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तिब्बत के मठ मंदिर
2009-12-23 09:00:49

तिब्बत पठार पर स्थित तिब्बत स्वायत्त प्रदेश चीन के पांच अल्पसंख्यक जातीय स्वशासन प्रदेशों में से एक है, जहां आबाद अधिकांश लोग तिब्बती हैं । तिब्बती लोग तिब्बती बौद्ध धर्म में आस्था रखते हैं। अतीत में बाह्य दुनिया से दूर अलग होने के कारण तिब्बती बौद्ध मठ लम्बे अरसे तक एक रहस्यमान सथल बने रहे। बहुत से लोग इस में जिज्ञासा रखते हैं कि तिब्बती मठ में भिक्षु भिक्षुनी कौन सा जीवन बिताते हैं। तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुयायी जानना चाहते हैं कि तिब्बती मठ मंदिर में ऐतिहासिक और सांस्कृतिक अवशेषों के संरक्षण की हालत कैसी है।

तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के शिकाजे शहर के पश्चिमी उपनगर में अवस्थित जाशिलुंबो मठ तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलूग संप्रदाय के चार प्रमुख मठों में से एक है और चौथे पंचनलामा से वह विभिन्न पीढि के पंचनलामा का आवासी मठ रहा है । जाशिलुंबो मठ का निर्माण सन् 1477 में शुरू हुआ, 12 साल बाद 1489में पूरा हो गया। वर्तमान में 70 वर्षीय लामा सालुंग प्यांगला जाशिलुंबो मठ की लोकतांत्रिक प्रबंध कमेटी के प्रधान हैं, श्री सालुंग प्यांगला 1951 में बौद्ध धर्म में दीक्षित हुआ। मठ में तब और अब के भारी परिवर्तन उन्हों ने खुद आंखों से देखा। उन्होंने कहाः

पुराने तिब्बत में मठ मंदिर पर तत्कालीन तिब्बती स्थानीय सरकार ---गाक्साग सरकार का आधिपत्य था। भिक्षु और भिक्षुनियों की कोई भी स्वतंत्रता और अधिकार नहीं था। वे भूदास की भांति उत्पीड़ित और दलित रहते थे। 1959में तिब्बत में लोकतांत्रिक सुधार चलाया गया, तभी से तिब्बत का कायापलट हो गया। भिक्षु और भिक्षुनी सच्चे मायने में मठ मंदिर के स्वामी बन गए और उन का जीवन सुधर गया और सामाजिक स्थान भी बहुत उन्नत हो गया।

पिछली शताब्दी के मध्य तक पुराना तिब्बत एक राजनीतिक व धार्मिक मिश्रित सामंती भूदास समाज था। तिब्बत की जन संख्या के केवल 5 प्रतिशत के जागीरदार यानी कुलीन वर्ग, स्थानीय सरकार और उच्च वर्गीय भिक्षु तिब्बत के 95 प्रतिशत की भूमि और उत्पादन संसाधन पर काबिज थे, जबकि जनसंख्या के 95 प्रतिशत के व्यापक जन साधारण भूदास और दास थे। उस जमाने में भूदास और दास पूरी तरह स्वतंत्रता से वंचित रहते थे, उन्हें जागीरदार की भूमि पर खून पसीना बहाना पड़ता था । पुराने तिब्बत में धार्मिक शक्ति चंद कुछ उच्च वर्गीय भिक्षुओं और भिक्षु के छद्म रूप कुलीन वर्ग के हाथ में थी, अधिकांश साधारण भिक्षुओं की स्थिति भूदास के बराबर थी। मठ के सभी अधिकार जीवित बुद्ध व उच्च वर्गीय भिक्षुओं के हाथ में थे । साधारण भिक्षुओं को बोलने का कोई अधिकार नहीं था। सन् 1959 में तिब्बत में लोकतांत्रिक सुधार के चलते पुरानी सामंती भूदास व्यवस्था खत्म कर दी गयी। व्यापक भूदास अपने भाग्य का आप स्वामी बने। इस के साथ ही साथ मठ मंदिर के आम भिक्षुओं की हालत भी पलट गयी । उन का जीवन सुधरा और राजनीतिक व प्रशासिक मामले में भाग लेने का अधिकार प्राप्त हुआ। मठ में लोकतांत्रिक प्रबंध कमेटी स्थापित हुई, कमेटी के सदस्य तमाम भिक्षु भिक्षुनियों द्वारा मतदान से चुने जाते हैं । यदि कमेटी के किसी सदस्य ने स्वास्थ्य के कारण सदस्यता छोड़ी, तो उस की जगह तमाम भिक्षुओं में मतदान से नया सदस्य चुना जाता है। मठ के तमाम मामले पर फैसला लोकतांत्रिक प्रबंध कमेटी द्वारा लिया जाता है । श्री सालुंग.प्यांगला जाशिलुंबो लोकतांत्रिक प्रबंध कमेटी के प्रधान हैं, वे तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन की कमेटी के उपाध्यक्ष भी हैं। अपना अनुभव बताते हुए उन्हों ने कहाः

