छठे दलाई लामा च्वांगयांगजाच्वो एक प्रकांड कवि थे, कुछ लोगों की नजर में वे एक स्वच्छंद बौद्ध भिक्षु थे, दुर्भाग्य से वे कम उम्र में ही स्वर्गवासी हो गए थे। छठे दलाई लामा की एक कविता के मुताबिक उस का अवतार बच्चा यानिकि सातवां दलाई लामा सछ्वान प्रांत के लीथांग में पाया जाएगा। छठे दलाई लामा की कविता का अर्थ इस प्रकार हैः सफेद रंग का सारस, तुम मुझे अपना पंख उधार दे, बहुत दूर नहीं, लीथांग पहुंचने के बाद मैं फिर वापस लौटूंगा। इस भावपूर्ण कविता में यह संकेत मिलता था कि उस का अवतार बच्चा लीथांग में होगा।
इस प्रकार सातवां दलाई लामा लीथांग में अवतारित हुआ, इस के बारे में भी एक स्तुति कविता पढ़ने को मिली है कि यह नहीं समझो कि लीथांग एक गरीब जगह है, तिब्बती जीवित बुद्ध का यहीं पुनः जन्म होगा। कहा जाता है कि दलाई लामा का अवतार बच्चा बहुत अलौकिक और दिव्य दिखता था। लेकिन तत्कालीन ल्हासा के शासक ल्हासा खान ने अपने बच्चे को दलाई लामा का अवतार बच्चा बनाने की साजिश रची और असली अवतार बच्चे की हत्या करने की कुचेष्टा की थी। इस आफत से बचने के लिए सातवें दलाई लामा की माता जी उसे लेकर चुंगत्याङ जगह भाग चली गयी।
मां पुत्र कारी पहाड़ की तलहटी में रह गए थे, यह स्थल न्येची नदी का उद्गम स्थान था। सुबह जब माता जी खाना बनाती थी, तो धुआं नजदीक के सोंगजानलिन मठ की ओर उड़कर जाता था। उसी की ओर इशारा करते हुए अवतार बच्चे ने कहा:"वहां मेरा मठ है।" न्येची नदी के किनारे रहने के दौरान चरवाही समय समय पर उन्हें ताजा ताजा दूध भेंट करते थे, किन्तु छोटा दलाई लामा हर बार आधे प्याले का दूध पीने के बाद शेष आधा प्याला दूध नदी में डाल देता था। धीरे धीरे नदी का पानी दूध जैसा दुधिया रंग बन गया और इस नदी का नाम भी न्येची यानी दूध की नदी पड़ गया।
एक रात, सोंगजानलिन मठ को दलाई लामा के अवतार बच्चे की हत्या करने का आदेश दिया गया, किन्तु मठाधीश को मालूम हुआ था कि वो मां बालक दोनों अलौकिक शख्स है और उन की सुरक्षा की जानी चाहिए। इसलिए रात में ध्यान लगाने के वक्त अवतार बच्चे को यह खबर प्रेषित की गयी। दूसरे दिन के तड़के, बच्चे ने मां को बताया कि आज सिपाहियों का एक दल आएगा, यदि दल का सरगना पूछेगा कि तुम्हारा पुत्र अवतारित जीवित बुद्ध हो, तो तुम जवाब में कहोगी कि मैं एक भिखारी हूं, जीवित बुद्ध का जन्म कैसे दे सकती?
बच्चे की शंका सच निकली, सुबह ही मठाधीश के साथ सिपाहियों का एक दल आ धमका, दल के सरगना ने बड़े रोब के साथ पूछा:"क्या तुम्हारा बेटा जीवित बुद्ध है?"मां ने शांत भाव में उत्तर दिया:"हाय, मैं तो एक भिखारी हूं, मेरी कोख से जीवित बुद्ध का जन्म कैसा?"इसबीच मठाधीश ने गाली देते हुए कहा:"धत् जाओ, भिखारी औरत, यहां से भाग जाओ!"कहते ही उस ने तिब्बती जौ की रोटी का एक टुकड़ा मां बच्चे के गोद में फेंक कर दिया और सिपाहियों के दल को लेकर वहां से चला गया।
रोटी के टुकड़े में चांदी की एक सिक्का लपेटी हुई थी, असल में मठाधीश ने गुप्त रूप से मां बच्चे को मदद देने के लिए उन्हें भगाने का स्वांग रचा था। सोंगजानलिन मठ की मदद में दलाई लामा का अवतार बच्चा मां के साथ न्येची नदी से छिंगहाई के कुम्बुम मठ चला गया और तत्कालीन तिब्बती सत्ता के पंजे से निकल गया।
कुम्बुम मठ का मठाचार्य एक सिद्धि प्राप्त वरिष्ठ भिक्षु था, उसी दिन, उस ने सुना कि मठ की दीवार के बाहर एक बच्चा रो रहा है, परेशानी से बचने के लिए उस ने अपने आदमी को बच्चे को कुछ देकर रवाना कराने को कहा। लेकिन आदमी ने वापस आकर कहा कि बच्चा कोई चीज नहीं चाहता है, वह सिर्फ मकान के भीतर आना चाहता है। लाचार होकर मठाचार्य ने बच्चे को अन्दर बुलवाया। अन्दर कदम रखते ही बच्चा झट से मठाचार्य के गोद में जा छिपा, बड़े आश्चर्य के साथ मठाचार्य ने बच्चे से अपनी मांग बताने को कहा। तभी बच्चा उसे सूत्र भवन के एक कमरे में ले गया, वहां उस ने मठाचार्य से एक मेज पर रखे हुए लकड़ी का एक मुंहबन्द प्याला मांगा। मठाचार्य के मुंह से अनायास "बड़ा गजब है"शब्द निकला। फिर भी उस ने बच्चे को वह प्याला दिया, बच्चे ने मुंहबन्द प्याला को खोलकर उस के अन्दर भरा दूध एक गट से पी लिया।
