच की. लेकिन उस की पुत्री चिनसेंग मंजूर नहीं थी, उस का कहना था कि वह खुद गुरू से ज्यादा ज्ञानी और बुद्धिमान है, वह केवल बौद्ध सूत्र में पारंगत हुए व्यक्ति के साथ विवाह करने को तैयार है। राजा की पुत्री की यह बातें आचार्य सजीव के कान में पहुंची, इस पर सजीव को बड़ा गुस्सा आया और सोचा कि मेरा जैसा पंडित भी तुम्हें भा नहीं आया, तो मैं अवश्य तुम्हारी मरम्मत करूंगा।
आचार्य ने एक मूर्ख ढूंढ लाना चाहा, लेकिन कहीं भी वह हाथ नहीं लगा। अंत में एक पेड़ पर एक खूबसूरत, पर मंदबुद्धि वाला एक युवा गाय पालक देखने को मिला। पास बुलाकर तो पता चला कि युवा वास्तव में एक मूर्ख था, आचार्य को बड़ी खुशी आयी और उसे राजकुमारी के पास लेकर कहा,"उसे अपना पति मान लो और उसे शिक्षा-दीक्षा देकर बुद्धिमान बनाओ।"इस के उपरांत, गुरू सजीव ने गाय पालक को एक एकांत जगह लेकर उसे नहवाया और दूध पिलाया, फिर उसे हुं, सोर, तो वाले सूत्र सिखाया। विवाह के दिन आचार्य सजीव ने गाय पालक को सजा संवार किया और विवाह के भव्य समारोह में ले गया। उसने गाय पालक को सूत्र जपाकर राजा के सिर पर फुल माला पहनने का आदेश दिया। आदेशानुसार गाय पालक ने राजा के सिर पर फुलों का माला पहना और जब सूत्र जपाना चाहा, तो उसे एक शब्द की भी याद नहीं आयी, उस ने मनमानी से हू साजूर की एक गाली कह डाली, जिस से समारोह में उपस्थित सभी लोग क्रोधित हो उठे और उसे कोसने आगे बढ़े. तब आचार्य सजीव ने बीचबचाव के लिए समझाया कि इस युवा के कहने का अर्थ है कि राजा हर काम में पारंगत हैं। तभी लोग थोड़ा शांत हो गए।
राजकुमारी ने गाय पालक से पूछा कि क्या तुम्हें सचमुच गहरा ज्ञान प्राप्त है?इस पर गाय पालक मौन साधे रहा, सजीव ने समझाते हुए कहा कि यह मेरा गुरू भी है, वह तुम जैसी मामली स्त्री के प्रश्न का उत्तर देने का मन नहीं करता। राजकुमारी चिनसेंग को विश्वास हुआ और पालक को राजमहल में ले गयी। वहां भी गाय पालक राजा की पुत्री के किसी सवाल का जवाब नहीं देता। फिर राजकुमारी ने उसे मंदिर में लेकर देवता की मू्र्ति के बारे में प्रश्न पूछा, इस समय पालक की नजर मंदिर की भित्ती पर अंकित एक चित्र पर गयी, जिस में पुनर्जन्म में आये पशु चित्रित था, पशु को देखकर गाय पालक के दिमाग में पुरानी समृति वापस लौटी और चिल्ला चिल्ला कर कहा"भैंस!वह भैंस है।" राजकुमारी चिनसेंग समझ गयी कि वह ब्राह्मम आचार्य के धोखे में आ गयी। किन्तु फिर सोचा, यदि यह युवा सीखना चाहता है,तो मैं उसे शास्त्र पढ़ाकर ज्ञानी व्यक्ति बना सकूंगी।
इस के बाद राजकुमारी ने गाय पालक को सुखघोष अप्सरा मंदिर में लेकर पढ़ाना शुरू किया, लेकिन वह नादान बना रहा। राजा की पुत्री ऊब गयी और उस ने अपनी एक दासी से कहा कि उसे मंदिर में अप्सरा की मुर्ति के पीछे ले जाए, सुबह तक यदि वह हाथ बढ़ाकर तंत्र-मंत्र सीखना चाहेगा, तो मेरे मुंह से निकली इस चावल की गोली उस के मुंह के अन्दर घुसेड़ डालो।
दासी ने हुक्म बचाया और गाय पालक को मंदिर में ले गयी। वहां मूर्ख गाय पालक समझता था कि सचमुच ही सुखघोष अप्सरा उसे चावल की गोली खिलाती है,तो उसने मुंह बड़ा खोलकर चावल की गोली निगल लिया । चमत्कार था कि क्षण में पालक की बुद्धि खुल गयी और वह एक ज्ञानी शख्स बन गया। राजमहल में लौटकर राजकुमारी ने उससे पूछा कि तुम्हें कौन सा गुहा ज्ञान प्राप्त हुआ है?तो उस ने जवाब दिया:" अब मैं अक्षर शास्त्र की तीन रचनाएं लिख सकता हूं"तभी से लोगों ने उस का नाम बदलकर बुद्धिमान रखा था।
कहता है कि मनुष्य की बुद्धि अध्ययन और व्यवहार के जरिए उन्नत की जा सकती है। वास्तव में गाय पालक के बुद्धिमान बनने का राज मंदिर में तपस्या करने में नहीं था, वह ज्ञानी राजकुमारी के साथ सीखने और पभावित होने से ही पंडित बन गया था।