लोकतांत्रिक सुधार से पहले, तिब्बती बौद्ध धर्म के मठ में आम भिक्षुओं को सरकारी कार्य में हिस्सा लेने का कोई हक नहीं था। लेकिन अब भिक्षु भिक्षुनियों को सरकारी मामले पर बोलने और राय देने का पूरा अधिकार है। मैं ही तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन की कमेटी के उपाध्यक्ष और जाशुलुंबो मठ की लोकतांत्रिक प्रबंध कमेटी के प्रधान हूं । मठ मंदिर के भिक्षुओं को देश के विकास और मठ के प्रबंध के काम में भाग लेने का अधिकार पाने से वे सच्चे माइने में मठ का स्वामी बन गए हैं।

वर्तमान तिब्बत में सभी मठों के भिक्षु भिक्षुनियों को लोकतांत्रिक सुधार से आए भारी परिवर्तन का अनुभव हुआ है। ल्हासा के पश्चिमी उपनगर में स्थित दर्पोंग मठ गेलूग संप्रदाय के छै प्रमुख मठों में से एक है और ल्हासा में स्थित तीन मुख्य मठों में से एक भी। लोकतांत्रिक सुधार के बाद मठ के भिक्षुओं ने पानी के लिए पहाड़ पर चढ़ने तथा गर्मी के लिए गोबर जलाने के पुराने ढंग के जीवन को अलविदा कर दिया । मठ की लोकतांत्रिक प्रबंध कमेटी के उप प्रधान आवांगछ्वुन्जङ ने कहाः

लोकतांत्रिक सुधार के बाद सब से बड़ा परिवर्तम मठ के जीवन में आया। अतीत में भिक्षु गोबर और चूल्हा जलाते थे। अब हम प्राकृतिक गैस जलाते हैं, वह बहुत साफ सुथरा और समय की किफायत भी है। सरकार ने पूंजी डाल कर सड़कें बनायीं और पेय जल के नल और लाइटिंग की व्यवस्था लगायी। अब पानी लेने के लिए हमें बाल्टी उठा कर पहाड़ पर जाने की जरूरत नहीं रह गयी, हर आंगन में जल पाइप लगाया गया है। हमारा जीवन एकदम सुधर गया है। 

मठ की लोकतांत्रिक प्रबंध कमेटी के प्रधान श्री आवांगतुंज्ये ने परिचय देते हुए कहा कि सरकार के अनुदान के अलावा अब तिब्बत में बहुत से मठ अपनी मेहनत से भी जीविका चलाते हैं। भिक्षु भिक्षुनी मठ की संपत्ति और अपने उत्पादन के सहारे कमाते हैं और मठ का संचालन करते हैं। उन की आमदनी पूरी तरह भिक्षुओं और मठ के हित में इस्तेमाल की जाती है। श्री आवांगतुंज्ये ने कहाः

वर्तमान में दर्पोंग मठ के पास दुकान, चाय घर और एक क्लिनिक हैं। मठ ने आसपास की काऊंटियों में कुछ थोक दुकानें भी खोलीं और परिवहन का व्यवसाय चलाया । अब बड़ी संख्या में पर्यटक दर्पोंग मठ के दर्शन के लिए भी आते हैं ,इस से हमें दर्शन टिकट से भी मुनाफा मिलता है । हमारी आमदनी सीधे मठ के जीर्णोद्धार और भिक्षुओं के जीवन सुधार में इस्तेमाल की जाती है।

चीन की केन्द्र सरकार भी हर साल मठ मंदिर और उस में सुरक्षित अवशेषों की सुरक्षा केलिए विशेष धनराशि देती है । 2006 से 2010 तक की 11 वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान केन्द्रीय सरकार ने 57 करोड़ य्वान की राशि देने का निश्चय किया, जिस से जाशुलुंबो आदि 22 ऐतिहासिक ईकाइयों का संरक्षण किया जाएगा । जाशिलुंबो मठ की लोकतांत्रिक प्रबंध कमेटी के प्रधान सालुंग.प्यांगला ने कहाः