असलियत थी कि यह दूध छठे दलाई लामा ने अपने जीवन काल में प्याले में भरा था और दूध भरे प्याले का मुंह बन्द कर सुरक्षित किया था। अब इस बच्चे ने उसे खोलकर पूरा का पूरा पी लिया था, इस से संकेत हुआ था कि यब बच्चा कोई मामुला बच्चा नहीं है, वह निश्चय ही छठे दलाई लामा का अवतार बच्चा है। अतः यह खबर चीन के छिंग राजवंश के दरबार को भेजी गयी। छिंगराजवंश द्वारा भेजी गयी सेना और कुम्बुम मठ के भिक्षुओं की छत्रछांह में सातवां दलाई लामा कुम्बुम मठ से ल्हासा जा पहुंचा, वहां उस ने तिब्बती बौद्ध धर्म के नियम के मुताबिक पलंग पर बैठने की रस्म आयोजित की और अपना औचित स्थान ले लिया।
सातवें दलाई लामा चुंग त्याङ के भिक्षुओं की मदद को कभी नहीं भूले, धार्मिक सत्ता पर आने के बाद उस ने वहां के भिक्षुओं को मूल्यवान उपहार प्रदान किए तथा सोंगजानलिन मठ में नया स्वर्णिम सोंगखापा भवन बनवाया।
अब आप देखेंगे तिब्बती लोक कथा सोने की सिल्ली कुआं में गिरी।
बहुत पहले की बात थी, गांव में एक धोखेबाज रहता था। वह इतना लोभी था कि जो दूसरों की अच्छी चीज उस की नजर में आयी, तो वह जरूर चाल चलकर उस पर हाथ फेरता था। लेकिन गांवमुखिया के आगे वह हमेशा सिर झुका झुका कर खुशामद करता रहता था।
गांव में एक बुद्धिमान युवा था, जिस का नाम जापा। एक दिन जब जापा कुआं पर बाल्टी से पानी उठा रहा था, तो उसे ध्यान आया कि धोखेबाज दूर से नजदीक आ रहा था। जापा का मन सूझाः यदि आज मैं उसे थोड़ा सबक दूं, क्या फायदा नहीं होगा?सोचते हुए उस ने अपना कपड़ा देह पर से उतारा और कुआं के भीतर कूदने की मुद्रा बनायी। यह देखकर धोखेबाज दौड़कर पास आया और बोलाः "जापा जी, मौसम बहुत ठंडा है, कुआं के अन्दर काही कूदना चाह रहा है?""हाय रे, भैया जी, अभी मैं झुकर बाल्टी ऊपर उठा रहा था, तो असावधानी से कमर में बंधी सोने की सिल्ली छूटकर कुआं में गिर पड़ी, मुझे उसे बाहर निकाने जाना पड़ेगा है न!"जापा ने बड़ी उतावनी का चेहरा बनाकर जवाब दिया।
"छी छी छी, तुम बिलकुल ऊल्लू कहीं के हो, इतना ठंडा दिन, फिर इतना गहरा कुआं, क्या तुम अपनी छोटी सी जान गंवाना चाहते हो?""ठीक कहा , बिलकुल ठीक कहा, आप सचमुच मेरे हितैषी हैं।" जापा ने आकस्मिक समझ में आने का स्वांग रचा," यदि जान भी चली गयी, फिर सोना लेने का क्या फायदा हो?जब मेरी जान बची रहेगी, तो सोने की सिल्ली की क्या चिंता होगी।" कहकर जापा कपड़ा पहनकर वापस घर चला गया।
असल में जापा घर नहीं गया, वह थोड़ी दूर किसी एक टूटी दीवार की आड़ में जा छिपा और उस की निगाह सीधे धोखेबाज पर टीकी रही। धोखेबाज देखा, जापा दूर चला गया, तो उस ने अपने सारे वस्त्रों को उतारा और कमर में एक रस्सी बांधी और रस्सी के एक छोर को कुआं के पास एक विशाल पत्थर पर लपेटकर बांधा, इस के बाद वह कुआं के अन्दर सरकते सरकते जा पहुंचा। तभी जापा कुआं के पास लपक कर आ धमका और रस्सी को दो टुकड़ों में काटा, वह कुआं के भीतर की ओर जोर से बोलाः अबे, धोखेबाज, हराम तुम कहीं के, कुआं के भीतर सोने की सिल्ली की तलाश खूब करो।
तभी धोखेबाज को मालूम हुआ कि वह जापा के धोखे में आ गया। कुआं का पानी हड्डी को चुभोने का ठंडा था, वह थरथर कांपने लगा और नीचे से याचना करते हुए चिल्लाया, "भैया, तुम से झमा चाहता हूं, यहां सोना चांदी की कोई चीज नहीं है। मुझे बचाओ!"जापा ने ठहाका मारते हुए कहाः "तुम गधे की भांति ऊंची आवाज में चिल्लाते रहो, उन लोगों को अपने को बचाने बुलाओ, जिन की तुम हमेशा खुशामद करते फिरते हो।" कहकर जापा ने कुआं पर एक बड़ा पतला पत्थर ढकन के रूप में रख दिया और मुड़ कर अपने घर चला गया।