लोकतांत्रिक सुधार, खास कर सुधार व खुलेपन की नीति लागू होने के बाद सरकार ने मठ के जीर्णोद्धार और अवशेषों के संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया। जाशिलुंबो मठ देश की मुख्य संरक्षित ईकाइयों की सूची में शामिल किया गया । 1980 में केन्द्रीय सरकार ने मठ की मरम्मत के लिए 8 करोड़ य्वान की राशि प्रदान की । अब फिर 50 करोड़ य्वान की राशि निकाल कर जाशिलुंबो समेत 20 से अधिक मठों की मरम्मत की जा रही है। सिर्फ जाशिलुंबो मठ पर 13 करोड़ य्वान का प्रयोग हुआ है। सरकार यह भी कोशिश करती है कि जाशिलुंबो मठ हमेशा ऐसा शानदार रहेगा कि धर्मालंबी जब कभी आये, तो उन्हें मठ को भव्य और चमकता हुआ देखने को मिलेगा। एक तीर्थ स्थल होने के नाते जाशिलुंबो मठ हमेशा अनुयायियों के लिए खुला रहेगा, वे स्वतंत्रता के साथ इस में धार्मिक अनुष्ठान में हिस्सा ले सकते हैं।

मठ संरक्षण के अतिरिक्त तिब्बत के विभिन्न मठ धार्मिक सिद्धांत और तिब्बती संस्कृति व इतिहास से ज्ञात उच्च स्तरीय धार्मिक लोगों को प्रशिक्षित कर रहे हैं। और आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक से लोगों को बौद्ध धर्म की संस्कृति से अवगत करते हैं।

तिब्बती बौद्ध धर्म के चार प्रमुख संप्रदायों में से एक साग्या का पितृक मठ साग्या मठ शिकाजे डिस्ट्रिक्ट के दक्षिण पश्चीमी भाग में साग्य काऊंटी में स्थित है, यहां न केवल साग्य संप्रदाय का सर्वोच्च स्तरीय धार्मिक प्रतिष्ठान खुला है, साथ ही कम्प्युटर प्रशिक्षण कक्षा और मठ की अपनी इंटरनेट वेबसाइट भी खोली गयी है। साग्या मठ की लोकतांत्रिक प्रबंध कमेटी के प्रधान पानत्यांत्वुयू ने इस के बारे में कहाः

1999 में हमारे मठ ने कम्प्युटर प्रशिक्षण कक्षा खोली, अब साग्य वेबसाइट भी कायम किया, जिस में साग्य संप्रदाय के इतिहास और संस्कृति उल्लेखित हुए हैं । वर्तमान में सारे विश्व में भूमंडलीकरण और सूचना नेटवर्क का युग आया है, हमें अपने को बाह्य दुनिया से अलग कर स्वतः बन्द करने से बचना चाहिए और देश के दूसरे स्थानों और पूरे विश्व में अग्रसर होना चाहिए। अब साग्य आने की पूर्ण स्वतंत्रता है और कोई पाबंदी नहीं लगी है। हमारे धार्मिक प्रतिष्ठान में कांसू और सछ्वान प्रांतों से आए विद्यार्थी भी हैं।

श्री पानत्यांत्वुयु ने कहा कि वर्तमान में साग्य मठ की तीर्थ यात्रा पर आने वाले अनुयायियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। मठ में दर्शन की सुविधाएं संतोषजनक हैं। मठ में आए भक्तों और पर्यटकों को इस पर बहुत संतोष हुआ है । 65 वर्षीय तिब्बती किसान लाच्युन अभी अभी मठ में तीर्थ यात्रा के लिए आ पहुंचा, उस का घर साग्य काउंटी के सीकांग कस्बे में है, जो साग्य से 10 किलोमीटर दूर है। हर बार वह गाड़ी या ट्रेक्टर से यहां आए । उन्हों ने कहाः

लोकतांत्रिक सुधार से पहले हमारी जीवन बहुत दुभर था, मठ के दर्शन के लिए बहुत से कर का दान करना पड़ता था। लेकिन अब स्थिति एकदम बदली है, हमारे घर में छोटा सूत्र-कक्ष खुला है और साग्य मठ भी पहले से ज्यादा सुन्दर और आलीशान पुनः निर्मित किया गया है ।

वर्तमान तिब्बत में मठ मंदिर न केवल धर्मालंबियों की तीर्थ यात्रा का स्थल है, साथ ही विश्वविख्यात पर्यटन स्थल और देश के सांस्कृतिक अवशेष संरक्षण ईकाइ भी है। ल्हासा के केन्द्र में स्थित अहम तिब्बती बौद्ध मठ जोखांग 2000 में विश्व सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया गया और सारी मानव जाति की साझी संपत्ति बन गया । अब तिब्बती मठ मंदिर सारी दुनिया के लिए खुली है और वहां के लोगों का जीवन और अधिक सामंज्यसपूर्ण और सुखद हो रहा है।

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